तलवार और प्रचार के बाद इंटरनेट वार, दिवाली के बाद क्रिसमस की मिठाई भी होगी कड़वी
भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई के अलावा पांचवें भी हैं और वे हैं सेक्युलर पंथी. यह पंथ खाज यानी विशेष तरह की खुजली के संक्रमण से फैला. इसके बाद कई तथाकथित सेक्युलरिज्म की खाज से ग्रस्त हो गए. कुछ समय पश्चात पीड़ितों को इसमें इतना मजा आया कि इन्होंने इस खाज से राज कायम करने का टारगेट बना लिया, जैसे- भारत विश्वगुरु बनने के मुहाने पर खड़ा है,ठीक वैसे ही सेक्युलर भी लगभग अलग पंथ बन चुका हैं. मगर इस उत्साह पर मौलाना तारिक जमील जैसे तत्व वज्रपात कर सब ध्वस्त करते रहते हैं.
दरअसल, एक पाकिस्तानी मौलाना हैं, इनका नाम है मौलाना तारिक जमील. सनातनी,कट्टर हिंदुओं से ज्यादा इनके एक बयान से सेक्युलर पंथी परेशान है. वे उन्हें जमकर कोस रहे हैं, अब किसी की रोजी रोटी पर आप वार करेंगे तो तिलमिलाना लाजिमी है. मौलाना जी की जुबान पर कहर बरसे, वह जहन्नुम में जाएं, मौलाना 72 हूर तो दूर खजूर को भी तरसे. यह हम नहीं, बल्कि सेक्युलर पंथी कह रहे हैं.
इन्हें समझ नहीं आ रहा कि मौलाना जी जैसे तत्वों को क्यों दीपावली और क्रिसमस की मिठाई में कड़वाहट नजर आ रही है, जबकि वे बेचारे तो अपने दीन को हीन होने से बचा रहे हैं. मतलब मीठी आंच में तैयार की गई मिठाइयां और इसकी चाशनी से इस्लाम पर कोई आंच ना आए. मौलाना साहब ने तो बस यही कहा कि पक्के मुसलमान को दिवाली और क्रिसमस की मिठाई नहीं खानी चाहिए. यह दीन के खिलाफ है, पैगंबर साहिब ने गैर मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में रुचि लेने और शरीक होने और मिठाइयां एवं व्यंजन खाने से मना किया है.
भले औसत दर्जे के व्यक्ति का कहना सुनना और मेरे जैसे का लिखना ज्यादा असरदार नहीं होता, मगर दौर सोशल मीडिया का दौर है जनाब है, गधे भी अरबी घोड़े बनकर दौड़ रहे हैं. कच्चा बादाम गीत हो या गाली गलौज… बुरे से बुरा लहजा खूब छा रहा है. कहा तो यह तक जा रहा है कि आजकल तो सब सोशल मीडिया की ट्रेडिंग से तय होता है. एक मेरे जैसे कस्सी को हत्थी (बिंडे) की ओर से देखने वाले गैर सेक्युलर पंथी ने मुझसे पूछा या इलाही ये माजरा क्या है?
काफी खोजबीन से पता चला कि मौलाना तारिक जमील जी ने दीपावली और क्रिसमस की मिठाई को लेकर जो कहा है, उससे इनके तन-बदन पर सांप लिपटे हुए है. अब इन सेक्युलर पंथियों से कोई पूछे कि मौलाना साहिब कोई सेक्युलर की खाज से ग्रस्त थोड़े हैं. वह तो अपने पैगंबर साहिब की बात मानने पर जोर दे रहे हैं. पैगंबर साहिब ने जो कहा है, वह तो करेंगे ही और अपनों से कराएंगे भी. वरना इस्लाम तो खतरे में आ जाएगा, क्योंकि आप तो मदद करोगे नहीं, इस्लाम को बचाने में इनका राज लाने में, इस्लाम की दावत फैलाने में.
वे बोले हमने तो गली गांव और बस्तियों में रहने वाले चिंटू, पिंटू, टोनी और राजा के अलावा अपने मित्र जैदी साहब, हुसैन भाई जान, महानगरों में बसे रौहिंग्या भाइयों और बांग्लादेशी जरुरतमंदों को दिवाली की जो मिठाई खिलाई थी, उन्हें तो बहुत अच्छी लगी थी. हम तो अब क्रिसमस की तैयारी में जुटे हैं. हमारे संगठन ने तो क्रिसमस की खुशी का इजहार करने के लिए इनकी पसंद की मिठाई के लिए नत्थू, फत्तू, किशन और बिशनु हलवाई को एडवांस में आर्डर भी दे दिया है. अगर सोशल मीडिया वायरल वाली क्लिप उन्होंने देख ली तो यह मिठाई तो हम गंगा और जमुना में बहानी पड़ेगी, क्योंकि सरस्वती में तो सिर्फ हरियाणा में ही कुछ जगह पानी है.
मौलाना की सुनने के बाद कई सज्जन लोग अब सोशल मीडिया पर संदेश भेज रहे हैं कि अगर कोई संगठन दीपावली पर गलती कर चुका हैं तो क्रिसमस पर ना करें, क्योंकि एक माह बाद क्रिसमस है. अगर इससे किसी का मजहब खतरे में आ रहा है तो आप घंटी ना बजाए. अब एक जनाब कह रहे हैं कि पाकिस्तान में बसे मौलाना तारीक जमील ठीक उसी तरह के जानी जान व्यक्ति है, जैसे गली, गांव, डेरों और खेड़ों में झोला छाप डाक्टर चिकित्सा पद्धति के महारथी होते हैं. यानी चल गया तो तीर, वरना तुक्का. अपने पड़ौसी देश वाले मौलाना के तीर बरसो से चल रहे हैं.
अब उन्होंने कहा है कि दीपावली की मिठाई खाना इस्लाम में नाजायज है. वैसे इस तरह के मौलानाओं का एक बड़ा जखीरा है, देश-दुनिया में भरा पड़ा है. कहीं से भी बांग लगा देकर इस्लाम ए दावत देने लगते हैं. रामानंद सागर के सीरियल रामायण ने टेलीविजन की दुनिया में इतिहास रचा था. इसमें लंका में बंधक बनाए गए हनुमान जी का एक संवाद है. जब वह महापंडित चार वेदों के ज्ञाता दशानन रावण को कहते हैं कि माता सीता का हरण करके आपने पाप किया है, इस संदर्भ में संवाद के बीच रावण अंहकार में डूब कर कहता है कि हे वानर तूं मुझे ज्ञान दे रहा है. इस पर हनुमान जी कहते हैं मैं तो वानर हूं और सही बात कोई मूर्ख भी कहे तो उसे मान लेना चाहिए.
मौलाना मूर्ख हैं…यह कतई नहीं कह जा रहा है. वह समझदार भी हो सकते हैं. बात तो उस गैर सेक्युलर पंथी की हो रही है, जो मौलाना जी से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं. उनका कहना है कि देर आयद दुरुस्त आयद…जल्द से जल्द ईद की सेंवइयां, दिवाली व क्रिसमस की मिठाइयों का आदान प्रदान बंद हो और नेताजी भी इफ्तहार पार्टी से दूर रहे.वरना इससे किसी के धर्म को खतरा हो सकता है. मैंने जब पूछा कि इससे तो सौहार्द प्रभावित होगा,उन्होंने गुस्से में कहा कि किसी का धर्म बच जाए, यह छोटी बात है क्या.
क्योंकि भारत में करीब 1300 साल पहले मोहम्मद बिन कासिम के हमले और दावत ए दीन का सिलसिला शुरु था. उस दौर से शुरु हुआ यह सिलसिला फर्जी इतिहास और सोशल मीडिया पर जुबानी जंग पर आकर टिक चुका है. एक ओर वे जो गंगा-जमुनी तहजीब की दुहाई देकर आपसी भाई चारे और सौहार्द की बातें हो रही हैं, दूसरी ओर जिनके पास इतिहास पढ़ने और उससे सीख लेने का समय नहीं है, वे बेचारे जोर लगाकर सिर्फ एक बात ही बोलना सीखे हैं और वह शब्द हैं….कुछ नहीं है, सब राजनीति है. अब देखों ना यही मौलाना कहता है कि जब मोहम्मद बिन कासिम जब सिंध में अपने लश्कर के साथ पहुंचा था तो उसमें सिर्फ 12 हजार लोग थे. वैसे प्रचंड मुर्खता की बात भी कहते हैं मौलाना साहिब वे कहते हैं कि उस समय सिंध के राजा दाहिर के डाकुओं ने उनके मोहम्मद बिन कासिम के लश्कर से लूटपाट की थी. अरे मौलाना साहिब जब कोई राजा होता है तो उसके पास सेना भी होती है,डाकू नहीं होते. उस समय डाकू आज के जिहादियों की तरह आउटसार्स नहीं होते थे.
आश्चर्य की बात यह यही मौलाना अपने एक वीडियो में बताते हैं कि इस्लाम भारत में कैसे आया… वह बताते हैं, और साथ में कहते हैं कि सबसे पहले मोहम्मद बिन कासिम ने 92 हिजरी में सिंध पर हमला किया,जब राजा दाहिर के डाकुओं ने मुसलमानों का काफिला लूट लिया. उसके बदले में लशकरकशी हुई और मोहम्मद बिन कासिम मुलतान तक पहुंच गया. पहले उसके पास सिर्फ 12000 का लश्कर था,लेकिन जब मुलतान पहुंचें तो वो लश्कर एक लाख हो चुका था.
तारीक जमील कहते हैं कि इस क्षेत्र के लोग मोहम्मद बिन कासिम से इतने प्रभावित होकर मुसलमान होते चले गए.यह पहला मौका था जब हिंदुस्तान के सिंध में इस्लाम की हुकूमत कायम हुई. इसके बाद अल्लाह के नेक बंदे हिंदुस्तान में आते रहे और दावत ए दीन देते रहे. इनकी वजह से यहां इस्लाम को खुशी से कबूल करना शुरु किया. शहाबुद्दीन गोरी ने उत्तर प्रदेश में हुकूमत कायम की और उनसे पहले महमूद गजनवी ने 17 हमले किए,लेकिन हुकूमत कायम नहीं की और फतेह हासिल कर चले जाते थे. इसके बाद कई मुस्लिम शासक रहे, इनमें मुगल भी थे,1857 में मुगल सत्ता भी ब्रिटिश हुकूमत स्थापित होने के बाद खत्म हो गई.
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