मणिपुर में क्यों नहीं लग रहा राष्ट्रपति शासन..ऐसे हालातों के लिए ही तो संविधान में की गई है अनुच्छेद 356 की व्यवस्था
ढाई महीने से ज्यादा समय से मणिपुर हिंसा की आग में झुलस रहा है. मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति यानी एसटी स्टेटस की मांग को लेकर मणिपुर में 3 मई को मैतेई और कुकी समुदाय के बीच टकराव ने हिंसक रूप ले लिया था. उसके बाद से मणिपुर में अभी तक शांति बहाली सुनिश्चित नहीं पाई है.
इस बीच 19 जुलाई को एक वीडियो वायरल होता है, जिससे पूरा देश हिल जाता है. इस वीडियो में मणिपुर की दो महिलाओं को नग्न अवस्था में भीड़ ले जा रही होती है. वायरल होते ही जिसने भी इस वीडियो को देखा वो सन्न रह गया. वीडियो वायरल होने के बाद संसद से लेकर सड़क तक इस घटना की निंदा में आवाज तेज हो जाती है.
मानवता को शर्मसार करती घटना
मानवता को शर्मसार करती इस घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ तक की ओर से प्रतिक्रिया आती है. तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों से लोगों का गुस्सा मीडिया के अलग-अलग मंचों से बाहर आने लगता है.
ढाई महीने में भी नहीं सुधरे हालात
हिंसा शुरू होने के बाद से ही मणिपुर में इंटरनेट बंद कर दिया जाता है, लेकिन इस वीडियो के सामने आने के बाद ये समझा जा सकता है कि मणिपुर के हालात कितने बुरे हो चुके हैं. इन सबके बीच एक सवाल मौज़ू या प्रासंगिक हो जाता है कि क्या मणिपुर की स्थिति उतनी नहीं बिगड़ी है कि वहां संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जा सके.
लोकतांत्रिक मूल्यों वाले समाज पर तमाचा
वीडियो में भीड़ ने महिलाओं के साथ जो किया, वो एक सभ्य समाज और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शासन व्यवस्था वाले देश के लिए मणिपुर में बिगड़ते हालात की दास्ताँ बताने के लिए काफी है. इस वीडियो को 4 मई का बताया जा रहा है, जो हिंसा की शुरुआत के अगले दिन की है.
बद से बदतर होती गई मणिपुर की स्थिति
ये घटना मणिपुर के थोबल जिले की है. ढाई महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. चिंताजनक और शर्मनाक बात ये भी है कि जब भीड़ में से कुछ लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया..उससे पहले ये महिलाएं पुलिस की निगरानी में थाने ले जाई जा रहीं थी. भीड़ ने पुलिस से इन महिलाओं और उनके परिवार वालों को छीन लिया.उसके बाद भीड़ से कुछ लोगों ने इस वीभत्स और घिनौनी हरकत को अंजाम दिया.
वीडियो वायरल होने के बाद हुई गिरफ्तारी
जैसी ख़बरें आ रही हैं, उनके मुताबिक इस यौन उत्पीड़न की एफआईआर 18 मई को कांगपोकपी जिले में दर्ज की गई और उसके बाद केस को उचित कार्रवाई के लिए संबंधित थाने में भेज दिया गया. वायरल वीडियो में भले ही 2 महिलाएं दिख रही हैं, लेकिन महिलाओं की शिकायतों के मुताबिक तीन महिलाओं को भीड़ के सामने निर्वस्त्र होकर चलने को मजबूर किया गया. एक महिला के साथ खुलेआम गैंगरेप किया गया. गैंगरेप का विरोध करने और अपनी बहन को बचाने की कोशिश करने पर महिला के 19 साल के भाई को मार दिया गया. इतना ही नहीं इन महिलाओं के से एक के पिता को भीड़ में से कुछ दरिंदे पहले ही मार चुके थे.
ढाई महीने तक सुस्त पड़ा रहा प्रशासन
ताज्जुब की बात है कि घटना को घटे 75 दिन से ज्यादा हो जाता है और यौन उत्पीड़न से जुड़ी घटना को लेकर एफआईआर दर्ज हुए दो महीने बीत जाते हैं, तब भी मणिपुर पुलिस मुख्य आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पाती है. जब 19 जुलाई को वीडियो वायरल होता है और इस हरकत को लेकर पूरे देश में उबाल और आक्रोश का माहौल बन जाता है, तब 19 जुलाई की रात करीब डेढ़ बजे मणिपुर की पुलिस मुख्य आरोपी को गिरफ्तार करती है. उसके अगले दिन यानी 20 जुलाई को सुबह मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह इस गिरफ्तारी की जानकारी देते हैं.
घटना के ढाई महीने बाद वीडियो वायरल होने पर मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी होती है, ये मणिपुर सरकार की क्षमता पर संदेह पैदा करने के लिए काफी है. इसकी कल्पना करके कोई भी इंसान भय से कांप जाएगा कि अगर ये वीडियो वायरल नहीं होता, तो फिर अभी भी मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो पाती. ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो मणिपुर सरकार की मंशा पर भी सवालिया निशान लगाते हैं.
140 से ज्यादा लोग गंवा चुके हैं जान
फिलहाल मणिपुर के 5 जिलों इंफाल ईस्ट, इम्फाल वेस्ट, बिश्नुपुर, काकचिंग और थोबल में कर्फ्यू लगा है. मणिपुर में 3 मई को मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा की शुरुआत होती है. उसके बाद से मणिपुर जल उठता है. हिंसा की इस आग में अब तक 140 से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है. हिंसा में 5 हजार आगजनी की घटनाएं होती हैं. करीब 60 हजार लोग बेघर वाली जिंदगी जीने को विवश हो जाते हैं. हिंसा से जुड़े करीब 6 हजार मामले दर्ज किए जा चुके हैं. साढ़े छह हजार से ज्यादा लोगों को हिरासत में भी लिया गया. ये आंकड़े और तस्वीरें मणिपुर के हालात को बयां करने के लिए काफी है.
हिंसा और नफरत की ढेर पर बैठा मणिपुर
ढाई महीने से ज्यादा का वक्त होने के बावजूद मणिपुर हिंसा और नफरत की उस ढेर पर बैठा है, जिसमें भविष्य में और भयानक विस्फोट हो सकता है. मणिपुर की जो स्थिति इन ढाई महीने में बनी है, वो काफी नहीं है ये बताने के लिए कि मणिपुर की एन. बीरेन सिंह सरकार हालात को काबू करने में पूरी तरह से विफल रही है.
राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए क्या चाहिए?
हमारे संविधान में भाग 18 के तहत आपात उपबंधों की व्यवस्था की गई है. इसके तहत ही अनुच्छेद 356 में एक व्यवस्था है जिसे हम आम भाषा में राष्ट्रपति शासन के नाम से जानते हैं. अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा से संबंधित प्रावधान किया गया है.
अनुच्छेद 356 (1) में स्पष्ट तरीके से ये कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति का किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के तहत उस राज्य में आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है.
आम भाषा में इसे ही राष्ट्रपति शासन के नाम से हम जानते हैं. अब जो मणिपुर के हालात हैं, उसको देखते हुए इतना तो मानना ही पड़ेगा कि वहां नागरिक अधिकारों को लेकर संविधान में जिसकी व्यवस्था की गई है, उसके मुताबिक राज्य का शासन नहीं चल रहा है. राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राज्यपाल से रिपोर्ट मिलने की बात अनुच्छेद 356 में की गई है. हालांकि राज्यपाल से रिपोर्ट नहीं मिलने की स्थिति में भी राष्ट्रपति को ये लगे कि राज्य में संविधान के मुताबिक नहीं चल रहा है तो वे उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं.
पार्टी हित से परे है मणिपुर का मामला
व्यावहारिक तौर से इस अधिकार का इस्तेमाल केंद्र सरकार के दायरे में आता है. संविधान में ये कही नहीं लिखा है कि केंद्र में किसकी सरकार है और राज्य में किसकी सरकार..इस बात को ध्यान में रखकर अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसके बावजूद संविधान लागू होने के बाद से ही हम देखते आए हैं कि अनुच्छेद 356 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल केंद्र सरकार किस तरह से करते रही है. अमूमन ज्यादातर उन्हीं राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने की परंपरा दिखी है, जहां केंद्रीय सरकार से जुड़े दल की सत्ता न होकर विपक्षी दलों की सरकार हो.
अनुच्छेद 365 का भी हुआ है उल्लंघन
एक और बात है जो मणिपुर के संदर्भ में समझने की जरूरत है. संविधान के भाग 19 में शामिल अनुच्छेद 365 काफी मायने रखता है. अनुच्छेद 365 में केंद्र सरकार की ओर से दिए गए निर्देशों का पालन करने में राज्य सरकार के विफल रहने पर राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार राष्ट्रपति को देता है.
अनुच्छेद 365 में में कहा गया है कि
"जहां इस संविधान के किसी उपबंध के अधीन संघ की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हुए दिए गए किसी निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में कोई राज्य असफल रहता है, वहां राष्ट्रपति के लिए यह मानना विधिपूर्ण होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि जिसमें उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है."
अब मणिपुर में जो हिंसा 3 मई से शुरू हुई थी, उसके बाद वहां के हालात को सुधारने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से निर्देश तो जरूर दिए गए होंगे. लेकिन मणिपुर में जो हालात है, उसको देखते हुए ये तो कहा ही जा सकता है कि एन.बीरेन सिंह सरकार इसमें विफल रही. अनुच्छेद 365 के हिसाब से भी मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए वो सारी परिस्थितियां मौजूद नज़र आती है.
मणिपुर में क्या-क्या हुआ है, अंदाजा लगाना मुश्किल
मणिपुर में हालात बद से बदतर होते गए, इसके बावजूद एन बीरेन सिंह सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया. अब जिस तरह का वीडियो सामने आया है, उससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन ढाई महीनों में मणिपुर में किस-किस तरह की घटनाएं हुई होंगी.
राष्ट्रपति शासन राजनीतिक दुरुपयोग का मसला नहीं
ये वास्तविकता है कि राष्ट्रपति शासन लगाने के अधिकार का राजनीतिक दुरुपयोग किया जाता रहा है. लेकिन उससे भी बड़ा और कड़वा सच ये है कि मणिपुर में जो कुछ भी हुआ, या जो कुछ भी हो रहा है, वो इन राजनीतिक लाभ-हानि से परे की घटना है. ये मानव अस्तित्व के साथ ही संविधान के तहत मिले जीवन की गरिमा और सम्मानपूर्वक जीने के मूल अधिकार से जुड़ा मसला है. आखिरकार संविधान निर्माताओं ने भविष्य में किसी भी राज्य में मणिपुर जैसे हालात पैदा न हो, यही सोचकर तो संविधान में अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 365 की व्यवस्था की थी.
संवैधानिक अधिकारों की रक्षा सरकार की जिम्मेदारी
वायरल वीडियो में जो दिख रहा है, वो पार्टी हितों के तहत पक्ष-विपक्ष रखने से जुड़ा राजनीतिक विमर्श का मुद्दा नहीं है. ये सिर्फ़ गंभीर कार्रवाई से जुड़ा कानूनी मुद्दा नहीं है. ये संजीदगी के साथ सोचने के लिहाज से सामाजिक और राजनीतिक जिम्मेदारी तय करने और विमर्श का मुद्दा है.
राजनीतिक जवाबदेही तय होनी चाहिए
वीडियो वायरल होने के बाद तो प्रधानमंत्री, तमाम केंद्रीय मंत्रियों, राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की ओर से सख्त प्रतिक्रियाएं तो आ गईं, लेकिन पिछले ढाई महीने से मणिपुर के लोग जिस त्रासदी को झेलने को विवश हैं, उसकी राजनीतिक जवाबदेही किसकी होगी, ये सवाल बेहद प्रासंगिक है. अगर राजनीतिक जवाबदेही तय करनी है तो मणिपुर में एन बीरेन सिंह सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया जाना ही संवैधानिक जरूरत भी है.
पक्ष-विपक्ष से परे सोचने की जरूरत
वायरल वीडियो को लेकर समाज में जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है, उसमें भी एक जो ट्रेंड दिख रहा है कि इस घटना को लेकर, वो भी बेहद चिंताजनक है. ये घटना समाज के हर लोगों के चेहरे पर एक तमाचा है. इसके बावजूद सोशल मीडिया पर मेजॉरिटी और माइनॉरिटी के विमर्श के साथ ही पार्टियों को समर्थन के आधार पर लोग बहस करते नजर आ रहे हैं. मीडिया के अलग-अलग मंचों पर ख़ासकर सोशल मीडिया पर ज्यादा, कुछ लोग और नेता, इस घटना-उस घटना, इस समुदाय-उस समुदाय, उस वक्त-इस वक्त, मेरी पार्टी-तुम्हारी पार्टी में घटी घटना जैसे बिन्दुओं को आधार बनाकर बहस में उलझे हैं. ये भारत जैसे देश के लिए खतरनाक ट्रेड है.
मणिपुर में महिलाओं के साथ जो भी हुआ वो बेहद ही शर्मनाक और निंदनीय है. इस तरह की घिनौनी हरकत न सिर्फ एक राज्य के लिए बल्कि पूरे देश, समाज और उससे भी बढ़कर मानवता के लिए कलंक है. जिस तरह की घटना मणिपुर में हुई है, वो समुदाय, धर्म, पार्टी और विचारधारा के आधार पर पक्ष-विपक्ष रखने का मामला नहीं है. ये सामाजिक प्राणी होने के नाते हर नागरिक को सोचना होगा, ताकि भविष्य में देश में फिर से भीड़ से निकले चंद लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम न दें.
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