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हिंसा-आगजनी और सेना का फ्लैग मार्च, मैरीकॉम की PM से गुहार, क्यों आग में उबल रहा मणिपुर

मैतेई समुदाय को एसटी में शामिल करने से जुड़ी मांग के विरोध में 3 मई को मणिपुर में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने चुराचांदपुर  जिले के तोरबंग इलाके में एक रैली की थी.  मणिपुर हाई कोर्ट ने वहां  की सरकार को एक दिशा-निर्देश भी दिया था कि ये जो मैतेई समुदाय के लोग हैं और ये ज्यादातर इम्फाल वैली में रहते हैं, उन्हें एसटी वर्ग के अंदर आरक्षण दिया जाए. हाई कोर्ट के इसी निर्देश के विरोध में  रैली निकाली गई थी. बॉक्सर मैरी कॉम ने भी ट्वीट कर मणिपुर को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाई है.

जब रैली समाप्त होने वाली थी तो वहां पर असामाजिक तत्वों ने बिश्नुपुर और चुराचांदपुर जिलों से लगे इलाकों  में कुछ घरों को आग लगा दी. कुछ भी सटीक जानकारी नहीं है. लेकिन यह माना गया है कि लगभग 100 से 200 घरों को जलाया गया है. इसके बाद रात में इस घटना से जो पीड़ित समुदाय के लोग थे उन्होंने हमला करना शुरू कर दिया और अभी तक सरकार की तरफ से औपचारिक तौर पर यह नहीं बताया गया है कि कितने लोगों की जानें गई हैं. लेकिन कुछ जानकारियां मिली हैं कि लगभग 12 से 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 40 से अधिक लोग घायल हैं.

ये दो समुदाय के लोगों के बीच का संघर्ष है. अभी मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने लोगों से यह अपील की है कि शांति व्यवस्था को  किसी भी तरह से भंग नहीं किया जाए. जिसने भी हिंसा फैलाई है, उन सभी आरोपियों को पकड़ा जाएगा. हालांकि उनकी पहचान और उन्हें पकड़ने में वक्त तो लग जाएगा. लेकिन जो परिस्थितियां उसे शांतिपूर्ण बनाने की उन्होंने अपील की है.

मणिपुर बहुत ही छोटा सा राज्य है लेकिन बहुत ही संवेदनशील है. यहां पर लगभग 36 समुदायों के लोग रहते हैं. यहां की जो भौगोलिक परिस्थितियां हैं उसमें हिल का जो एरिया है वो महज 10% है और बाकी के जो वैली यानी का घाटी का एरिया है वो 90% हैं. यहां पर यह रूल है कि जो लोग हिल यानी पहाड़ी  इलाके में रहते हैं वो वैली इलाकों में भी जमीन खरीद कर रह सकते हैं और जो वैली में रहने वाले लोग हैं वो ऊपर यानी हिली एरिया में नहीं जा सकते है. इसलिए वैली में रहने वाले लोग इसकी मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी एसटी वर्ग में आरक्षण दिया जाए. इसी को लेकर दोनों एरिया के समुदायों के बीच टकराव चल रहा है.

मणिपुर के इतिहास में यह पहली बार है जब दो प्रमुख समुदायों के बीच में संघर्ष चल रहा है. मेरे ख्याल ये संघर्ष बहुत जल्द खत्म हो जाएगा क्योंकि दोनों समुदायों के बीच में जो भाईचारा है वह बहुत ही गहरा है. दोनों के बीच मानवीय जुड़ाव और भाषा भी एक जैसी ही है. हम सभी लगभग मणिपुरी भाषा ही बोलते हैं.

अभी बहुत सारी अफवाहें भी उड़ रही हैं और ऐसा होने से जो नौजवान हैं उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है. इसलिए हिंसा की घटनाएं और नहीं बढ़ जाए, इसे रोकने के लिए इंटरनेट की सुविधा को रोक दी गई है और जो कर्फ्यू लगा है वो लगभग पूरे मणिपुर में लगाया गया है. केंद्र से भी सेंट्रल फोर्स के दो एरोप्लेन इम्फाल में आया है. चूंकि जितने भी प्रभावित इलाके हैं सभी जगहों पर तनाव की स्थिति बनी हुई है और आर्मी और असम राइफल्स के जवान भी लगे हुए हैं. वे वैसे इलाकों में लगे हुए हैं जहां पर जो पीड़ित समुदाय के लोग गांवों में फंसे हुए हैं उन्हें वहां से निकाल कर सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा रहा है. मेरे हिसाब से लगभग 10000 से अधिक लोग पुलिस और आर्मी के प्रोटेक्शन में हैं.

ये जो वैली एरिया में लोग रहते हैं वे भी पहले अनुसूचित जनजाति यानी एसटी ही खुद को मानते थे. इनको मैतेई बोला जाता है. हिली एरिया में ज्यादातर दो समुदाय के लोग रहते हैं जिनको कूकी और नागा कहा जाता है. जब 1949 में भारत में ज्वाइन किया तो उस वक्त केंद्र सरकार ने जो इम्फाल में रहने वाले लोग थे उनको जनरल कैटेगरी में डाल दिया था. लेकिन जो लोग इम्फाल में रहते हैं उनमें से अधिकतर के घर हिली एरिया में हैं.

चूंकि वैली एरिया जो है वो एक तरह से मिक्सचर है, मेट्रोपोलिटन जैसा है. इस वजह से वे लोग अपने गांव नहीं जा सकते हैं हिली एरिया में और ये जो हिल का एरिया है यहां पर म्यांमार से बहुत ज्यादा लोग आ रहे हैं. ऐसे में जो वहां के ओरिजनल लोग हैं, जो भारत के लोग हैं उनकी जगह वे एसटी कोटे का लाभ ले रहे हैं. जबकि मणिपुर के ओरिजनल सेटलमेंट के लोगों को कुछ भी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. इसलिए ये बहुत लंबी कहानी है और इसमें बहुत सारे एथनिक ग्रुप के लोग शामिल हैं.

हमलोग जो बोल रहे हैं कि जो लोग इम्फाल में रहते हैं वे तो सिटी एरिया में रहते हैं और उन्हें वहां पर सभी तरह की सुविधाएं मिल रही हैं. इसलिए अगर इन्हें आरक्षण मिल जाएगा तो ट्राईब्स का जो कोटा है वह खत्म हो जाएगा. इसे लेकर दोनों समुदायों में कनफ्यूजन है. लेकिन अगर आप देखेंगे तो दोनों में कोई अंतर नजर नहीं आता है. त्रिपुरा में आप देखेंगे तो वहां पर बंगाली और ट्राइब्स दोनों एक ही साथ रहते हैं. जबकि मणिपुर में जो वैली एरिया है वहां पर सिर्फ जनरल कैटेगरी के लोगों को रखा गया है. इसे लेकर दोनों के बीच गलतफहमी है. हालांकि इसे आसानी से खत्म किया जा सकता है. लेकिन दिक्कत यह है कि यहां जो समस्याएं हैं उसमें राज्य सरकार कुछ भी नहीं कर पाती है. जो भी मुद्दे हैं कि कौन एसटी है और कौन नहीं ये सब केंद्र की तरफ से ही किया जाता है.

मणिपुर में इतनी बड़ी हिंसा के बाद भी केंद्र की तरफ से कोई स्टेटमेंट नहीं आया है. यही अगर यूपी और बिहार में इस तरह की घटना हुई होती तो केंद्र सरकार के गृह मंत्री और केंद्र सरकार कुछ न कुछ हल निकालने की कोशिश जरूर करते. ऐसा यहां के लोग बोल रहे हैं कि हमारी जो समस्याएं हैं उसे कोई सुनता भी नहीं है और कोई सुनने वाला भी नहीं है. सेंटर के कोई भी एक-दो लीडर को यहां आज तो आ जाना चाहिए था. वे यहां पर जो भी प्रभावित लोग हैं उनसे मिलकर उनकी समस्याएं सुनते और शांति बनाए रखने की अपील करते लेकिन अभी तक एक भी केंद्रीय नेता नहीं आए हैं.

अभी 10 हजार से भी ज्यादा लोग इधर-उधर है. कर्फ्यू है, सब दुकान बंद है. हम लोग उनको खाना भी नहीं दे सकते हैं. बहुत सारे बच्चे बीमार हैं. इन सब तक मदद पहुंचनी चाहिए. सबसे जरूरी है कि पीड़ितों तक मदद पहुंचे और स्थिति को नियंत्रित रखा जाए. सबसे पहली जिम्मेदारी सरकार की यही है. राजनीति तो बाद की बात है, पहले मानवीय संकट पर ध्यान देने की जरूरत है.

हाईकोर्ट का निर्णय तो लीगल डिसिजन है. जो भी लोग मणिपुर हाईकोर्ट की बात का विरोध कर रहे हैं, वे लोग सुप्रीम कोर्ट जाकर अपील कर सकते थे, वो ज्यादा अच्छा था. मगर जिस तरह से उन्होंने रैली के जरिए विरोध प्रदर्शन किया, उससे काफी लोग प्रभावित हुए हैं. रैली संभाल कर करना चाहिए था. क्योंकि सोशल मीडिया पर जो वीडियो है उसमें हमने देखा है कि रैली में लोग हथियार लेकर आ रहे थे. इसमें कुकी मिलिटेंसी से जुड़े लोग आ रहे थे. इससे तनाव थोड़ा ज्यादा बढ़ गया. अभी कुकी और मैतेई समुदाय में टकराव है. जहां-जहां भी कुकी इलाके में मैतेई ज्यादा हैं या फिर मैतेई इलाके में कुकी ज्यादा हैं, वहां सुरक्षाबलों को अलर्ट पर रखा गया है.

(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)

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