Opinion: सुशासन बाबू के राज में मॉब लिंचिंग, धर्मनिरपेक्षता के दावे पर सवाल... कठघरे में नीतीश सरकार?
बिहार का छपरा ज़िला एक बार फिर से सुर्खियों में है. ज़िले के जलालपुर थाना क्षेत्र के बंगरा (नदी पर) गाँव के सामने मॉब लिंचिंग की एक घटना हुई है. चेतन छपरा से नगरा जाने वाली सड़क ने 28 जून की शाम वो सबकुछ देखा जो उसने शायद ही पहले देखा हो. बात कुछ ऐसी है कि ट्रक में मुर्दाहा (मृत जानवरों) की हड्डियों को हड्डी फ़ैक्ट्री ले जा रहे ट्रक ड्राइवर (ज़हीरुद्दीन) को भीड़ (मॉब) ने पीट-पीटकर मार डाला. भीड़ का कहना था कि ट्रक में हड्डियों के नीचे गोमांस है, और कल (बक़रीद) के मौक़े पर ये (मुस्लिम) गौ माता की क़ुर्बानी देंगे.
यहाँ जब हम छपरा ज़िले के एक बार फिर से सुर्खियों में आने की बात शुरू में ही कह रहे हैं तो उसका तात्पर्य यह है कि छपरा ज़िले के ही दूसरे थाना क्षेत्र (रसूलपुर) के जोगिया गाँव में आज से लगभग 4 महीने पहले (7 मार्च) को भी भीड़ ने एक और शख़्स (नसीब क़ुरैशी) को पीट-पीटकर मार डाला था. तब भी ऐसी ही बातें कही-सुनी गई थीं कि नसीब क़ुरैशी इलाक़े में गोमांस बेचने आया था.
हालिया घटनाओं के इतर यदि जरा पीछे जाएं तो इस स्पॉट (गाँव) से लगभग 3-4 किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाले पैगम्बरपुर गाँव के तीन ग्रामीणों (एक मुस्लिम और दो नट) की हत्या ऐसी ही बातों को कहते हुए 4 साल पहले कर दी गई थी. वैसे तो ये तीनों घटनाएँ एक-दूसरे से अलग या फिर एक जैसी कही जा सकती हैं, लेकिन मूल बात यह है कि ऐसा बिहार में कैसे और क्यों हो रहा है? क्या सूबे में सांप्रदायिक सद्भाव ख़त्म होता जा रहा या फिर इन्हें लॉ एंड ऑर्डर का मामला कहा जाए?
हम इस ओर इसलिए भी इशारा करना चाह रहे क्योंकि बिहार के लिए ‘मॉब लिंचिंग’ जैसे शब्द जरा नए हैं, और चूँकि सूबे में लंबे समय से ‘सुशासन बाबू’ का ही राज है, जो ख़ुद को ‘सामाजिक न्याय’ और सेक्युलरिज्म की धारा के अगुआ साबित में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते. तो फिर सवाल आख़िर किससे किए जाएँ? वैसे रमजान के महीने में फिर टोपियां पहनने की होड़ होगी, तो कहीं मजारों पर चादरपोशी करते नेताजी दिख ही जाएंगी.
सवालों और घटनाओं से एक बात और याद आती है कि राम नवमी के मौक़े पर ख़ुद सीएम के गृह ज़िले का ‘सांप्रदायिक सद्भाव’ बिगड़ गया. सैकड़ों साल से चलता चला आ रहा मदरसा अजीजिया आग के हवाले कर दिया गया. तो वहीं सासाराम में भी तनाव दर्ज किया गया. बात जब तनाव और सांप्रदायिक सद्भाव की हो रही है तो सूबे की सड़कों पर चलते हुए और अलग-अलग धर्मों के अनुयायियों द्वारा बजाए जा रहे कान फाड़ू संगीत की भूमिका को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल ही बल्कि नामुमकिन हो जाता है. जुलूस निकल रहा है पटना में और बात पाकिस्तान को सबक़ सिखाने की हो रही है.
बाक़ी आप लोगों को तो सबकुछ पता ही है कि नीतीशे कुमार “सुशासन बाबू” कितना काम करते हैं. लगातार मुख्यमंत्री बने रहने के साथ-साथ- लॉ एंड ऑर्डर (गृह मंत्रालय) भी तो वही सँभाल रहे, और वो तमाम चीजों पर नज़र भी बनाए रहते हैं लेकिन घटनाएँ हैं कि घट जा रहीं. कांड हैं कि हो जा रहे. राज्य के नागरिकों की ‘मॉब लिंचिंग’ हो जा रही, और राज्य की पुलिस भी इतनी तत्पर है कि 4 दिन बाद भी एफआईआर में नामज़द लोगों को पकड़ नहीं पा रही. बाद बाक़ी बर्दाश्त कीजिए, और क्या कीजिएगा…
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]