मेंटल हेल्थ इश्यूज की चपेट में तेजी से आ रहे स्टूडेंट्स, पेशेवर और हाउवाइव्स, जानें इसका बड़ा कारण और जरूरी उपचार
आजकल के समय कोई भी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे के बारे में बात नहीं करना चाहता है. पता नहीं क्यों लोग इसे एक कलंक की तरह मानते हैं. लेकिन, सबसे बड़ी समस्या ये है कि आज की तारीख में हर एक आयु-वर्ग में सभी पेशों में चाहे आप हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स हों या फिर आर्टिस्ट हों, स्पोर्ट्स पर्सन्स हों, स्टूडेंट्स हों, हाउस वाइव्स हों या अन्य लोग, कोई न कोई किसी न किसी तरह के मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों से प्रभावित हैं.
चाहे वो नींद की समस्या हो, किसी भी चीज पर ध्यान केन्द्रित न कर पाने की दिक्कत हो, भविष्य के प्रति डर सता रहा हो, डिप्रेशन हो, मूड स्विंग्स या लो फील करना करना हो, कोरोना के बाद ये समस्याएं और बढ़ गयी हैं.
क्या आप जानते हैं इस तरह के बदलाव का सबसे बड़ा कारण कोर्टिसोल हॉर्मोन है जिसको स्ट्रेस हार्मोन भी कहते हैं. वास्तव में, जब हमारी बॉडी किसी ऐसी स्थिति में होती है जहां उसे को इंस्टेंट रिएक्शन करना होता है, जैसे आप ड्राइव कर रहे हों और अचानक आपकी गाड़ी के सामने कोई आ जाये तो आपको तुरंत ब्रेक लगाना होगा या आपके रोड क्रॉस करते समय कोई आपके सामने आ जाये तो आपको ब्रेक लगाना पड़ेगा. ऐसी सिचुएशन को ही फाइट एंड फ्लाइट कहते हैं.
मेंटल हेल्थ के बढ़ते मामलों के कारण
आप किसी के सामने आ जायें तो आप फौरन रिएक्ट करते हैंत, ब्रेक लगा देते हैं. इस स्थिति को ही फाइट एंट फ्लाइट सिचुएशन कहते हैं और ऐसी स्थिति का जब हम सामना करते हैं तो हमारी बॉडी में ये कोर्टिसोल हॉर्मोन रिलीज होता है.
लेकिन ये हॉर्मोन सिर्फ फाइट एंड फ्लाइट स्थिति में हमारी बॉडी को रिएक्ट करने में मदद करता है. यानी हमारे दिमाग के सामने जब किसी तरह की आपात स्थिति आती है और हमारा अचानक से एक्शन जरुरी हो जाता है तो हमारा दिमाग एक ऑटोमेटिक और इंस्टेंट साइकोलॉजिकल एक्शन करता है.
ऐसे में उस डर के माहौल या उन असामान्य स्थितियों में आपके पास बस फाइट फ्ली या फ्रीज का ही विकल्प बचता है. इस समय आपका ब्लड प्रेशर काफी हाई हो जाता है, आपकी हार्ट बीट बढ़ जाती है और आप अचानक से रेस्पॉन्ड करते हैं.
क्या है विकल्प?
लेकिन आप सोचिये की अगर हम हर स्थिति में रिएक्ट करने लगेंगे या हर छोटी बड़ी बात को डर के माहौल या एबनॉर्मल में काउंट करने लगेंगे तो ये हॉर्मोन बार-बार रिलीज होगा, क्योंकि हमारी बॉडी छोटी-छोटी बातों को समझ नहीं पाती है. छोटे-छोटे मुद्दे पर भी फाइट एंड फ्लाइट रिस्पांस क्रिएट कर सकती है. पैनिक अटैक या anxiety disorders के पीछे सबसे बड़ा कारण यही है.
क्या आप जानते हैं की अगर स्ट्रेस हॉर्मोन बढ़ेगा तो ये आपके याददाश्त को प्रभावित करेगा, आपके ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर को बढ़ाएगा और आपके serotonin यानी हैप्पीनेस हॉर्मन्स को कम करेगा. हमारे ही इम्यून सिस्टम को suppress भी करेगा.
क्योंकि यहां पर चैलेंज ये है की जब स्ट्रेस हॉर्मोन आपकी बॉडी में अधिक मात्रा में रिलीज होता है तो बाकि हॉर्मोन्स जैसे कि इन्सुलिन, ग्रोथ हॉर्मोन, melatonin ये हॉर्मोन्स अपना काम ठीक तरह से नहीं कर पाते हैं.
Stress hormone trigger क्यों होता है?
वैसे तो आमतौर पर लोगों को लगता है कि आप जब बहुत ज्यादा तनाव में होंगे तो ही स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज होगा, पर ऐसा नहीं है. छोटी से छोटी स्ट्रेसफुल बात भी इसे बढ़ा सकती है. यहां तक कि जो हमारी दैनिक दिनचर्या होती, जैसे- मल्टी टास्किंग, कभी एप्वाइंटमेंट के लिए late हो जाते हैं तब, या फिर कोई प्रजेंटेशन तैयार कर रहे होते हैं , यहाँ तक की कभी कभी तो किसी के व्हाट्सएप स्टेट्स को देखा और ये सोचने लगे की ये मेरे लिए है और ओवर थिंकिंग करने लगते हैं.
कई बार काम का दबाव, पारिवारिक दबाव, वित्तिय दबाव यहां तक कि नोटिफिकेशंस जो हम बार बार देखते हैं, इनसे भी स्ट्रेस हॉर्मोन बढ़ जाता है. क्योंकि जैसे ही ऐसा कुछ स्ट्रेस होगा हमारी बॉडी सोचेगी की हम फाइट या फ्लाइट सिचुएशन में जा रहे हैं, फिर स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज होगा.
ये stress hormone apetite को भी बढ़ाता है, जिससे हमें बार-बार भूख भी लगती है और हम ओवर इटिंग करेंगे. वहीं, स्ट्रेस हॉर्मोन की वजह से बॉडी में इन्सुलिन ठीक से प्रोड्यूस नहीं होगा. इसकी वजह से कार्बोहाइड्रेट्स या फैट्स ठीक तरह से पचा पाएंगे और फिर वो कारण बनता है बहुत सारी जीवनशैली की बीमारियों का.
इसमें diabetes obesity blood pressure जैसी बीमारियां हो जाती हैं. बार-बार Stress hormone release होने से, chronic stress की स्थिति में कई लोग लत की तरफ भी जाने लगते हैं. किसी न किसी तरह के नशे का वे शिकार हो जाते हैं. आखिर में इसका दीर्घकालिक हमारे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जैसा कि हमने देखा कि कोविड में हमारा इम्युन सिस्टम का मजबूत होना कितना जरुरी है और एक मजबूत इम्युन सिस्टम हमें किसी भी बीमारी से मुकाबला करने में हमारी मदद करता है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]