छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रेप पर एक फैसला सुनाया है जो थोड़ी तकलीफ देता है. कोर्ट ने कहा है कि पति के सेक्सुअल एक्ट को रेप नहीं कहा जा सकता, इसके बावजूद कि उसने ताकत का इस्तेमाल किया था. जिस मामले में यह फैसला सुनाया गया है, उसमें एक औरत ने अपने पति पर रेप का आरोप लगाया था. यह भी कहा था कि दहेज की मांग करते हुए पति उसे पीटा करता है, परेशान करता है और उसका रेप करता है. लेकिन अदालत को रेप वाला आरोप सही नहीं लगा.


हमारा देश दुनिया के उन चंद देशों में शुमार है जहां मैरिटल रेप यानी शादी में बलात्कार कोई क्राइम नहीं है. इसके बावजूद कि भारत में 15 से 49 साल के बीच की हर तीन में से एक महिला, जिसकी कभी शादी हुई हो, कहती है कि उसे उसके पति से किसी न किसी किस्म की हिंसा का शिकार बनाया है. हमारा कानून कहता है कि 18 साल से ज्यादा उम्र की शादीशुदा औरत के साथ पति के यौन संबंध रेप के दायरे में नहीं आते. वैसे कुछ हफ्ते पहले केरल का हाईकोर्ट इससे उलट फैसला सुना चुका है. वह कह चुका है कि औरत की मर्जी के बिना उससे संबंध बनाना, हर हाल में रेप है- चाहे संबंध उसके पति ने बनाया हो.


कानून क्या कहता है
देश के मुख्य क्रिमिनल कोड आईपीसी का सेक्शन 375 रेप की व्याख्या करता है. इसका एक अपवाद (एक्सेप्शन 2) है जिसमें कहा गया है कि पति और पत्नी (जोकि 15 साल से अधिक की है) के बीच का शारीरिक संबंध क्रिमिनल नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे 18 साल कर दिया है. मतलब 18 साल से अधिक उम्र की शादीशुदा औरत से पति का जबरन संबंध बनाना रेप नहीं है. इस तरह कानून ही शादीशुदा और गैर शादीशुदा औरतों में भेद करता है. इस लिहाज से यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है. अनुच्छेद 14 और 15 भेदभाव को प्रतिबंधित करते हैं और 21 जीवन और व्यक्तिगत आजादी के अधिकार की गारंटी देता है.


इसमें एक बात दिलचस्प है. वह यह कि आईपीसी भारत को ब्रिटिश सरकार की देन है. लेकिन ब्रिटेन ने खुद अपने कानूनों में समय के साथ बदलाव कर लिए. 1991 के आर बनाम आर जजमेंट में हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने कहा था कि इंग्लिश क्रिमिनल लॉ में पति का बीवी से रेप करना, अपराध है.


लेकिन हम घिसे पिटे कानूनों के आसरे हैं
पर हम उन्हीं घिसे-पिटे कानून के आसरे हैं. अभी इसी साल एक मामले में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े पूछ चुके हैं कि ‘पति कितना भी क्रूर हो... जब दो लोग पति और पत्नी के तौर पर रह रहे हों, तो उनके बीच के यौन संबंध को क्या रेप कहा जा सकता है?’ कई साल पहले सुप्रीम कोर्ट एक ऐसी याचिका खारिज कर चुका है जिसमें एक एमएनसी एग्जीक्यूटिव ने अपने पति पर मैरिटल रेप का आरोप लगाया था. अदालत ने यह कहकर इस केस को खारिज कर दिया था कि यह उसका पर्सनल कॉज है, पब्लिक कॉज नहीं. ऐसी याचिकाएं दायर होती रहती हैं लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात होते हैं. सुप्रीम कोर्ट और सरकारी वकील भी कई बार कह चुके हैं कि मैरिटल रेप को अपराध कहने से ‘सामाजिक औऱ पारिवारिक व्यवस्था चरमरा जाएगी.’ बेशक, बेडरूम में किसी की हत्या नहीं की जा सकती, किसी को पीटा नहीं जा सकता. इनके लिए जेल की सजा है. लेकिन यौन उत्पीड़न किया जा सकता है, उसके लिए कोई सजा नहीं है. चूंकि बीवी के शरीर पर पति का पूरा हक होता है. वह उसकी निजी संपत्ति जो है!


मैरिटल रेप पर दुनियाभर की राय
वैसे दुनिया के कई देशों में मैरिटल रेप अपराध है. 70 के दशक से पहले तक ऐसा नहीं था. पत्नी के साथ संबंध बनाना, चाहे सामान्य तरीके से हो या जबरन, मैरिज कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा माना जाता था. लेकिन इसके बाद महिला अधिकारों के हिमायतियों ने औरत के शरीर पर उसकी सेक्सुअल अथॉरिटी की मांग करनी शुरू की जोकि शादी के भीतर भी कायम रहती है. धीरे धीरे इस बात को समझा गया. 2019 तक 150 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना जाता है. कुछ देशों में मैरिटल रेप साफ तौर से अपराध है, और कुछ देशों में कानून में पति या किसी भी अन्य व्यक्ति की तरफ से किए जाने वाले रेप के बीच फर्क नहीं किया जाता. जैसे जॉर्जिया में मैरिटल रेप क्रिमिनल कोड के आर्टिकल 11-1 और 137 में खास तौर से अपराध है. जबकि उक्रेन का कानून मर्दों और औरतों के रेप को अपराध बताता है लेकिन स्पाउजल रेप को उससे छूट नहीं देता.


विमेन्स स्पेस: पेट्रनेज, प्लेस एंड जेंडर इन द मेडिएवल चर्च नामक की एक किताब में अमेरिकी हिस्टोरियन वर्जीनिया चीफलो रेंग्वेन ने कहा है कि ‘टू रेप’ लैटिन शब्द रेपेरे से बना है जिसका मतलब है, चोरी करना, या कब्जा करना. लेकिन उस चीज़ की चोरी नहीं की जाती, जिस पर आपका स्वामित्व होता है, और आदमी अपनी बीवी का स्वामी है तो उसकी तरफ से बल प्रयोग रेप नहीं कहलाया जाता.


कुछ कानूनी प्रावधान हैं
भारत में मैरिटल रेप भले अलग से कोई अपराध नहीं लेकिन कुछ मामलों में औरतों को मदद मिल जाती है. जैसे आईपीसी के सेक्शन 498 ए और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का सहारा लिया जा सकता है. सेक्शन 498 ए में पति या उसके किसी संबंधी की तरफ से क्रूरता करने पर तीन साल की सजा है, और जुर्माना भी भरना पड़ता है. इसी तरह 2005 के एक्ट में भारतीय कानून के तहत यौन उत्पीड़न करने पर सजा मिलती है. हां, दिक्कत यह है कि मेजिस्ट्रेट के पास पत्नी से रेप करने पर पति को अपराधी ठहराने का कानूनी विकल्प नहीं है, न ही वह उसे सजा दे सकता है. इसीलिए जब यौन हिंसा अपराध माना जाता है तो किताबों से सिर्फ मैरिटल रेप के अपवाद को हटाने की कोशिश क्यों नहीं की जाती. 2018 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था जिसका नाम था विमेन्स सेक्सुअल, रीप्रोडक्टिव एंड मेंस्ट्रुअल राइट्स बिल.


इसमें दूसरे अधिकारों के साथ मैरिटल रेप को अपराध बताया गया था. लेकिन बिल को सरकार का समर्थन नहीं मिला, और 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ बिल लैप्स हो गया. इससे पहले 2000 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पति के यौन शोषण को भी उसी तरह अपराध माना जाना चाहिए जैसे शारीरिक हिंसा को माना जाता है. जस्टिस वर्मा कमिटी ने 2012 में निर्भया मामले के बाद इसी तरह का सुझाव दिया था.


मानना चाहें तो मानें कि एनसीआरबी के 2019 के आंकड़े देश की 70% औरतों को घरेलू हिंसा की शिकार बताते हैं. राष्ट्रीय महिला आयोग कह चुका है कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के घरेलू उत्पीड़न में इजाफा हुआ है. अब चूंकि आंकड़े ही नहीं तो आप मैरिटल रेप के मामलों का क्या ब्यौरा देंगे. लेकिन जिस मैरिटल रेप को 1993 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार हनन बता चुका है, उसे जारी रखना किस परंपरा को सहेजने की नामाकूल कोशिश है. यह लीगल रेपिस्ट के साथ जिंदगी बिताने की सजा से ज्यादा और क्या है.


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


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