बलोचिस्तान का जहां तक सवाल है तो यह समझना होगा कि किसी के साथ सबसे बड़ा जुल्म तब होता है, जब उसकी आजादी पर कब्जा कर लिया जाए. हम जब बलूचिस्तान में होने वाले जेनोसाइड की बात करते हैं, तो मेरा मानना है कि इसे एक तजुर्बागाह (एक्सपेरिमेंटल लैंड) के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. पाकिस्तान अपने इंतहाई मजालिम (उत्पीड़न)  को बलूचिस्तान के लोगों पर इस्तेमाल करता है. आप जब यहां होनेवाले अत्याचारों की दास्तां जानेंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे कि क्या इस तरह के जुल्म भी होते हैं? फिर अगर हम पाकिस्तान की बात करें और देखें कि रिलीजस बुनियाद पर किस-किस बुनियाद पर लोगों को मारा जाता है, तो कौन सुरक्षित है पाकिस्तान में? न हिंदू सेफ है, न मुस्लिम सेफ है, न सिख सेफ है, न अहमदिया सुरक्षित है. जिस मुल्क का कानून ही उन लोगों को जो पाकिस्तान के बनाने में हुई जद्दोजहद का हिस्सा रहे, मतलब अहमदियों को काफिर करार देता है, फिर उनकी इबादतगाह (प्रार्थनास्थल) जलाई जाती है, फिर उनका कत्लेआम होता है, फिर ये मायने ही नहीं रखता. गवर्नर तासीर इसके मिसाल हैं. जहां गवर्नर तक सेफ नहीं मजहबी जुनूनियत (रिलीजस फैनेटिसिज्म) से, वहां आम जनता क्या ही होगी?


इससे हटकर अगर आप आज के हालात देखें. वहां छोटी-छोटी बच्चियों के साथ जो किया जा रहा है, 13-14 साल से लेकर 18-20 साल तक के उम्र की बच्चियों को जबरन मुसलमान बनाकर उनकी शादियां कराई जाती हैं. उनके साथ फिर क्या होता है, किसी को नहीं मालूम, उनसे किसी को मिलने भी नहीं दिया जाता. कोई रोकनेवाला नहीं है. श्रीलंकाई मैनेजर का मामला आपको पता ही है, जब उनको सड़क पर जला दिया गया, ब्लासफेमी के इल्जाम में. अभी एक बात पता चली कि एक जलसे (पार्टी) में एक बंदे को उसके चंद लफ्जों पर पूरे मजमे ने घसीटकर मार डाला. किसी से कोई पूछनेवाला नहीं है कि क्यों लोगों को मारा जा रहा है. कोई कानून नहीं है. एक तरफ तो यहां फौज है, दूसरी तरफ मजहबी जुनूनी मुल्ले हैं. दोनों मिलकर इस मुल्क को चला रहे हैं. 


कब्जे के बाद के जो हालात हैं, आज 75 सालों से बलूचिस्तान में जो बेसिक जरूरियात हैं, जैसे रोजगार है, एडुकेशन है, पानी है, हेल्थ है, बलूचिस्तान को इन इंसानी हकूकों (अधिकार) से मुबर्रा (आजाद) कर दिया गया है. आज जो है वहां पाकिस्तान के डेड स्क्वॉड के कब्जे में है. जो बलूचिस्तान के स्कूल या हस्पताल थे, वो अफ्रीकी छावनियां बन गई हैं, वहां एफसी (फ्रंटियर कॉर्प्स) तैनात हैं. बलूचिस्तान में आपको हयात बलोच की मिसाल याद करनी चाहिए. जुल्म यहां इस लेवल पर है कि एक गरीब बच्चे के सामने, जिसका बाप मजदूरी करता है या मां कशीदा करती है, और वह पढ़ने बाहर जाता है. छुट्टियों में वह अपने घर मकरान आता है. यहां उसके मां-बाप के सामने हाथ बांध कर, वह भी मां के दुपट्टे से ही, गोलियां मारी जाती हैं. मां-बाप की 20-22 साल की कुर्बानियां उनकी आंखों के सामने ही कत्ल कर दी जाती हैं. इंतहा देखिए कि जहां शहीद बलोच का कत्ल किया जाता है, वहीं पाकिस्तानी फ्लैग लगाया जाता है. बलूचिस्तान में यूनिवर्सिटी फंड न होने की वजह से बंद है. आप अगर देख लें तो लगेगा कि वह एफसी (फ्रंटियर कॉर्प्स) का हेडक्वार्टर है. वहां उनके टॉर्चर सेल हैं. क्या स्टूडेंट वहां पढ़ेंगे, जो खौफ में लगातार मुब्तिला (इंगेज्ड) हैं, उनके यूनियन को बंद किया गया, उन्हें जिंदानों (जेल) में कैद किया गया है. बलूच तो शिक्षा के लिए सिंध, पंजाब या इस्लामाबाद जाता है, तो उनकी प्रोफाइलिंग होती है. यहां जो बलूच लड़कियां पढ़ने आती हैं, तो इंतहा (हद) ये है कि उनके वॉशरूम में कैमरे लगाए जाते हैं. यहां मोर्टार के गोले बरसते हैं. आपको याद होगा कि दो बच्चों की मौत इन मोर्टार के गोलों से हुई थी और उसके मां-बाप इंसाफ मांगने यहां आए थे. बलूचिस्तान में असेंबली के सामने उन बच्चों की मैयत लेकर धरने दिए जाते हैं. वैसे, यहां असेंबली तो पाकिस्तान पर ईमां रखनेवालों की ही बनती है और जिसको 400 वोट नहीं आते, वो बलूचिस्तान का सीएम बनता है. 


हक की बात करने वाले हो रहे हैं कत्ल 


यहां जिसने भी अपने हकूक (अधिकार) की बात की, चाहे वह कलमकार हो, गजलकार हो, कलाकार हो, जर्नलिस्ट हो, सभी की जान गई है. 10 साल के अंदर 45 जर्नलिस्ट को मार दिया गया. जिसने भी आवाज उठाई, उनको या तो मार दिया गया या जिंदानों में कैद हैं. वह भी ऐसे जिंदानों में, जहां से कोई खबर नहीं आती. कोई 10 साल से कोई 12 साल से गायब है. चूंकि अदालतों तक मामला जाता नहीं, तो परिवारों को यह भी पता नहीं कि वो आदमी जिंदा है या मर गया. यहां मीडिया ब्लैकआउट है, इंटरनेशनल मीडिया नहीं आ सकती, एनजीओ भी अगर आते हैं तो उनको भी बलूचिस्तान में नहीं लाया जाता है. कोई ह्युमन राइट संगठन यहां नहीं आ सकता है. 


यहां रोजाना की बुनियाद पर बलूचों को लाशें दी जा रही हैं. एक उदाहरण दे रही हूं. किसी भी कौम के लिए त्योहार महत्वपूर्ण होते हैं. इस ईद पर भी बलूचिस्तान में पांच लाशें भेजी गईं. जब लोग दूर-दूर से आते हैं, ईद मनाने. जैसे होली-दीवाली पर करते हैं. ईद पर हरेक मुसलमा अपने घरों, अपने लोगों में रहना चाहते हैं और बलूचिस्तान को क्या मिला...पांच लाशें. ये बलूचिस्तान के 40-50 हजार घरों के लिए एक अफसोसनाक पैगाम है. दरअसल, वे हजारों परिवार इस सोच में पड़ते हैं कि ये किनकी लाशें हैं? हमारे लिए, बलोचों के लिए कोई त्योहार दरअसल त्योहार नहीं, कोई खुशी दरअसल खुशी नहीं. मुझे हैरत इस बात की है कि दुनिया इसको देख रही है. यहां इंसानों को जानवरों की तरह मारा जा रहा है और दुनिया खामोश है, जबकि एक इंसान या जानवर भी अगर अजीयत (तकलीफ) में है, तो दूसरी जगह इंकलाब आ जाता है. दूसरी जगह लोग ईद में शॉपिंग करते हैं, मजा करते हैं, हमारे लोग लाशें पहचानने जाते हैं, अस्पतालों के बाहर लाइन लगी रहती है. कहीं न कहीं लोग यह भी दुआ करते हैं कि ये उनके अपने ही किसी की लाश हो, ताकि वो निश्चिंत हो जाएं कि बंदा मर गया, वह कहीं तकलीफ नहीं सह रहा. इसका कारण यह है कि बलूचिस्तान में जिस तरह की टॉर्चरशुदा लाशें आती हैं, उनके मां-बाप भी नहीं पहचान पाते. मैं दुनिया से यही अपील करती हूं कि जिस तरह पाकिस्तान बलोचों का जेनोसाइड कर रहा है, कम से कम दुनिया इस कब्जागीरियत से बलूचों को छुड़ाने के लिए दखल दे. इंटरनेशल कम्युनिटी, इंडिया, यूनाइटेड नेशन्स समेत इस्लामिक नेशन्स से भी यही कहना चाहती हूं। 


मास ग्रेव और वॉशरूम में कैमरा ही है डेस्टिनी


हमारी खवातीनों (महिलाएं) तक को उठाया जाता है. जेलों में, थानों में, जिंदानों में वो कैद हैं. रेप केस हैं. एक बुजुर्ग को कहा गया कि वह अपनी बेटी दे दें, तो उनके बेटे को रिहा कर दिया जाएगा. एफसी कैंप में जो कैद हैं, वहां बलूचों को हाजिरी देनी पड़ती है. जब वह बुजुर्ग गए तो उन्हें ये कहा गया और बाद में उन्होंने खुदकुशी कर ली. ये फौज वही है जो बंगाल में थी और ये बलूचों के साथ वही कर रहे हैं, जो इन्होंने बंगाल में किया. इसलिए, दुनिया को दखल देनी चाहिए और इस अवैध कब्जे से बलूचिस्तान को छुटकारा दिलाना चाहिए. 1948 में जो जबरन कब्जा किया गया यहां पर, उसके फंदे से बलूचों को इंटरनेशनल कम्युनिटी बचाए. साथ ही इस दौरान फौज ने जो जरायम (अपराध) किए, उस पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में मुकदमा चले. बलूचिस्तान में जो मास ग्रेव मिले, जो वर्षों से जिंदानों में कैद हैं, जिन्हें दफना दिया गया और उनके प्यारों को पता भी नहीं कि उनके कब्रिस्तान कहां हैं? डेढ़ सौ से ज्यादा लाशें एक ही ग्रेव से मिलती हैं, ऐसी भी कब्रे हैं, जहां केवल नंबर लिखे हैं, नाम नहीं हैं. अभी चंद दिनों पहले निश्तर हॉस्पिटल की छत पर पांच सौ से छह सौ लाशें मिलीं और उन पर भी परदे डाले गए. कहा गया कि वे बलूच नहीं थे, लेकिन उनकी ड्रेस और कद-काठी तो यही बता रही थी. दुनिया कम से कम इन सवालों पर तो पाकिस्तान को जवाबदार बनाए. हजारों मांएं सड़कों पर हैं, तो पाकिस्तान को किसी अदालत में जवाबदेह तो बनाया जाए. 


आज जब दुनिया में सोशल मीडिया या आप जैसे मीडिया के दोस्तों के जरिए बलूचों की कहानी सामने आ रही है, तो पाकिस्तान कम से कम इनका जवाब तो दे. मैं कह तो रही हूं कि बलूचिस्तान को एक तजुर्बागाह बनाया गया है. यहां जो एटमी धमाका किया गया, उसकी वजह से कैंसर का ये गढ़ बन चुका है. खवातीन से लेकर बच्चों तक. कई तरह की स्किन डिजीज हुई. लोगों को सेफ और सेक्योर किए बिना यहां एटमी धमाका किया गया. यहां हरेक तरह का जरायम और जुर्म किया गया है. आज भी वहां माजूर (विकलांग) बच्चे पैदा होते हैं. ये पाकिस्तान से कौन पूछेगा, जब तक कोई बलूचों की आवाज नहीं बनेगा. सबसे बड़ा जुर्म तो किसी भी मुल्क या अवाम पर ये होता है कि उसके लोग गायब कर दिए जाएं. सोचिए कि बलूच किस हाल में होंगे, जब आज उसके हजारों लोग लापता हैं, फिर भी आर्मी ऑपरेशन जारी है, एजुकेशन गायब है, तालीमी इदारे मिलिट्री कैंप बन चुके हैं. एक यह भी अजीयत का सबब है. हमारे पास पीने का पानी नहीं है. बलूच आज भी उन जोहड़ों (तालाबों) से पानी पीते हैं, जहां बरसात का पानी जमा होता है, जहां जानवर और आदमी एक साथ पानी पीते हैं. रोजगार का एक किस्सा तो ये है कि पिछले रमजान में जब बलूच बॉर्डर एरिया में कुछ नौजवान रोजगार करने गए थे, तो आर्मी ने उनके इंजन में बालू डाल दिया, पानी छीन लिया और वो एड़ियां रगड़-रगड़कर मर गए. 


दुनिया बने बलूचों की आवाज, इंडिया से खास उम्मीद


बलूच अपने तौर पर लड़ रहा है, लेकिन इंटरनेशनल लेवल पर इसकी आवाज बनना जरूरी है. जिस तरह के मजालिम और जरायम पाकिस्तान रियासत और उसकी आर्मी बलूचों पर कर रही है, वह तो तकरीबन हर कौम और अवाम पर हो रहा है. इससे न सिंधी बचा है, न पश्तून बचा है, न अकलियतों (माइनॉरिटी) में हिंदू, सिख, अहमदी बचा है तो ऐसे मुल्क पर कम से कम दुनिया को हरेक तरह की पाबंदी तो लगानी ही चाहिए. बिजनेस को पाबंद करें, ताकि जिस लेवल पर ये इंसानी हकूक की पामाली कर रहा है, वह तो रुके. दुनिया को एक आवाज बन कर सामने आना होगा, ताकि इनको रोका जा सके. 


मैं इंडिया से खासकर ये तवक्को रखूंगी कि वो इंटरनेशनल लेवल पर बलूचिस्तान की आवाज बने. ये वह गिरोह है, वह रियासत है, जो अपने जरायम को हरेक लेवल पर पहुंचाएगी. अगर ये रियासत अधिक दिनों तक ऐसे ही चली तो इसके कहर से कोई नहीं बच पाएगा. हम अफगानिस्तान का एग्जाम्पल देख रहे हैं. उसको बर्बाद करने में पाकिस्तान का ही हाथ था. इंडिया को पॉलिटिकली सामने आकर बलूचिस्तान का साथ देना चाहिए