दिल्ली नगर निगम चुनाव में जीत के बावजूद भी ढाई महीने की मशक्कत के बाद आखिरकार आखिरकार आम आदमी पार्टी को अपना मेयर बनाने में कामयाबी मिल ही गई. 22 जनवरी को एमसीडी मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय ने बीजेपी की रेखा गुप्ता को हरा दिया. लेकिन असली खेल अभी बाकी है.


मेयर चुनाव के बाद भी एमसीडी आम आदमी पार्टी और बीजेपी पार्षदों के बीच जंग का मैदान बना हुआ. दोनों ही पक्ष बुधवार की रात एक-दूसरे से भिड़ते रहे. मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव के बाद भी जिस मुद्दे को लेकर दोनों ही पार्टियों के बीच तनातनी है, उसका कारण है एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों का चुनाव.


एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी का महत्व


सवाल उठता है कि एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी कितना महत्व रखती है, जिसको लेकर सदन के भीतर मेयर चुनाव से भी ज्यादा बवाल देखने को मिल रहा है. दिल्ली नगर निगम में स्टैंडिंग कमेटी का ख़ास महत्व है. एक तरह से कहे तो अधिकारों के लिहाज से ये मेयर से ज्यादा महत्व रखता है. ये तो हम सब जानते हैं कि दिल्ली नगर निगम का प्रमुख मेयर होता है, लेकिन सिर्फ नाम के लिए ऐसा है. दरअसल स्टैंडिंग कमेटी की दिल्ली नगर निगम के प्रभावी तरीके से संचालित ये मैनेज करती है. ये बात समझना होगा कि मेयर नाममाक्ष का प्रमुख होता है. उसके पास बहुत ही सीमित शक्तियां होती हैं. कहें तो मेयर सदन की बैंठकें बुला सकता है और कार्यवाहियों को संचालित करता है. एमसीडी के भीतर स्टैंडिंग कमेटी के सबसे ताकतवर संस्था है. यहीं समिति निगम के रोजमर्रा के कामकाज का प्रबंधन करती है. किसी भी प्रोजेक्ट के लिए वित्तीय मंजूरी स्थायी समिति ही देती है, साथ ही नातियों को लागू करने की जिम्मेदारी भी स्टैंडिंग कमेटी की है.


स्टैंडिंग कमेटी में कुल 18 सदस्य


एक तरह से कहा जाए तो स्टैंडिंग कमेटी ही दिल्ली नगर निगम में फैसला लेने वाली मुख्य संस्था है. इसमें कुल 18 सदस्य होते हैं. कमेटी का एक चेयरमैन और एक डिप्टी चेयरमैन होता है, जो कि स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों में चुना जाता है.  मेयर चुनाव के बाद कमेटी के 6 सदस्यों का चुनाव एमसीडी सदन में सीधे होता है. इसके लिए पार्षदों को वोटिंग करनी होती है. हालांकि ये चुनाव  प्रेफरेन्शल सिस्टम के जरिए होता है. इसमें पार्षदों को वरीयता देनी होती है. उम्मीदवार को पसंदीदा कर्म में वरीयता देनी होती है. अगर पहली वरीयता के आधार पर चुनाव नहीं हो पाता हौ तो फिर दूसरो और तीसरी वरीयता की गिनती आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर की जा सकती है. इसके तहत जो भी पार्षद उम्मीदवार हैं, उनमें पहले 36 वोट पाने वाले पार्षद स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य बन जाते हैं. ये प्रक्रिया कमोबेश राज्य सभा सदस्यों के चुनाव से मिलती-जुलती है. इस प्रक्रिया के जरिए स्टैंडिंग कमेटी के 18 में से 6 सदस्य चुने जाते हैं. बाकी के 12 सदस्य वार्ड कमेटी से चुने जाते हैं.


स्टैंडिंग कमेटी में एल्डरमैन की क्या है भूमिका?


दिल्ली नगर निगम 12 जोन में बंटा है. हर जोन में एक वार्ड कमेटी होती है, जिसमें इस एरिया के सभी पार्षद सदस्य होते हैं. वार्ड कमेटी में मनोनीत पार्षद भी शामिल होते हैं. दिल्ली के एलजी ने 10 लोगों को पार्षद के तौर पर मनोनीत (MCD Nominated Councilor) करते हैं. दिल्ली एमसीडी में मनोनीत पार्षदों को एल्डरमैन (aldermen) कहा जाता है. ये एल्डरमैन किसी एक वार्ड कमेटी में भी मनोनीत हो सकते हैं या अलग-अलग वार्ड कमेटी में भी. ये उपराज्यपाल पर निर्भर करता है. उपराज्यपाल चाहे तो एक ही जोन या वार्ड कमेटी में सभा 10 पार्षदों को मनोनीत कर सकता है. हालांकि इन्हें मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव और सदन के भीतर वोट डालने का अधिकार नहीं होता है. लेकिन जोन कमेटी में इन एल्डरमैन के पास वोट देने का अधिकार होता है. हर जोन से एक सदस्य स्टैंडिंग कमेटी के लिए चुना जाता है और जब जोन से स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य चुने जाते हैं तो उसमें मनोनीत पार्षदों को मतदान करने का अधिकार है. 


स्टैंडिंग कमेटी के बाकी बचे 12 सदस्यों के चुनाव के लिहाज से एल्डरमैन यानी मनोनीत पार्षदों का वोट मायने रखता है.  गृह मंत्रालय के आदेश के मुताबिक 10 पार्षदों को मनोनीत करने का अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल के अधीन है. अनुभवी लोगों को इस पद के लिए मनोनीत किया जाता है. आम आदमी पार्टी यही कहते रही है कि उपराज्यपाल ने जिन 10 लोगों को पार्षद के तौर पर मनोनीत किया है, वे सभी बीजेपी के कार्यकर्ता हैं.  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते रहे हैं कि मनोनीत पार्षदों के जरिए एमसीडी के स्टैंडिंग कमेटी  की संरचना बीजेपी के अनुकूल  बनाने की कोशिश का जा रही है. केजरीवाल का सीधे-सीधे आरोप है कि एल्डरमैन के जरिए स्टैंडिंग कमेटी के कामकाज में बीजेपी दखल बढ़ाना चाहती है.  ऐसे में आम आदमी पार्टी कतई नहीं चाहेगी कि एमसीडी के भीतर सीधे चुने जाने वाले कमेटी के सदस्यों के चुनाव में कोई गड़बड़ी हो.


स्टैंडिंग कमेटी में  बहुमत के मायने


स्टैंडिंग कमेटी में  स्पष्ट बहुमत होना किसी भी राजनीतिक दल के लिए नीति और वित्तीय निर्णयों पर नियंत्रण रखने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. मेयर और डिप्टी मेयर का पद हासिल कर लेने के बावजूद अब आम आदमी पार्टी को ये डर सता रहा है कि अगर स्टैंडिंग कमेटी में वो बहुमत नहीं बना पाई तो एमसीडी के कामकाज पर  प्रभावी पकड़ रखना आसान नहीं होगा. दिल्ली नगर निगम पर 15 साल से बीजेपी का कब्जा था. दिसंबर 2022 में हुए चुनाव में उसे आम आदमी पार्टी से मुंह की खानी पड़ी थी और 15 साल के उसके शासन का अंत भी हो गया था. आम आदमी पार्टी ने  एमसीडी चुनावों में 134 वार्ड में जीत दर्ज की थी. बीजेपी को 104 वार्ड पर जीत मिली थी. वहीं 250 सदस्यीय सदन में कांग्रेस को महज़ 9 वार्ड पर जीत मिली थी. ढाई महीने के टालमटोल के बावजूद बीजेपी मेयर पद को आम आदमी पार्टी के पास जाने से नहीं रोक पाई, लेकिन अब उसकी मंशा है कि स्टैंडिंग कमेटी में किसी तरह से आम आदमी पार्टी का वर्चस्व नहीं बन पाए.  इन बातों से स्पष्ट है कि एमसीडी में मेयर के पास फैसले लेने का अधिकार कम है. ज्यादातक आर्थिक और प्रशासनिक फैसले स्टैंडिंग कमेटी ही लेती है और उसके बाद ही उनपर सदन विचार कर पारित करता है. कोई भी प्रोजेक्ट इसी कमेटी से निर्धारित होकर सदन में पहुंचेगा. जो भी स्टैंडिंग कमेटी का चेयरमैन होता है वो एक तरह से एमसीडी के नीतिगत फैसलों के लिहाज से प्रमुख हो जाता है.


बीजेपी ने AAP की चिंता बढ़ा दी


सदन के भीतर कमेटी के जिन 6 सदस्यों को चुनाव होना है, आम आदमी पार्टी चाहती है कि उनमें से 4 उम्मीदवार उसकी पार्टी की जीत जाएं. हालांकि 4 उम्मीदवारों को जिताने के लिए उसके पास संख्या बल थोड़े कम हैं. चूंकि ये ये सीक्रेट वोटिंग होती है, तो बीजेपी चाहती है कि डिप्टी मेयर के चुनाव की तरह ही आप के कुछ पार्षद क्रॉस वोटिंग करे जिससे आम आदमी पार्टी के तीन ही उम्मीदवार जीत पाएं और बीजेपी अपने तीन उम्मीदवार जिताने में कामयाब हो जाए. जोन से आने वाले स्टैंडिंग कमेटी के 12 सदस्यों की बात करें तो बिना एल्डरमैन के आम आदमी पार्टी को 12 में से 8 सदस्य मिल जाने चाहिए और बीजेपी के खाते में 4 सदस्य जाने चाहिए.  लेकिन उपराज्यपाल के नोटिफिकेशन में एल्डरमैन को सिर्फ 3 जोन में नियुक्त किया गया है. इससे बीजेपी को 4 की बजाय 7 जोन से अपने सदस्य स्टैंडिंग कमेटी में भेजने में आसानी हो जाएगी. बीजेपी यहीं चाहती है कि सदन से सीधे 6 में 3 और जोन से 7 सदस्य स्टैंडिंग कमेटी उसके पार्षद बन जाएं, ताकि कमेटी में उसका 10 सदस्यों के साथ बहुमत हो जाएगा. आम आदमी पार्टी इस गुणा-गणित से डरी हुई है. अब ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि बीजेपी अपने मंसूबों में कितना सफल हो पाती है या फिर स्टैंडिंग कमेटी में भी आम आदमी पार्टी बहुमत हासिल कर पाएगी.