मणिपुर के लोगों के लिए पिछला दस महीना बेहद दर्दनाक रहा है. हिंसा के जिस दंश को लंबे वक़्त झेलने के लिए मणिपुर के लोग 2023 में मजबूर हुए हैं, वैसा मंज़र वर्तमान सदी में भारत के किसी भी राज्य में देखने को नहीं मिला है. दस महीने से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन मणिपुर के लोगों को अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बे-सब्री से इंतिज़ार है.


मणिपुर के लोग यहाँ आने के लिए बार-बार लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगा रहे हैं. इनमें मणिपुर के आम लोगों से लेकर खेल जगत के बेहद प्रतिष्ठित लोग भी शामिल है. मिक्स्ड मार्शल आर्ट  के चैंपियन चुंगरेन कोरियन का एक वीडियो तेज़ी से वायरल हो रहा है. इसमें चुंगरेन कोरियन प्रधानमंत्री से विनम्रता के साथ भावुक अपील करते हुए नज़र आ रहे हैं. वीडियो में उन्होंने मणिपुर के लोगों के दु:ख-दर्द को भावुकता के साथ ज़ाहिर किया है.


प्रधानमंत्री को बुला रहे हैं मणिपुर के लोग


मिक्स्ड मार्शल आर्ट के खिलाड़ी चुंगरेन कोरियन कह रहे हैं कि "मणिपुर में हिंसा हो रही है. क़रीब-क़रीब एक साल हो गया है. हर दिन लोग मर रहे हैं. राहत शिविरों में बहुत लोग रह रहे हैं. वहाँ लोगों को अच्छे से खाना-पीना नहीं मिल रहा है. बच्चों की पढ़ाई ठीक ढंग से नहीं हो रही है. मणिपुर के लोग भविष्य को लेकर बेहद चिंतित और परेशान हैं. मोदी जी आप एक बार आकर मणिपुर का दौरा कर लीजिए और जल्द से जल्द हमारी सहायता कीजिए."


हिंसा का दंश झेलने को मजबूर स्थानीय लोग


चुंगरेन कोरियन के इस अपील से समझा जा सकता है कि हिंसा के व्यापक रूप लेने के दस महीने बाद भी मणिपुर के हालात कितने बुरे हैं. अभी भी मणिपुर में हिंसा पूरी तरह से नहीं थमी है. बीच-बीच में हिंसा में आम लोगों के मारे जाने की ख़बर आती रहती है.



मणिपुर के इंफाल घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई और पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले कुकी समुदायों के बीच तनाव ने 3 मई, 2023 को हिंसा का व्यापक रूप ले लिया था. तब से लेकर आज तक मणिपुर में तक़रीबन दो सौ लोगों की जान चली गयी है. हज़ारों लोग बेघर होने को मजबूर हुए थे. हिंसा के स्वरूप में कमी तो हुई है, लेकिन मैतेई और कुकी समुदाय के बीच तनाव में कोई कमी नहीं आयी है. मणिपुर के लोग एक ऐसे तवानपूर्ण हालात में जीने को विवश हैं, जहाँ कभी भी और कहीं भी हिंसा फिर से भड़क सकती है.


स्थानीय लोगों की अपील का भी असर नहीं


मणिपुर के लाखों लोग हिंसा, दु:ख-दर्द और भविष्य को लेकर चिंता के साथ जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं. इतना कुछ हो जाने और स्थानीय लोगों की बार-बार भावुक अपील के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहाँ नहीं आए हैं. प्रधानमंत्री का बाट जोहते हुए मणिपुर के लोगों की आँखें पथरा गयी हैं. मिक्स्ड मार्शल आर्ट  के चैंपियन चुंगरेन कोरियन के पहले भी यहाँ के कई नामी-गिरामी हस्तियों की ओर से भी अतीत में प्रधानमंत्री से भावुक अपील की गयी है. इनमें बॉक्सिंग की मशहूर खिलाड़ी और ओलंपिक पदक विजेता और छह बार विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत चुकीं एम.सी. मेरी कॉम भी शामिल हैं. राज्य सभा सांसद रह चुकीं मेरी कॉम ने हिंसा के व्यापक रूप लेने के अगले दिन ही 4 मई, 2023 को प्रधानमंत्री से भावुक अपील की थी कि मणिपुर को जलने से बचाइए. जुलाई, 2023 में इसी तरह की अपील ओलंपिक में रजत पदक विजेता वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने भी की थी.


खुले-'आम नागरिक अधिकारों की धज्जियाँ उड़ी


पिछले दस महीने में मणिपुर में खुले-'आम और सर-ए-'आम नागरिक अधिकारों की धज्जियाँ उड़ी हैं. नग्न कर दो महिलाओं के साथ बर्बरतापूर्ण हरकत से जुड़ी घटना को मणिपुर और भारत के साथ ही पूरी दुनिया के लोगों ने देखा था. हिंसा की शुरूआत के क़रीब ढाई महीने बाद 19 जुलाई 2023 को इस घटना से जुड़ा वीडियो वायरल हुआ था.  वायरल वीडियो में भले ही 2 महिलाएं दिख रहीं थी, लेकिन महिलाओं की शिकायतों के मुताबिक तीन महिलाओं को भीड़ के सामने निर्वस्त्र होकर चलने को मजबूर किया गया था. एक के साथ गैंगरेप भी हुआ था. यह घटना मई की थी, लेकिन वीडियो वायरल होने के बाद देश के लोगों को इसके बारे में जानकारी जुलाई में ही मिल पाती. अगर यह वीडियो वायरल नहीं होता, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था कि देश के लोगों को इस घटना की जानकारी ही नहीं मिल पाती.


भय के माहौल में जीने को मजबूर स्थानीय लोग


पिछले दस महीने में मणिपुर में महिलाओं के साथ यौन शोषण और दुर्व्यवहार की अनगिनत घटनाएं हुई हैं. अधिकांश के बारे में मणिपुर के बाहर देश के तमाम लोगों को भनक तक नहीं है. मिक्स्ड मार्शल आर्ट  के चैंपियन चुंगरेन कोरियन के अपील से समझा जा सकता है कि अभी भी मणिपुर के लोग भय के माहौल में जीने को विवश हैं.


देश में आम चुनाव को लेकर सरगर्मी है तेज़


दूसरी ओर पूरे देश में आम चुनाव, 2024 को लेकर राजनीतिक सरगर्मी पूरे उफान पर है. लोक सभा चुनाव से संबंधित कार्यक्रम का एलान फ़िलहाल नहीं हुआ है. इसके बावजूद पूरा देश चुनावी ख़ुमार में डूबा हुआ दिख रहा है. इसके लिए देश के तमाम राजनीतिक दल और उनके नेता ज़िम्मेदार हैं. पिछले कई महीनों से अलग-अलग राज्यों में अपने-अपने लाभ के हिसाब से समीकरणों को साधने के लिए राजनीतिक दलों की ओर से पुर-ज़ोर आज़माइश की जा रही है. अलग-अलग राज्यों में बड़े-बड़े नेताओं के राजनीतिक दौरे के साथ ही रैली, जनसभा और रोड शो की बौछार भी जमकर हो रही है.


प्रधानमंत्री मोदी का राज्यों में तूफ़ानी दौरा


राजनीतिक उछल-कूद, नूरा-कुश्ती और सर-फुटव्वल को मुख्यधारा की मीडिया में ब-ख़ूबी ख़ूब जगह भी मिल रही है. यही कारण है कि पूरे देश में 18वीं लोक सभा के लिए चुनाव का माहौल महीनों पहले से ही बना हुआ है. इन सबके बीच सत्ताधारी दल बीजेपी के शीर्ष नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर में सबसे अधिक दौरा कर रहे हैं. वे बतौर प्रधानमंत्री सरकारी कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं. साथ ही बतौर बीजेपी के शीर्ष नेता वे चुनावी रैली, जनसभा और रोड शो भी करते हुए नज़र आ रहे हैं.


उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक, पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दौरा कर रहे हैं. उन्होंने तीन दिन पहले 9 मार्च को ही अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था. बीते एक वर्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के तक़रीबन हर राज्य का दौरा कर चुके हैं, लेकिन एक राज्य ऐसा है, जहाँ जाने से प्रधानमंत्री कतरा रहे हैं. वे उत्तर-पूर्व के बाक़ी राज्यों का दौरा कर रहे हैं. इसके बावजूद पिछले 10 महीने से भी अधिक समय से हिंसा की आग में झुलस रहे मणिपुर में अब तक नहीं जा पाए हैं.


आख़िरी बार 4 जनवरी, 2022 को मणिपुर का दौरा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आख़िरी बार 4 जनवरी, 2022 को मणिपुर गए थे. मणिपुर के लिए यह चुनावी समय था. मणिपुर में दो चरणों में 28 फरवरी और 5 मार्च को विधान सभा चुनाव के लिए मतदान हुआ था. जनवरी 2022 में प्रधानमंत्री का मणिपुर दौरा सरकारी कार्यक्रम था. चुनाव कार्यक्रम के एलान के पहले यह दौरा हुआ था. हालाँकि प्रधानमंत्री के इस दौरे के चार दिन बाद ही 8 जनवरी 2022 को चुनाव आयोग की ओर से मतदान की तारीख़ों का एलान किया गया है.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरे पर इंफाल में राज्य से जुड़ी कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया था. इस दौरान उन्होंने मणिपुर के लोगों को डबल इंजन की सरकार के कई फ़ाइदे गिनवाए थे. मणिपुर में मार्च 2017 से मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. इस आख़िरी दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर की बदहाली के लिए कांग्रेस समेत तमाम पूर्ववर्ती सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराया था.


जनवरी 2022 में मणिपुर को लेकर बड़े-बड़े दावे


मणिपुर के आख़िरी दौरे पर 4 जनवरी, 2022 को इंफाल में प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि मणिपुर भविष्य में व्यापार और एक्सपोर्ट का एक बड़ा केंद्र बनेगा. उन्होंने मणिपुर को देश के लिए एक से एक नायाब रत्न देने वाला राज्य भी बताया था. रानी गाइदिन्ल्यू को भारत की नारी शक्ति से जोड़ा था. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी दुनिया में भारत का झंडा उठाने और गर्व से देश का सिर ऊंचा करने के लिए मणिपुर की बेटियों का ख़ास तौर से ज़िक्र किया था.


इस दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "यहाँ के युवाओं ने, और विशेषकर मणिपुर की बेटियों ने पूरी दुनिया में भारत का झंडा उठाया है, गर्व से देश का सर ऊंचा किया है. विशेषकर आज देश के नौजवान, मणिपुर के खिलाड़ियों से प्रेरणा ले रहे हैं. कॉमनवेल्थ खेलों से लेकर ओलंपिक्स तक, रेस्लिंग, आर्चरी और बॉक्सिंग से लेकर वेटलिफ्टिंग तक, मणिपुर ने एम सी मेरी कॉम, मीराबाई चानू, बोम्बेला देवी, लायश्रम सरिता देवी कैसे-कैसे बड़े नाम हैं, ऐसे बड़े-बड़े चैम्पियन्स दिये हैं."


हिल और वैली के बीच खाई पर प्रधानमंत्री का बयान


इस दौरे पर  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और महत्वपूर्ण पहलू का उल्लेख किया था, जिसे मणिपुर की 2023 की हिंसा के संदर्भ में समझने की ज़रूरत है. इस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था..


"आज मणिपुर की उपलब्धियों पर गौरव करने के साथ साथ हमें ये भी याद रखना है कि अभी हमें आगे एक लंबा सफर तय करना है. हमें ये भी याद रखना है कि हमने ये यात्रा कहाँ से शुरू की थी. हमें याद रखना है कि कैसे हमारे मणिपुर को पिछली सरकारों ने blockade state बनाकर रख दिया था, सरकारों द्वारा हिल और वैली के बीच राजनीतिक फ़ाइदे के लिए खाई खोदने का काम किया गया. हमें याद रखना है कि लोगों के बीच दूरियाँ बढ़ाने के लिए कैसे-कैसे षड्यंत्र किए जाते थे." ( 4 जनवरी, 2022 को इंफाल में दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का अंश)


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर को  blockade state से इंटरनेशनल ट्रेड के लिए रास्ते देने वाला स्टेट बताया था. उन्होंने बीजेपी सरकार की ओर से चलाए गए हिल और वैली के बीच खोदी गई खाइयों को पाटने के लिए 'गो टू हिल्स' और 'गो टू विलेज' अभियान का भी बखान किया था. उन्होंने भरोसा जताया था कि मणिपुर के लोग इसी तरह से डबल इंजन की सरकार पर अपना आशीर्वाद बनाए रखेंगे.


एक साल बाद ही हर दावे की खुल गयी कलई


जनवरी 2022 में इन तमाम अच्छी-अच्छी बातों और दावों के बावजूद अगले साल ही मणिपुर फिर से हिंसा के उस दौर में पहुँच जाता, जिसकी कल्पना मात्र से बाहरी लोगों की रूह काँप जाए. प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि पुरानी सरकारों की ओर से हिल और वैली यानी कुकी और मैतेई समुदायों में दूरियाँ बढ़ाने के लिए साज़िश रची जाती थी और दूसरी तरफ़ मार्च 2017 से बीजेपी की सरकार बनने से प्रदेश में सुख-समृद्धि और शांति का माहौल बना है.


उससे पहले 2017 में हुए विधान सभा चुनाव के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर को लेकर बड़े-बड़े दावे किए थे. उस वक़्त उन्होंने कहा था कि मणिपुर की तमाम समस्याओं के पीछे का प्रमुख कारण प्रदेश और केंद्र में अलग-अलग दलों की सरकार होना है. उस समय प्रधानमंत्री ने इसी पहलू का हवाला देते हुए मणिपुर की जनता से समर्थन मांगा था और  वादा किया था कि जब केंद्र और प्रदेश दोनों में बीजेपी की सरकार होगी, तो यहां के लोगों को हर समस्या से मुक्ति दिलाएंगे.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2017 से लेकर जनवरी 2022 के बीच मणिपुर की जनता से जो-जो वादे किए, वो कितने पूरे हुए या नहीं, यह अलग चर्चा का विषय है. लेकिन 2023 की हिंसा एक कड़वी सच्चाई है. इसके लिए किसी चर्चा या सुबूत की ज़रूरत नहीं है. मणिपुर के लोगों के लिए हिंसा कोई नयी बात नहीं हैं. मणिपुर में विद्रोह और अंतर-जातीय हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है. 1980 से 2004 के दौरान मणिपुर को अशांत क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था. हालाँकि जिस तरह की हिंसा 2023 में हुई, पिछले दो दशक में इतनी ख़राब स्थिति कभी नहीं हुई थी.


सामरिक नज़रिये से महत्वपूर्ण है मणिपुर


भारत राज्यों का संघ है. उद्देशिका या'नी प्रीऐम्बल के बाद भारतीय संविधान की शुरूआत ही संघ और उसका राज्यक्षेत्र से होती है. अनुच्छेद 1 (1) में कहा गया है कि भारत, अर्थात्, इंडिया, राज्यों का संघ होगा. इस नज़रिये से देश का हर राज्य संवैधानिक तौर से समान महत्व रखता है. मणिपुर सामरिक नज़रिये से भी महत्व रखने वाला राज्य है. मणिपुर 21 जनवरी, 1972 को पूर्ण राज्य बनता है. मणिपुर के उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिज़ोरम और पश्चिम में असम की सीमा लगती है. पूर्व में मणिपुर से म्यांमार की अंतरराष्ट्रीय सीमा भी लगती है.


मणिपुर में लगभग 90% हिस्सा पहाड़ी इलाका है. 2011 की जनगणना के मुताबिक़ मणिपुर की आबादी 27.21 लाख के आस-पास थी. अभी आबादी 35-36 लाख तक पहुंचने की संभावना है. यहाँ की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या तक़रीबन 53 फ़ीसदी है.मैतेई समुदाय के लोग बहुतायत में इंफाल घाटी में रहते हैं. इन्हें  प्रदेश में अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल नहीं है. मणिपुर की आबादी में क़रीब 40 प्रतिशत नगा और कुकी आदिवासी हैं. यहाँ के पर्वतीय जिलों में नगा और कुकी समुदाय के लोग बहुतायत में हैं.


मार्च 2017 से मणिपुर में बीजेपी की सरकार


केंद्र में मई, 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की सरकार है. वहीं मार्च, 2017 या'नी सात साल से मणिपुर में भी बीजेपी की सरकार है. मणिपुर के लोगों को जिस तरह से मई, 2023 से लेकर अब तक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, उससे एक बात स्पष्ट है कि बीजेपी की बीरेन सिंह सरकार के कार्यकाल में घाटी और पहाड़ी के बीच खाई कम होने के बजाए बढ़ी है. हिंसा का व्यापक स्वरूप इसका साक्षात सुबूत है.


दौरे को लेकर मणिपुर के साथ सौतेला व्यवहार क्यों?


पूरे प्रकरण में इससे भी अधिक चिंता का पहलू मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रवैया है. दस महीने से अधिक का समय बीत गया है, लेकिन उन्होंने अभी तक मणिपुर का दौरा करना ज़रूरी नहीं समझा है. प्रधानमंत्री इन दस महीनों में मणिपुर को छोड़कर बाक़ी राज्यों में तूफ़ानी दौरा कर रहे हैं. आम चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज़ होने के मद्द-ए-नज़र स्थिति ऐसी हो गयी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ही दिन में दो-दो राज्यों का दौरा कर रहे हैं. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी, 2024 में असम जाते हैं. फिर इस महीने यानी मार्च के दूसरे हफ्त़े में असम और अरुणाचल प्रदेश का दौरा करते हैं, लेकिन मणिपुर की बारी नहीं आती है.


पिछले दस महीनों में महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में जैसे राज्यों में प्रधानमंत्री कई बार गए हैं. इनमें सरकारी कार्यक्रम से लेकर अपनी पार्टी के लिए रैली और जनसभा करने से जुड़ा दौरा भी शामिल है. प्रधानमंत्री के देश के अलग-अलग राज्यों में बार-बार जाने को लेकर सवाल कतई नहीं है. सवाल मणिपुर को नज़र-अंदाज़ करने को लेकर उठता है.


मई, 2023 से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 देशों की यात्रा कर चुके हैं. इनमें जापान, पापुआ न्यू गिनी, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, मिस्र, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण अफ्रीका, ग्रीस, इंडोनेशिया और कतर शामिल है. इस अवधि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुबई यात्रा को मिलाकर संयुक्त अरब अमीरात का तीन बार दौरा कर चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरे पर कोई सवाल नहीं है. सवाल उठना भी नहीं चाहिए. बतौर प्रधानमंत्री विदेश यात्रा स्वाभाविक है. देश के तमाम राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों से लेकर कई विदेशी दौरों के बीच मणिपुर के लोगों के लिए प्रधानमंत्री का समय नहीं निकालना सामान्य समझ से परे है.


मणिपुर के लोगों को भी है प्रधानमंत्री से अपेक्षा


मानता हूँ कि देश की संसदीय व्यवस्था में प्रधानमंत्री एक राजनेता होता है. राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक व्यक्ति होने के नाते प्रधानमंत्री को अपनी पार्टी के हितों के लिहाज़ से भी रणनीति बनानी पड़ती है. यह राजनीतिक पहलू है. इसके बावजूद हम सबको यह याद रखना चाहिए कि राजनीतिक शख़्सियत होने के बावजूद प्रधानमंत्री पूरे देश के लिए सबका प्रधानमंत्री होता है. इसमें हर राज्य और हर नागरिक शामिल हैं. प्रधानमंत्री बनते ही किसी भी नेता के लिए पार्टी हित से अधिक राष्ट्र हित का महत्व होना चाहिए और राष्ट्र हित के नज़रिये से हर राज्य प्रधानमंत्री के लिए समान है. शायद यह परंपरा भारत में विकसित नहीं हो पाया है.


दलगत संबद्धता के बावजूद होती है जवाबदेही


भारतीय संसदीय व्यवस्था में व्यावहारिक स्तर पर सबसे ताक़तवर और प्रभावशाली पद प्रधानमंत्री का ही. दलगत संबद्धता के बावजूद प्रधानमंत्री देश के हर नागरिक के लिए ज़िम्मेदार और जवाबदेह होते हैं. मणिपुर के लोगों को भी प्रधानमंत्री से उतनी ही आशा और उम्मीद है, जितनी देश के दूसरे राज्यों के लोगों को प्रधानमंत्री से होती है. राजनीतिक मजबूरी के नाम पर किसी राज्य के साथ प्रधानमंत्री को भेदभाव करने का कोई हक़ नहीं है.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले स्वयं ही यह दावा कर चुके हैं कि अतीत में पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों की ओर से मणिपुर समेत तमाम उत्तर-पूर्व राज्यों के साथ भेदभाव  किया जाता रहा है. पिठले दस महीने से मणिपुर के लोगों की तमाम अपील के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहाँ नहीं जा पा रहे हैं. इसे मणिपुर के साथ भेदभाव और सौतेला व्यवहार नहीं माना जाएगा, तो फिर क्या कहा जाएगा.


सरकारी और राजनीतिक जवाबदेही पर ढीला रवैया


मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्र सरकार के रवैये पर सवाल उठना लाज़िमी भी है. किसी भी प्रदेश में इस तरह की हिंसा होती है, तो यह सरासर प्रदेश सरकार की ही नाकामी मानी जाएगी. मणिपुर के मामले में एन.बीरेन सिंह की सरकार को जवाबदेह ठहराए जाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से पिछले दस महीनों में कोई क़दम नहीं उठाया गया.


यहाँ तक कि राज्यपाल अनसुइया उइके ख़ुद न्यूज़ चैनल पर आकर मणिपुर की भयावह स्थिति को बयाँ कर चुकीं थीं. राज्यपाल अनसुइया उइके का बयान था कि अपने जीवन में उन्होंने इस तरह की भयावह और ख़तरनाक स्थिति पहले कभी नहीं देखी है. राज्यपाल की ओर से केंद्र सरकार को इस बाबत रिपोर्ट भी भेज दिया गया था. इसके बावजूद केंद्र में बैठी मोदी सरकार ने प्रदेश सरकार पर कोई कार्रवाई नहीं की. न तो मुख्यमंत्री बदला गया या न ही प्रदेश सरकार में कोई बड़ा बदलाव किया गया. इसी तरह की हिंसा गैर-बीजेपी शासित राज्यों में होती, तो शायद केंद्र सरकार इस तरह से मूकदर्शक बनी नहीं रहती और न ही प्रधानमंत्री वहाँ जाने से कतराते.


एन. बीरेन सिंह सरकार को बचाने पर ही रहा ज़ोर


मणिपुर में हिंसा का स्केल काफ़ी व्यापक था. उस दौरान महिलाओं, बच्चों के साथ बर्बरतापूर्ण हरकत हुई. स्थानीय लोगों के नागरिक और संवैधानिक अधिकारों से खिलवाड़ का लंबा सिलसिला चला. इन तमाम परिस्थितियों के लिए संविधान में आपातकालीन व्यवस्था के तहत अनुच्छेद 356 की व्यवस्था की गयी है. मणिपुर में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए पर्याप्त आधार केंद्र सरकार के पास था. इसके बावजूद राष्ट्रपति शासन को लेकर केंद्र सरकार सिर्फ़ और सिर्फ़ इस वज्ह से ख़ामोश रही क्योंकि मणिपुर में बीजेपी की सरकार थी. गैर-बीजेपी दल की सरकार होने पर इस तरह की ख़ामोशी की गुंजाइश कम ही थी. मोदी सरकार के इस रवैये और ख़ामोशी से मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह जवाबदेही से साफ़-साफ़ बच गए.


मणिपुर मसले को संसद में भी नहीं मिली जगह


इतना ही नहीं मणिपुर के इतने महत्वपूर्ण और संवेदनशील मसले को संसद में भी अलग से चर्चा के लिए जगह नहीं मिल पायी. मणिपुर हिंसा की शुरूआत के बाद संसद का मानसून सत्र, बीच में विशेष सत्र और फिर शीतकालीन सत्र होता है. उसके बाद इस साल अंतरिम बजट के लिए संक्षिप्त बजट सत्र भी होता है. इनमें से किसी में भी मणिपुर हिंसा पर अलग से चर्चा नहीं होती है. सत्ताधारी दल और विपक्षी दल नियमों के फेर में उलझाकर मणिपुर के मसले को स्वतंत्र रूप से संसदीय चर्चा का हिस्सा नहीं बनने देते हैं. ऐसा नहीं होने के लिए कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की ज़िम्मेदारी बनती है, लेकिन बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जवाबदेही सबसे अधिक थी.  संसद में इस मसले पर अलग से चर्चा हो, इसके लिए प्रधानमंत्री की ओर से कोई सार्थक पहल होता हुआ कभी नहीं दिखा था.


पूरे प्रकरण में राजनीतिक तंत्र भी सवालों के घेरे में


इसी का नतीजा हुआ कि संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा होने के बावजूद राजनीति में उलझकर मणिपुर के लोगों के दु:ख-दर्द को संसद में चर्चा के लिए जगह तक नहीं मिल पायी. संसद में सरकारी और राजनीतिक जवाबदेही पर सार्थक बहस तक नहीं हो पायी. इतने महीने बीत जाने के बाद भी अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मणिपुर नहीं जाना, न सिर्फ़ मणिपुर के लोगों के नज़रिये, बल्कि देश के हर नागरिक के संदर्भ में चिंतनीय पहलू है. इससे प्रधानमंत्री के साथ ही केंद्र सरकार की मंशा पर तो सवाल उठता ही है, भारतीय संसदीय व्यवस्था के तहत विकसित राजनीतिक तंत्र भी सवालों के घेरे और प्रासंगिकता के कटघरे में आ जाता है.


मणिपुर हिंसा प्रकरण भारत के लिए बद-नुमा दाग़


यह नहीं भूलना चाहिए कि मणिपुर का प्रकरण पूरे भारत के लिए बद-नुमा दाग़ है. इस हिंसा के दौरान हमने वो तस्वीरें भी देखी है, जिससे मानवता शर्मसार हो जाए. भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. भारत की पहचान बड़ी सैन्य ताक़त के रूप में होती है. सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक तौर से दुनिया की शीर्ष शक्तियों में से एक के रूप में भारत की गिनती होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार इस पहलू को दोहराते रहते हैं कि उनके कार्यकाल में भारत ने विकास के पैमाने पर लंबी छलाँग लगाया है. ऐसे-ऐसे दावों के बीच यह कड़ी सच्चाई है कि मणिपुर में  हिंसा में मारे गये लोगों के शव का अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा था. शवों को महीनों मुर्दाघरों में रखना पड़ा था.


ऐसी घटनाओं से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि धूमिल


मणिपुर में ऐसे हालात के लिए न तो आज तक किसी प्रकार की राजनीतिक जवाबदेही तय हो पायी है और न ही देश के प्रधानमंत्री वहाँ जाकर लोगों को भविष्य में सुरक्षा के प्रति आश्वस्त कर पाए हैं. प्रधानमंत्री की ओर से बार-बार स्थानीय गुहार की अनदेखी ही अब मणिपुर के लोगों की नियति बन गयी है. मणिपुर जैसी हिंसा से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल होती है. ऐसे में इस पर राजनीति करना और अब तक प्रधानमंत्री का वहाँ नहीं जाना नागरिक नज़रिये से सही नहीं ठहराया जा सकता है.


स्थानीय लोगों का भरोसा टूटना नहीं चाहिए


पूरे प्रकरण में अब सबसे महत्वपूर्ण मसला और सवाल..सरकारी और राजनीतिक तंत्र पर स्थानीय लोगों के भरोसे का भी है. इस भरोसे को क़ायम रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दलगत प्रतिबद्धता के साथ ही राजनीतिक मजबूरी त्यागकर जल्द-से-जल्द मणिपुर का दौरा करना चाहिए. कम-से-कम लोक सभा चुनाव के मद्द-ए-नज़र उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर का दौरा करेंगे, जिससे भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में वहाँ के स्थानीय लोगों का भरोसा बरक़रार रहे. इसके साथ ही दौरा कर प्रधानमंत्री को ऐसा संदेश भी देना चाहिए कि मणिपुर और वहाँ के सभी लोग भी देश के बाक़ी राज्यों की भाँति ही महत्वपूर्ण हैं और पूरा देश इस दु:ख-दर्द की घड़ी में उनके साथ खड़ा है. यह संदेश सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहाँ जाकर ही दे सकते हैं.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]