निराशावादी नहीं, लेकिन निराश हो रहा हूं, खुश रहने की बातें परेशान करती हैं
ग्रोसरी स्टोर में काम करने वालों को कोरोना होने का खतरा अधिक है.
कोई आपदा आती है तो आदमी पहले बदहवास होता है फिर दुस्वप्न आते हैं और उसके बाद आती है एक अजीब सी शांति जब वो खुद को खोजने लगता है खुद में ही. एक अजनबी देश अपना सा लगने लगता है सिर्फ इस बात से की कि किसी ने मदद का हाथ बढ़ाया है.
हम जहां रहते हैं उसके आसपास कई प्रोफेसर रहते हैं जिनके पालतू कुत्तों के साथ मेरा बच्चा खेलता रहा है. अब कोई बाहर नहीं आता खेलने. पिछले दिनों बच्चे का दूध मिल नहीं रहा था तो एक प्रोफेसर कहीं दूर से दूध के डिब्बे ले आए. महीने भर में अंडों के दाम बढ़ गए हैं. दूध मिलने में मुश्किल बढ़ रही है.
परसों एक दूसरे प्रोफेसर अपार्टमेंट के दरवाज़े के सामने प्लास्टिक में ब्रेड के दो बड़े पैकेट छोड़ गए जिसमें एक पर्ची लिखी थी- “ये सेंट लुइस के सबसे अच्छे बेकरी का ब्रेड है. तुम्हें पसंद आएगा.“ हम पहले भी खाना खाने में कुछ बर्बाद नहीं करते थे. जब से दुकानें बंद हुई हैं, खाने में अगर थोड़ा कम ही खा लें तो बुरा नहीं लगता.
यूं भी दिन भर घर में बैठे भूख कम लगती है. अपने कुत्ते वाल्टर को घुमाने लाने वाली बुजुर्ग अमेरिकी महिला भी कह रही थी कि भूख कम लगती है और उन्हें नींद भी कम आती है. परसों उन्हें देखा वो डिनर लेकर जा रही थीं कहीं. ये अजीब था. उन्होंने लौटते में बताया कि उनकी बेटी ग्रोसरी स्टोर में काम करती है और घर नहीं आती क्योंकि वो बूढ़ी हैं और बेटी नहीं चाहती कि मां को किसी भी तरह का इंफेक्शन हो जाए. बेटी अपने दोस्तों के साथ रह रही है महीना होने को आया. ग्रोसरी स्टोर में काम करने वालों को कोरोना होने का खतरा अधिक है.
बुजुर्ग महिला ये बताते हुए रूंआसी हो जाती है. हम उनसे छह फीट की दूरी पर खड़े होते हैं और उनके आंसू हम देख नहीं पाते. उनका कुत्ता वाल्टर मेरे छोटे बच्चे का मुंह चाट चाट कर खेलने लगता है. मैं अकेलेपन को हल्का करने की कोशिश में कहता हूं कि ये समय भी निकल जाएगा.
हम अपने घरों को लौट जाते हैं. दो दिन बाद जब कुत्ते वाली महिला के घर के सामने से गुज़रते हैं तो उनका कुत्ता वाल्टर ज़ोर ज़ोर से भौंकने लगता है. मेरे साथ मेरा दो साल का बच्चा उत्साहित हो जाता है. मैं शीशे की खिड़की की तरफ बढ़ जाता हूं.
शीशे के दूसरी तरफ वाल्टर और वाल्टर की मां यानी बुजुर्ग महिला हैं. इस तरफ मैं और मेरा छोटा बच्चा. दोनों एक दूसरे को देखकर खुश होते हैं. मैं उन्हें हाय करता हूं. आवाज़ शीशे के आर पार नहीं जाती. हम इशारों में बात करते हैं. वो बाहर नहीं आती. वो एक कागज़ पर लिख कर लाती हैं- मुझे एक किस्म की बीमारी है जिसके कारण मेरा इम्युन सिस्टम कमज़ोर है. मैं रिस्क नहीं ले सकती.
मैं कंधे उठा कर ऐसी मुद्रा बनाता हूं कि उनको लगे कि कोई बात नहीं. वो घर में ही रहें. वो अपना हाथ शीशे पर रखती हैं. मैं भी अपना हाथ शीशे पर रख देता हूं. वाल्टर ने शीशे पर अपने पैर रख दिए हैं. वो मेरे बच्चे को छूना चाहता है. लौटते हुए मुझे अपने मां पिता की याद आती है. मैं उन्हें फोन करता हूं.
मेरी मां मैथिली में कुछ बोल रही है. मेरा बेटा अपनी आधी अधूरी भाषा में कुछ बोल रहा है. दोनों बात कर रहे हैं एक दूसरे की भाषा को जाने बिना. ये प्रेम की भाषा है. कई मिनटों तक ये बातचीत चलती है.
मैं घरवालों से अपना ख्याल रखने के लिए कहता हूं. मेरे पिता पूछते हैं कि अब अखबार क्यों नहीं आता. मेरे पिता को लोगों की बातों पर यकीन नहीं है. वो या तो अखबार की बात मानते हैं या मेरी. मैं उनसे कहता हूं कि सब ठीक हो जाएगा. वो कुछ नहीं कहते.
मैं फोन रख कर अपार्टमेंट में लौटता हूं. सीढ़ियां चढ़ते हुए कई बातें जेहन में चलती रहती हैं मसलन एक और दिन बीत गया. कल मौसम ठीक होगा लेकिन क्या कल सबकुछ ठीक होगा.
मैं निराशवादी नहीं हूं लेकिन निराश हो रहा हूं. कठिन समय में खुश रहने के संदेश मुझे परेशान करते हैं. मैं अपनी स्याही वाली कलम उठाता हूं और डायरी लिखने में व्यस्त हो जाता हूं.
(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)