मणिपुर में बीते महीने की 3 मई को आदिवासी कुकी और गैर आदिवासी मैतेई समुदाय के बीच हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद जो हिंसा की आग भड़की वो इस घटना के एक महीने बाद तक बुझ नहीं पाई है. मैतेई समुदाय की तरफ से जारी किए गए गैर आधिकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस हिंसा के चलते वहां पर 98 लोगों की मौत हो गई जबकि 310 से ज्यादा घायल हुए हैं. आगजनी के 4 हजार 14 मामले दर्ज किए गए हैं. ताजा हालात ये है कि चुरासांगपुर जिले में जो हिंसा शुरु हुई थी वो अभी तक चल रही है. हालांकि एक दो दिन हिंसा होने के बाद चीजें सामान्य हो गई थी.
ऐसा मैसेज आया था कि आर्मी चीफ आ रहे हैं. मिनिस्ट ऑफ स्टेट और होम मिनिस्टर आ रहे हैं तो अचानक हिंसा दोबारा शुरू हो गई. तीन दिनों तक गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर दौरे पर थे. करीब 30 से 32 संगठनों के साथ बातचीत हुई है. खद गृह मंत्री अमित शाह ने अपील की है कि जिन लोगों ने हथियार उठाएं हों वो वापस करे. कुकी भाइयों की तरफ से जो सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन किया गया था उन्हें भी काम न रोकने के लिए चेतावनी दी गई है.
मणिपुर में क्यों नहीं शांति
कुकी और मैतेई समुदाय के आमलोग शांति चाहते हैं. लेकिन हिंसा फैलाने का काम वही कर रहा है जिनके पास आर्म्स और एम्यूनिशन्स हैं, एम-16 हैं, स्नाइपर है, वे साधारण जनता नहीं है. ऐसे में अगर भारत की संप्रभुता पर म्यांमार के नागरिक अगर हमला करेगा तो ये इंडिया की इंटीग्रिटी पर सवाल उठेगा. भारत को डटकर इसका जवाब देना चाहिए. ये बहुत बड़ी बात है और ये सिर्फ मणिपुर का मामला नहीं है.
जिनके पास पैसा और पावर है वे मणिपुर में शांति को खत्म करके यहां पर अस्थिरता लाकर अपना ड्रग्स के बिजनेस जैसा काम करना चाहते हैं. ये यहां के आम लोगों का सोचना है. कुछ लोग कहते हैं कि मुख्यमंत्री ने कुकी भाइयों पर सख्ती की है, एक्शन लिया है. लेकिन अगर आप डेटा देखेंगे तो रिजर्व फॉरेस्ट में से 2 या 3 कुकी को ही निकाला गया था, बाकी सारे मैजोरिटी के लोग थे.
कौन लगा रहा शांति में आग
मणिपुर काफी छोटी सी जगह है. मणिपुर में अगर बाहर से घुसपैठ खत्म हो गया, और वे लोग जिनके पास आर्म्स-एम्युनिशंस हैं, वे अगर यहां के आम लोगों को परेशान करना छोड़ दे तो मणिपुर में बिल्कुल शांति हो जाएगी. चिंता इसी बात की है कि जिनके पास स्नाइपर जैसे हथियार है, म्यांमार से आ रहे हैं उन्हें रोका जाए तो शांति हो जाएगी.
अनुसूचित जाति की मांग का मुद्दा इतना गंभीर मामला भी नहीं है. मैं खुद गृह मंत्री अमित शाह के प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान था, जहां पर ये कहा जा रहा था कि हाईकोर्ट का फैसला इस हिंसा के लिए इतना बड़ा जिम्मेदार नहीं है क्योंकि हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. सिर्फ इसके लिए इस तादाद में हिंसा नहीं हो सकती है. हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यही वजह है. ऐसे में जिन लोगों के परिजन मारे गए हैं, उन्हें सिर्फ 5 या 10 लाख रुपये देने भर से कुछ नहीं होगा.
दोनों तरफ इस हिंसा में भारी नुकसान हुआ है. हमलोग ये चाहते है कि अब आगे क्या हो, जो हुआ उसके बारे में फिलहाल नहीं सोचना चाहते हैं. अभी 40 हजार से ज्यादा लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं. बच्चे लोगों का बुरा हाल है. मणिपुर यूनिवर्सिटी में जो पीएचडी कर रहे हैं उनका क्या भविष्य होगा? 120 से 140 बच्चे जो इंफाल में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं, उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है. मणिपुर काफी छोटी जगह है. ये राजस्थान या उत्तर प्रदेश के एक जिला से भी छोटा है. ऐसे में ये जरूरी है कि सभी शांति के साथ यहां पर रहें.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]