विपक्षी गठबंधन का नाम तय होने और एनडीए की बैठक के अगले दिन बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने अपना रुख एकदम स्पष्ट कर दिया है. मायावती ने साफ किया है कि उनकी पार्टी बीएसपी 2024 के लोकसभा चुनाव में न तो विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनेगी और न ही बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए का. मायावती ने दोनों ही गुटों से दूरी बनाने का ऐलान किया है.


2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस साल राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा  चुनाव होना है. मायावती ने ये भी साफ कर दिया है कि इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीएसपी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी.


विपक्षी गठबंधन और NDA दोनों से मायावती की दूरी


विपक्षी गठबंधन से मायावती की दूरी से बीएसपी को कितना फायदा पहुंचेगा, ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा. लेकिन इतना तय है कि मायावती के इस रुख से 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फायदा मिल सकता है. वहीं नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ देशव्यापी मोर्चाबंदी में जुटे 26 दलों के विपक्षी गठबंधन को ये एक बड़ा झटका भी है. इसकी प्रमुख वजह उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें हैं, जो केंद्र की सत्ता के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण है.


मायावती के रुख से बीजेपी को हो सकता है फायदा


हालांकि मायावती ने एनडीए से भी दूर रहने की बात की है, लेकिन ये एक तरह से बीजेपी के लिए लाभ की ही स्थिति सरीखा है. मायावती ने कांग्रेस पर सीधा निशाना साधते हुए कहा है कि कांग्रेस सत्ता में आने के लिए जातिवादी दलों से गठजोड़ कर रही है. मायावती का कहना है कि कांग्रेस की नीति, नियत और सोच ठीक नहीं है. कांग्रेस को लेकर मायावती के इस रवैया से ऐसा लगता है कि उन्हें उत्तर प्रदेश में अपने कोर वोट बैंक से कुछ हिस्सा कांग्रेस में जाने की आशंका है. ये अलग मुद्दा है.



मायावती अगर 2024 में यूपी में अकेले चुनाव लड़ती हैं तो ये बीजेपी के लिए कैसे फायदेमंद और विपक्षी गठबंधन के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता है, इसे समझने के लिए उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास और सियासी समीकरणों को समझना होगा.


यूपी में बीजेपी है बहुत बड़ी ताकत


फिलहाल उत्तर प्रदेश में बीजेपी बहुत बड़ी ताकत है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में उत्तर प्रदेश की बड़ी और निर्णायक भूमिका रही है. बीजेपी एनडीए के तले अपने कुनबे को बढ़ाने की मुहिम में जुटी है. लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता को हासिल करने में एक बार फिर उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए आधार साबित हो सकता है और बीजेपी की यही कोशिश भी रहेगी.



2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को उत्तर प्रदेश की 80 में से 62 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि उसके सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) को दो सीटों पर जीत मिली थी. इस तरह से एनडीए के खाते में 64 सीटें गई थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में कमाल ही कर दिखाया था. इस चुनाव में बीजेपी को 71 और उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को दो सीटों पर जीत मिली थी. यानी एनडीए के खाते में 80 में से 73 सीटें चली गई थी.


2014 में विरोधी वोटों के बंटने से बीजेपी को फायदा


बीजेपी को 2014 के मुकाबले 2019 में 9 सीटों का नुकसान हुआ था. इस नुकसान के पीछे के समीकरण से समझा जा सकता है कि कैसे मायावती के रुख से 2024 में बीजेपी को बड़ा फायदा हो सकता है.


लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस सभी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे. बीजेपी की सहयोगी अनुप्रिया पटेल की पार्टी थी और कांग्रेस का राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठजोड़ था.  इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में 42.63% वोट लाकर 61 सीटों के फायदे के साथ बीजेपी 71 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती है और अनुप्रिया पटेल की पार्टी महज़ एक फीसदी वोट लाकर 2 सीटें जीत जाती है.


वहीं समाजवादी पार्टी 22.35% वोट लाकर सिर्फ 5 सीट और कांग्रेस को 7.53% वोट पाकर दो सीट से संतोष करना पड़ता है. करीब 20 फीसदी वोट मिलने के बावजूद 2014 में बीएसपी का खाता तक नहीं खुलता है. समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी के बीच विरोधी वोटों का बिखराव होता है और इसकी साधी फायदा बीजेपी को मिलता है. अगर इस चुनाव में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी को मिले वोटों को जोड़ दें तो ये 49.65% हो जाता है. ये आंकड़ा बीजेपी और अपना दल (सोनेलाल) को मिले कुल वोटों से 6 फीसदी से भी ज्यादा है.


हालांकि वोट शेयर के आधार पर संसदीय व्यवस्था में 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट'  सिस्टम के तहत सीटों पर जीत का विश्लेषण तरीका नहीं है, इसके बावजूद ये अनुमान लगाया जा सकता है कि जब वोट शेयर में बड़ा अंतर हो तो सीटों पर जीत-हार को लेकर फर्क पड़ सकता है. 2014 में बीजेपी की जीत में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी के अलग-अलग चुनाव लड़ने का भी योगदान था, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.


मायावती-अखिलेश के साथ से बीजेपी को नुकसान


पांच साल बाद जब 2019 में लोकसभा चुनाव होता है तो समाजवादी पार्टी और मायावती एक साथ चुनाव लड़ते हैं. इसका नतीजा ये होता है कि बीजेपी को 2014 के मुकाबले 7.35% ज्यादा वोट लाने के बावजूद 9 सीटों का नुकसान हो जाता है.


2019 में समाजवादी पार्टी और मायावती दोनों के ही वोट शेयर में गिरावट आती है, इसके बावजूद मायावती की बीएसपी 10 सीटों पर और अखिलेश की पार्टी 5 सीटों पर जीत जाती है. मायावती को समाजवादी पार्टी से गठजोड़ का जबरदस्त फायदा मिलता है और बीएसपी शून्य से 10 पर आ जाती है. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के वोट शेयर में 4.24% की गिरावट होती है, फिर भी अखिलेश यादव की पार्टी 2014 की तरह ही 5 सीटें जीतने में सफल हो जाती है. कांग्रेस 6.36% वोट शेयर के साथ सिर्फ एक ही सीट जीत पाती है. 2019 में यूपी में बीजेपी, कांग्रेस और एसपी-बीएसपी के तौर पर मुख्य तौर से तीन धड़ा था.


सपा-बसपा के गठजोड़ का होता है असर


2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अलग थी, लेकिन मायावती और अखिलेश के हाथ मिलाने से ही बीजेपी को अच्छा खासा नुकसान उठाना पड़ा था. इस चुनाव में एसपी, बीएसपी और कांग्रेस को मिले वोट जो जोड़ दें तो ये करीब 44 फीसदी होता है, जबकि बीजेपी को अकेले ही करीब 50 फीसदी वोट हासिल हे थे. इसके बावजूद बीजेपी को 2014 की तरह यहां सफलता नहीं मिली थी.


सपा-कांग्रेस का गठजोड़ असरकारक नहीं


अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव की. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन था, जबकि मायावती की पार्टी अलग से चुनाव मैदान में थी. इस चुनाव में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत मिली थी. बीजेपी 403 में से 312 विधानसभा सीटों पर जीत गई थी. वहीं कांग्रेस के साथ के बावजूद समाजवादी पार्टी 177 सीटों के नुकसान के साथ महज़ 47 सीटों पर सिमट गई थी. मायावती की पार्टी को समाजवादी पार्टी से ज्यादा वोट मिले थे, इसके बावजूद बीएसपी सिर्फ 19 सीट ही जीत पाई थी. बीएसपी को 22.23%,जबकि समाजवादी पार्टी को 21.82% वोट मिले थे.


2017 और 2019 के चुनावी विश्लेषण से जाहिर है कि बीजेपी को नुकसान पहंचाने के लिए मायावती का अखिलेश यादव के साथ आना ज्यादा कारगर साबित होता है. इस मामले में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ का असर नहीं पड़ता है क्योंकि मायावती की पार्टी उस हालात में अलग से जो वोट हासिल करती हैं, वो एक तरह से बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो जाता है.


अलग-अलग लड़ने पर बीजेपी को फायदा


2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी हमने देखा था कि बीएसपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अलग-अलग होने से बीजेपी को आसानी से बहुमत हासिल हो गई थी. इस चुनाव में बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस अलग-अलग लड़ते हैं. इसका फायदा बीजेपी को मिलता है. पांच साल सत्ता में रहने और कोरोना महामारी के दौरान यूपी में योगी सरकार की किरकिरी होने के बाद भी बीजेपी सत्ता बरकरार रखने में कामयाब होती है. हालांकि उसे 57 सीटों का नुकसान उठाना पड़ता है. इस बार कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ रही समाजवादी पार्टी के प्रदर्शन में सुधार होता है और वो 64 सीटों के फायदे के साथ 111 सीटें जीत लेती है.


2022 का चुनाव मायावती के लिए दु:स्वप्न


मायावती के लिए 2022 का विधानसभा चुनाव किसी दु:स्वप्न से कम नहीं साबित हुए था. बीएसपी सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ती है, लेकिन जीत सिर्फ़ एक सीट पर मिल पाती है. उसके वोट बैंक में भी 9.35% की गिरावट आ जाती है. इतना बुरा हाल बीएसपी का विधानसभा चुनाव में कभी नहीं हुआ था. 2017 में बीजेपी की लहर के बावजूद बीएसपी 19 सीटें जीत गई थी. बीएसपी को 2012 में 80 सीटें, 2007 में 206 सीटें, 2002 में 98 सीटें, 1996 और 1993 में 67-67 सीटें और 1991 में 12 सीटें मिली थी. बीएसपी का पहला चुनाव यूपी में 1989 का विधानसभा चुनाव था, जिसमें उसे 13 सीटों पर जीत मिली थी. यानी पार्टी की स्थापना के करीब 38 साल बाद पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी की जो हालत हुई, उससे नीचे बीएसपी का कभी प्रदर्शन नहीं रहा लथा. हम कह सकते हैं कि एक तरह से विधानसभा से पार्टी का बोरिया-बिस्तर ही बंध गया.


मायावती के पास अभी भी बड़ा वोट बैंक


2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह का प्रदर्शन मायावती की पार्टी ने किया था, उससे बीएसपी के अस्तित्व पर खतरे को लेकर भी चर्चाएं होने लगी थी. पिछले 6 सालों में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में काफी बदलाव हुआ है. 2022 के विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमटने के बावजूद अभी भी उत्तर प्रदेश में मायावती के पास अनुसूचित जाति का एक बड़ा वोट बैंक है.


लोकसभा चुनावों की बात करें तो बीएसपी को 2019 में19.43% और 2014 में 19.77% वोट मिला था. समान वोट के बावजूद एक चुनाव में 10 सीटें आ जाती है और एक में खाता तक नहीं खुलता है. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी 27.42% वोट के साथ 20 सीटें जीतने में सफल रही थी. वहीं 2004 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी 24.67% वोट शेयर के साथ 19 सीटें जीत जाती है. ये आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा में अभी भी बीएसपी के पास तकरीबन 20 फीसदी के आसपास वोट बैंक है.


बीएसपी के लिए अकेले जीत हासिल करना मुश्किल


ये सही है कि बीएसपी अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही और जो भी वोट बैंक है, उसके दम पर बीएसपी के लिए अकेले बड़ी जीत हासिल करना बेहद मुश्किल है. हालांकि यही बीएसपी का वोट बैंक अगर बाकी विपक्षी दलों के साथ मिल जाता है तो ये बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन सकता है. इसकी बानगी बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव में देख चुकी है. उसमें भी अगर बीएसपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तीनों मिलकर लड़े तो 2024 में इस गठजोड़ से उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है, इसकी संभावना बनी रहेगी.


बिना मायावती बीजेपी को बड़ा नुकसान पहुंचाना मुश्किल


अभी फिलहाल विपक्षी गठबंधन के जरिए देशभर में वन टू वन फॉर्मूला के तहत  2024 में बीजेपी को घेरने की कवायद चल रही है, विपक्ष के लिए उसकी सार्थकता उत्तर प्रदेश के समीकरणों को साधे बिना अधूरी है. उत्तर प्रदेश फिलहाल बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत है. बीजेपी यहां बेहद मजबूत स्थिति में भी है. यहां के लिए उसके पास नरेंद्र मोदी का चेहरा तो है ही, उसके साथ ही बीजेपी के पास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा दमदार नेता भी हैं. इससे उत्तर प्रदेश में बीजेपी की ताकत को और बल मिलता है. इस चुनौती से पार पाने में मायावती के बिना कोई भी विपक्षी गठबंधन यूपी में ज्यादा असरकारक साबित होगा, इसमें हमेशा ही शक की गुंजाइश बनी रहेगी.


अगर 2024 में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ते हैं और मायावती की पार्टी यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतार देती है, तो इससे बीजेपी विरोधी वोटों में बड़ा बिखराव आएगा, जो हर तरह से बीजेपी के हित में ही होगा. वहीं इसके विपरीत मायावती, अखिलेश और कांग्रेस के साथ आने की संभावना पर बीजेपी को काफी सीटों का नुकसान हो सकता है.


मायावती, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ जाकर जितना नुकसान बीजेपी का कर सकती हैं, उतना फायदा बीजेपी के साथ जाकर एनडीए का होगा, ये नहीं कहा जा सकता. इसके पीछे वजह ये है कि इससे मायावती के कोर वोट बैंक में सेंध लगने की संभावना बढ़ जाएगी.


जिस तरह से मायावती ने ऐलान कर दिया है कि वो न तो विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनेंगी और न ही एनडीए के पाले में जाएंगी, ये 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से विपक्षी गठबंधन के लिए जितना बड़ा झटका है, बीजेपी के लिए उतना ही बड़ा मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है.


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