...जब सड़कों पर बिखरी थी लाशें, इंसानियत हुई जमींदोज़
अनहोनी की खबर सबसे पहले पशु पक्षियों को होती है. अचानक आसमान में चिड़ियों की चीख और आकाश में फैले काले धुएं के गुबार को देखकर अनहोनी की आशंका हो गयी थी. क्राइम बीट की खबर खोजने निकलना रोज का काम था, आज क्राइम ने शहर को खोजा था.
इंसानियत पर कायराना हमले के दिन (12 मार्च 1993) दोपहर को मैं दक्षिण मुंबई के रीगल सिनेमा के पीछे सेंटर फॉर एजुकेशन ग्रांट डॉक्यूमेंटेशन में बैठा था. अपनी स्टोरी के रिसर्च के लिए फाइलें खंगाल रहा था, तभी धमाके की आवाज सुनी. बाहर आकर देखा तो आसमान का बदला स्वरूप दिखा, पक्षी चीत्कार रहे थे. अभी रीगल सिनेमा तक पहुंचा ही था कि पता चला कि मुंबई शेयर बाजार में ब्लास्ट हुआ है. चारो तरफ अफरा-तफरी का माहौल था, बाजार के बेसमेंट से लाशें निकाली जा रहीं थीं. क्राइम रिपोर्टर होने की वजह से लाशें तो पहले भी देखा था, लेकिन इस बार पता नहीं क्यों तन और मन दोनों सन्न था. कार पार्किंग बेसमेंट में थी और धमाका वहीं किया गया था.
मुंबई में ब्लास्ट से जरा भी हैरत नहीं हुई लेकिन इसके वीभत्स स्वरूप ने मुझे झकझोर दिया था. महज दो महीने पहले ही दंगे की रिपोर्टिंग की थी. नवभारत टाइम्स में क्राइम रिपोर्टर के तौर पर मेरा पहला साल था. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी. इसके बाद मुंबई में दंगे शुरू हो गये थे. दिसंबर और जनवरी में पूरी मुंबई दंगे की चपेट में थी. 800 से ज्यादा लोग मारे गये थे. मुंबई में एक बार फिर सड़कों पर बिखरी लाशों को देखकर और ऐसे वीभत्स चीत्कार से सन्न था.
मुंबई पुलिस के बड़े अफसर शेयर बाजार में मौजूद थे. मुंबई पुलिस के एडिशनल कमिश्नर हसन गफूर (जो 26/11 के दौरान पुलिस कमिश्नर थे) ने बताया कि एयर इंडिया बिल्डिंग में भी ब्लास्ट हुआ है. पूरे शहर में 6 से 7 जगहों पर ब्लास्ट होने की खबर है. शाम तक पूरे शहर की खाक छानने के बाद पता चला कि 12 जगहों पर गाड़ियों का इस्तेमाल करके दिन में 1 से 2 बजे की बीच ये ब्लास्ट कराये गए. एयर इंडिया की बिल्डिंग, शेयर बाजार, पासपोर्ट ऑफिस, प्लाजा सिनेमा, होटल शी रॉक, सहार एयरपोर्ट आदि... साजिश पूरी मुंबई की कमर तोड़ने की थी. ये सीरियल ब्लास्ट थे, कुल मिलाकर कहें तो पहला आतंकी हमला था.
मैंने आर्थर रोड जेल में टाडा कोर्ट की ट्रायल को लगातार कवर किया. बचाव पक्ष कहता था कि आरोपियों ने मुंबई दंगों का बदला लेने के लिए ब्लास्ट किया है. मानवता को जमींदोज़ करने वाले ये ब्लास्ट भी गलत थे और दंगे भी. प्रतिशोध की ज्वाला में मासूमों की बलि ली गई. रिश्तों का कत्ल हुआ. दंगे और ब्लास्ट दोनों ही हादसों में जम्हूरिएत ने जिल्लत झेली थी. ये हादसे गंगा-जमनी तहजीब को ऐसे दफनाए कि उस वक्त से अभी तक हिन्दू... हिन्दुओं के साथ और मुसलमान.. मुसलमानों के साथ रहने लगे. इंसानियत को ऐसे गहरे जख्म मिले कि अभी तक किरायेदारों को भी कमरे धर्म के नाम पर मिलते अक्सर आप देखते होंगे. मुझे कुछ कहना नहीं है... कुछ भी नहीं.. बस यूं ही वे दिन याद आ गए...