Mirabai Chanu Wins Medal: अगले महीने की आठ तारीख को उम्र के 27 बरस पूरे करने वाली सैखोम मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में पहला सिल्वर मेडल जीतकर 130 करोड़ देशवासियों को अपने जन्मदिन का ऐसा तोहफ़ा दिया है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता. मणिपुर के इंफाल से 20 किलोमीटर दूर नोंगपोक काकचिंग गांव के मैतेई परिवार में जन्मीं मीराबाई अपने 6 भाई बहनों में सबसे छोटी हैं. उन्होंने बचपन से ही गरीबी को देखा व झेला है.आर्थिक रूप से सक्षम न होने के कारण मीरा बाई को अपने भाई सैखोम सांतोम्बा मीतेई के साथ पहाड़ों पर जलाऊ लकड़ी बीनने के लिए जाना पड़ता था. महज 10-11 साल की उम्र में ही जलाऊ लकड़ी का एक बड़ा बोझा वह इतनी आसानी से घर ले आती थीं, जिसे उठाना उसके बड़े भाई के लिए भी मुश्किल होता था.
तभी परिवार के लोगों को उनकी शारीरिक ताकत का अहसास हो गया था. वेटलिफ्टिंग की मशहूर खिलाड़ी कुंजारानी देवी से प्रेरित होकर मीरा ने वजन उठाने की इस मजबूरी को अपने खेल में बदल डाला और नियमित रूप से इसकी प्रैक्टिस शुरू कर दी. जब उसने शुरुआत की, तो पहले छह महीनों के लिए बांस के बेंत का इस्तेमाल किया गया, इससे पहले कि वह लोहे की पट्टी पर जाती.
11 साल की उम्र में ही कुछ प्रभावशाली प्रदर्शन करते हुए, वह अंडर -15 वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन बन गईं. 17 साल की उम्र में, युवा मणिपुरी जूनियर चैंपियन बनीं और बाद में उन्हें राष्ट्रीय टीम में मौका मिला. साल 2016 में, उन्होंने कुंजारानी के स्नैच राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ दिया, जो 2004 में स्थापित किया गया था. इस एशियाई चैम्पियनशिप को जीतने के लिए उन्होंने 190 किलोग्राम के कुल लिफ्ट रिकॉर्ड की बराबरी की. मीरा का प्रदर्शन अद्भुत था, जो ओलंपिक रजत पदक के निशान से सिर्फ 2 किलो दूर था, इस उपलब्धि ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया.
चानू ने तब एक इंटरव्यू में कहा था कि "वे प्रदर्शन मेरे लिए संतोषजनक नहीं थे. कुंजारानी देवी की तरह, मैं भी ओलंपिक में प्रदर्शन करना चाहती थी." मीराबाई चानू के कोच विजय शर्मा ने कहा था कि उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान नियमित रूप से 190 किलोग्राम से अधिक लोड उठाना शुरू कर दिया, जिससे वह रियो ओलंपिक में पदक के लिए एक मजबूत दावेदार बन गईं. लेकिन तब उन्हें निराशा हाथ लगी और वे पदक से चूक गईं. हालांकि ओलंपिक में मेडल जीतने से पहले 2017 में हुई विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वालीं वे पहली भारतीय महिला एथलीट हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में गोल्ड और 2014 में वे सिल्वर मेडल हासिल कर चुकी हैं.
हालांकि ओलंपिक खेलों के लिए टोक्यो रवाना होने से पहले ही मीराबाई चानू ने भारत के लिए मेडल जीतने का दावा किया था. उन्होंने अपने इस भरोसे को हक़ीक़त में बदलकर दुनिया को दिखा दिया. मीराबाई के कोच विजय शर्मा ने भी दावा किया था कि सिल्वर मेडल पक्का है.
मीराबाई चानू भारतीय रेलवे में नौकरी करती हैं. सिल्वर मेडल जीतने के बाद उन्होंने बाकियों के अलावा रेलवे के प्रति भी आभार जताया. अपनी जीत के बाद किये गए ट्वीट में चानू ने लिखा, ''मेरे लिए यह एक सपने का सच होने की तरह है. मैं इस पदक को अपने मुल्क को समर्पित करती हूं. करोड़ों भारतीयों ने मेरे लिए दुआएं मांगीं और मेरे इस सफ़र में साथ रहे, इसके लिए मैं शुक्रगुज़ार हूं.''
''मैं अपने परिवार को धन्यवाद देती हूं और ख़ासकर अपनी मां को जिन्होंने बहुत त्याग किया और मेरे ऊपर भरोसा रखा. मैं अपनी सरकार, खेल मंत्रालय, आईओए, वेटलिफ्टिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया, रेलवे, ओजीक्यू, प्रायोजकों और मार्केटिंग एजेंसी आईओएस को समर्थन देने के लिए धन्यवाद देती हूं.''
''मैं विशेष रूप से अपने कोच विजय शर्मा सर और बाक़ी के स्टाफ़ के प्रति शुक्रगुज़ार हूं. इन्होंने मेरी जीत में कड़ी मेहनत की है और हमेशा प्रेरणा मिली. एक बार फिर से मेरे देशवासियों को शुक्रिया. जय हिन्द.''
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)