बजट 2020: सरकार! टैक्स कम, खर्च ज्यादा कीजिए, क्योंकि मांग बढ़ाने के लिए ठोस कदम बेहद जरूरी
इस साल विकास दर 5 फीसदी से नीचे रहने वाली है जो पिछले 11 साल का सबसे निचला स्तर है. नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी है जो चार दशक के सबसे निचले स्तर पर है.
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इस साल विकास दर 5 फीसदी से नीचे रहने वाली है जो पिछले 11 साल का सबसे निचला स्तर है. नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी है जो चार दशक के सबसे निचले स्तर पर है. नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ का मतलब होता है कि पिछले साल के मुकाबले हमारी-आपकी आमदनी कितनी बढ़ी.
इसे महंगाई दर से एडजस्ट नहीं किया जाता है. इसमें मामूली ग्रोथ का मतलब है कि लोगों की आमदनी काफी कम रफ्तार से बढ़ रही है. हमारे जैसे देश के लिए ये अच्छी खबर नहीं है.
मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर खस्ताहाल, निवेश कहां है?
मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर में विकास दर इस साल महज 2 फीसदी रह सकता है जो 15 साल का सबसे निचला स्तर है. इस सेक्टर में रोजगार के मौके बनते हैं. इसकी सुस्त चाल का मतलब है कि रोजगार के मौके नहीं बन रहे हैं.
ये बहुत बड़ा सिरदर्द है. इन सबको ठीक करने के लिए निवेश की जरूरत होती है. लेकिन इस साल निवेश बढ़ने की दर 17 साल के सबसे निचले स्तर पर है. इसी से जुड़ा है बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ जो पिछले साल के मुकाबले आधी रह गई.
अंदेशा है कि इस साल टैक्स कलेक्शन में करीब 2 लाख करोड़ रुपए तक की कमी हो सकती है. अकेले जीएसटी कलेक्शन अनुमान से 1 लाख करोड़ कम हो सकता है. ये सारे अहम आंकड़े हैं जिसके बैकग्राउंड में 1 फरवरी को बजट पेश होना है. इन आंकड़ो से साफ पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था बीमार है और इसको तत्काल इलाज की जरूरत है.अर्थव्यवस्था का इलाज कैसे हो?
इलाज कैसा होना चाहिए- इनकम टैक्स में कटौती कर, सरकारी खर्च बढ़ाकर, सरकारी संपत्तियों को बेचकर या कुछ और?
2019 में एक बड़ी घोषणा हुई थी. कंपनियों को लगने वाले टैक्स में भारी छूट दी गई थी. सबने तारीफ की. शेयर बाजार में इसका पूरे जोश के साथ स्वागत हुआ. इसका बिल रहा करीब 1 लाख करोड़. लेकिन इससे हालात बेहतर हुए क्या? बेहतरी के संकेत फिलहाल दिख नहीं रहे हैं. लेकिन कंपनियों की बैलेंसशीट थोड़ा दुरूस्त हुआ है जिसका आगे फायदा हो सकता है.
इसके बाद से ही यह मांग तेजी से बढ़ी कि कंपनियों को अगर 25 फीसदी टैक्स लगता है तो लोगों पर इनकम टैक्स का बोझ 42-43 फीसदी तक क्यों. लेकिन क्या हम इस बजट में इनकम टैक्स में कटौती की उम्मीद कर सकते हैं? जिस हिसाब से इस साल टैक्स कलेक्शन में कमी आई है, इनकम टैक्स में राहत की उम्मीद कम ही है और शायद इससे अर्थव्यवस्था तो तत्काल पटरी पर लाने में ज्यादा मदद भी नहीं मिलेगी.
अनुमान है कि कॉरपोरेट टैक्स या इनकम टैक्स में छूट का फायदा 2-3 फीसदी लोगों को ही होता है. लेकिन इसका बिल भारी भरकम होता है. ऐसे में इस बजट में इनकम टैक्स में कटौती की उम्मीद कम ही है. हां, सरकार दिलेरी दिखाए और मिडिल क्लास को राहत दे तो वो बात और है. ये ध्यान रखना होगा कि इस छूट से भी इकोनॉमी दौड़ने लगेगी ऐसा सोचना जल्दबाजी ही होगा.
दूसरा रास्ता-सरकारी खर्च बढ़ाना
अर्थव्यवस्था को सुधारने का दूसरा रास्ता है सरकारी खर्च बढ़ाना. ऐसे में अगर सरकारी घाटा ज्यादा बढ़े भी तो सरकार को इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए. बजट के पेपर के हिसाब से फिस्कल डेफिसिट जीडीपी का 3.3 फीसदी है. लेकिन अनुमान है कि असल में ये 5 फीसदी के आसपास है. ऐसे में घाटा और बढ़ाना रिस्की हो सकता है लेकिन मांग बढ़ाने के लिए यही एकमात्र रास्ता दिख रहा है.
सारे सूचकांक बता रहे हैं कि अर्थवस्था में मांग गायब है. नौकरियां नहीं मिल रही हैं, लोगों की आमदनी नहीं बढ़ रही है और अब महंगाई भी बढ़ने लगी है. ऐसे में लोगों ने खर्च करना बंद कर दिया है. कंजप्शन का योगदान देश की अर्थव्यवस्था में 60 फीसदी है. इसमें सुस्ती का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. इसीलिए इसपर ध्यान देने की जरूरत है. इसको दुरूस्त करने का फिलहाल एक ही तरीका दिख रहा है निवेश बढ़ाकर. जब मांग में सुस्ती हो तो ये उम्मीद रखना की प्राइवेट निवेश होगा, वो सही नहीं है. ऐसे में सरकार को ही निवेश बढ़ाना होगा और इसकी वजह से वित्तीय घाटा बढ़े भी तो कोई बात नहीं.
घाटा कम करने के लिए सरकार एक रास्ता अपना सकती है. कुछ सरकारी कंपनियां जैसे बीपीसीएल और एयर इंडिया को तत्काल बेच सकती है. साथ ही खाली पड़ी जमीन को मोनेटाइज कर सकती है. इन सबसे होने वाली आमदनी से वित्तीय घाटे को काबू में रखा जा सकता है.
हां, इस बार के बजट में सरकार का जोर दिलों को जीतने पर भी होना चाहिए. उसके बगैर अर्थव्यवस्था में जान फूंकना आसान नहीं होगा.
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