मणिपुर में 3 मई से शुरू हुई हिंसा के अब 58 दिन हो चुके हैं. मैतेई और कुकी के बीच शुरू हुई ये जातीय हिंसा खत्म होने के नाम नहीं ले रही है. मैं देश का केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री भी रहा हूं. एक भारतीय के हैसियत से मैं ये बताना चाहूंगा कि ये बेहद दुखद स्थिति है. पिछले करीब दो महीने से मणिपुर में हिंसा जारी है और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस पर एक भी बयान नहीं है. यहां तक कि उनकी तरफ से शांति की अपील तक नहीं की गई है.
लोग आपस में लड़ रहे हैं. पूरे नेशनल मीडिया पर तो उतना नहीं दिख रहा लेकिन सोशल मीडिया पर सारी चीजें उपलब्ध है. राहुल गांधी मणिपुर में इसलिए गए हैं ताकि शांति का वे संदेश दे पाएं और सभी लोगों को बताएं कि साथ रहकर चलना है. इसी में सभी को फायदा है. इसी के चलते उन्हें बाधा पहुंचाई गई. उन्हें रोका गया और उन जगहों पर नहीं जाने दिया गया जहां पर वो गुरुवार को जाना चाहते थे.
मणिपुर हिंसा पर केन्द्र का लापरवाह रवैया
स्वभाविक तौर पर एक तो केन्द्र सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रही है. दूसरा अगर कोई मानवता के नाते, सोशल लाइफ में रहने के नाते, लोगों की सेवा के नाते अगर वहां पर लोगों की शांति की अपील कर रहा है तो ऐसा हो रहा है. मणिपुर काफी संवेदनशील राज्य रहा है. ये हमारे सीमा से लगता हुआ एक राज्य है. शत्रु भी इसमें गेम प्ले कर रहा है, जो खबरें आ रही है, उसमें वो भी किसी न किसी रुप से साजिश कर रहे हैं.
निश्चित तौर पर इसे रोका जाना चाहिए. केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर का दौरा हाल में किया है. उनके वहां से आने के बावजूद हिंसा में किसी तरह की कमी नहीं आयी है बल्कि इसमें और बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में इस हिंसा के क्या कारण है, दरअसल इसकी वजह नाराजगी लगती है. जिस तरह से बीजेपी नेताओं का घर जलाया गया, उन पर हमला किया गया, ये गलत है. हिंसा को कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है.
पूर्व सीएम को सिर्फ 7 मिनट का समय
बीजेपी के लोगों के प्रति नाराजगी क्यों है इस पर भी सोचा जाना चाहिए. वहां की जनता की अगर सरकार के प्रति नाराजगी है तो सरकार को और प्रो-एक्टिव होकर काम करना चाहिए कि अगर छोटा वर्ग ही नाराज है फिर भी, क्योंकि ये एक संवेदनशील राज्य है. इसलिए यह प्रधानमंत्री और देश की सरकार की जिम्मेदारी है कि वो इसमें इनिशिएटिव लें. सभी पार्टियों को दिखावे के लिए नहीं, बल्कि गंभीरता के साथ बुलाकर उनसे बातचीत करे.
हमारी पार्टी के नेता इबोबी सिंह बिना किसी अन्य दलों के समर्थन के बावजूद 15 साल तक वहां पर मुख्यमंत्री रहे हैं. उनको बुलाकर सिर्फ 7 मिनट का समय दिया जाता है. क्या है ये? राजनीति देश के मान-सम्मान, उसके उत्थान के लिए की जाती है. राजनीति देश के विघटन के लिए नहीं की जाती है. राजनीति देश के लोगों को आपस में मतभेद के लिए नहीं की जाती है. ऐसी राजनीति देश के मानवता के खिलाफ है. सरकार को चाहिए कि पूरी मुस्तैदी से, हर व्यक्ति जो अमन-चैन चाहता है, उनको साथ लेकर इस देश की समस्या को हल करने का प्रयास किया जाना चाहिए.
बहुत शांत राज्य रहा है मणिपुर
मणिपुर एक शांत राज्य रहा है. वहां पर बहुत पहले उग्रवाद था, लेकिन इस तरह का व्यापक हिंसा और गांव का गांव जला देना, घर का घर जला देना, मेरे होश में ऐसा वहां पर कभी नहीं हुआ. इसका सबसे बड़ा कारण है कि देश की सरकार को लोग अपना गार्जियन समझते हैं लेकिन देश की सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ पा रही है.
अब बताइये कि कहीं पर कोई एक-दो दिन हिंसा अगर हो जाती है तो प्रधानमंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक लोगों से अपील करते हैं. लेकिन आज तक 58 दिन हो गए लेकिन प्रधानमंत्री का एक शांति का बयान नहीं आया है. ये कहना चाहिए था कि जो लोग जिम्मेदार है उसको सजा देंगे. पीएम मोदी जी को चाहिए कि वो राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जी और दूसरी पार्टियों के नेताओं को लेकर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ जाएं और वहां के लोगों के दुख दर्द को समझकर उनका निराकरण किया जाना चाहिए.
लंबे समय तक हिंसा से घातक असर
अगर मणिपुर में इसी तरह लंबे समय तक हिंसा जारी रहती है तो उसका व्यापक असर होगा. इसलिए सरकार को चाहिए कि प्रो-एक्टिव होकर काम करे. लेकिन ऐसे लगता है कि सरकार तो जैसे सोई हुई है.
उर्दू का एक शेर है-
आग तो अपने ही लगाते हैं,
गैर तो सिर्फ हवा देते हैं.
हमारे घर में एक नाइत्तफाकी... हिंसा का माहौल फैला है. तभी तो बाहर वाले इसको हवा दे रहे हैं. हमारे दुश्मन है वो लोग जो बाहर से इस देश में हिंसा को हवा दे रहे हैं. लेकिन ये हमारी और हमारे देश की जिम्मेदारी है, हमारे देश की सरकार की जिम्मेदारी है कि हम अपने लोगों को संभालें और उनकी जो शिकायतें हैं उनको दूर करें. साथ ही, एक गार्जियन की तरह लोगों के बीच मोहब्बत बढ़ाएं. लेकिन, मैं ऐसा समझता हूं कि मोदी सरकार इसमें पूरी तरह से फेल रही है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]