मिग-21 क्रैश हो रहे हैं क्योंकि तकनीकी खराबी जरूर आ जाती है. जब एयरक्राफ्ट पुराना हो जाता है तो उसमें तकनीकी खराबी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इसके अलावा, फाइटर एयरक्राफ्ट की जो फ्लाइंग होती है वो एक्स्ट्रीम एज ऑफ परफॉर्मेंस ऑफ एयरक्राफ्ट और एक्स्ट्रीम एज ऑफ परफॉर्मेंस ऑफ पायलट होती है. उसमें क्रैश होने की संभावना अधिक होती है. 


लेकिन, मिग-21 काफी पुराना हो चुका है और इनके पार्ट्स भी काफी पुराने हो चुके हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि मिग-21 को बाकी देश भी उड़ा रहे हैं, सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और चीन भी मिग-21 का इस्तेमाल कर रहा है. चीन ने अपना नया मिग-21 लड़ाकू विमान F7M बना लिया है. उसका FT वर्जन पाकिस्तान के पास है. बांग्लादेश भी इस लड़ाकू विमान को उड़ा रहा है. 


भारत में क्यों गिर रहा मिग-21


दरअसल, भारत में मिग-21 लड़ाकू विमान आसमान से गिरने की समस्या इसलिए देखने को मिल रही है क्योंकि चीन ने इसको मॉडर्नाइज करके अपना वर्जन बनाया है, वो हमने नहीं किया है, क्योंकि हमको करने नहीं दिया गया. हम अपने पुराने एयरक्राफ्ट से काम चला रहे थे. जो मैंटिनेंस होती है वो तो हम करते हैं. लेकिन, जो लाइफ हो जाती है हर चीज की, वो कम होने लगती है. रेट ऑफ एक्सीडेंट और रेड ऑफ पीरियड ऑफ दोज पार्ट्स इन्क्रीज होता है, बाय एज.



ये चीज देखी जा रही है क्योंकि भारत के पास स्क्वॉड्रन्स की कमी है. इसलिए जल्दबाजी में भी स्क्वड्रन्स भी कम नहीं किए जा सकते हैं. अब स्क्वड्रन्स की कमी भारत में क्यों है, क्योंकि कोई भी हम अपना जहाज बनाते नहीं है. जब भी इसे खरीदने की बात आती है तो उसमें काफी समय लगता है.


भारत के पास 12 स्क्वड्रन की कमी


हमारे पास इस वक्त 12 स्क्वड्रन्स की कमी है, यानी 12x20= 240 स्क्वड्रन्स की कमी है. एयर फोर्स को इस वक्त इंस्पेक्शन की जरूरत है. वो रिव्यू करे दोबारा कि मिग-21 कब तक उड़ाना है. अगर इसे फ्लाई करना ही है तो उसे ग्राउंड कर पूरे पार्ट्स को बदलिए. मिग-21 को नीचे उतारकर उनको रि-इंस्पेक्शन करके ये देखना होगा कि कौन से जहाज की कमी है. उसके बाद इमानदारीपूर्वक और पारदर्शी तरीके से आपको इस पर फैसला करना होगा.


दूसरा ये कि जितने भी स्क्वड्रन हम निकालेंगे, 2 या 3 मिग-21 का स्क्वड्रन जितने भी हैं तो उसके विकल्प के तौर पर जल्द से जल्द कोई और जहाज मिलता है तो उसे जरूर किया जाए. वो चाहे एक्स्ट्र हल्के लड़ाकू विमान मिल जाते हैं या फिर एक्स्ट्रा राफेल मिल जाते हैं, तो उसका रिप्लेसमेंट किया जाए. इसको आपात स्थिति समझकर किया जाना चाहिए. इसको लेकर जरूर प्लानिंग की जरूरत है. हमारे पास 42 स्क्वड्रन होने चाहिए लेकिन घटकर हमारे पास अब 28 स्क्वड्रन रह गए हैं. 


कैसे लड़ेंगे टू फ्रंट वॉर?


ऐसे में हम टू फ्रंट वॉर की बात कर रहे हैं. हमारे पड़ोसी दुश्मन चीन के पास 200 स्क्वड्रन है, पाकिस्तान के पास 20 स्क्वड्रन हैं. ऐसे में अगर इस पर सरकार को कुछ करना है तो जल्द से जल्द करना है और वॉर फुटिंग के स्तर पर करना है.


इसको सामान्य स्तर पर नहीं लिया जा सकता है कि हमारा ये प्लान है तो हम इस पर ही टिके रहेंगे. अगर आपको आपात समीक्षा करना है तो इस बात की इमरजेंसी रिव्यू की जाए और अगर आपको इमरजेंसी रिप्लेसमेंट एयरक्राफ्ट मिलता है तो आप इमरजेंसी रिप्लेसमेंट एयरक्राफ्ट जल्द से जल्द लीजिए. ताकि अगर फेज आउट करना है तो जल्द करिए. इसकी टेक्नॉलोजी 1963 में आ गई थी लेकिन ये जहाज बाद में आए हैं. आज ये बिल्कुल अलग हैं. आप ये मत सोचिए कि 1963 में फ्लाई किया था. 


ये छोटी सी गलती नहीं बल्कि पूरी नेशनल पॉलिसी की गलती है कि हम कुछ नहीं बनाते हैं. न हम जहाज बनाते हैं, न राइफल बनाते थे. हम डिफेंस मॉडर्नाइजेशन में काफी पीछे रह गए हैं. एक समय आता है सच्चाई को सामना करने का. जब आपकी पॉलिसी कमजोर है तो उसे ठीक करिए पहले. वॉर फुटिंग पर आप डिफेंस इंडिजनाइजेशन करिए. इसके लिए आपात बैठक बुलाइये. इसलिए हमारी पूरी की पूरी समस्या इसको अपडेट को लेकर है.  


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]