हज में वीआईपी कोटा खत्म होना जरूरी था क्योंकि इसमें कोई वीआईपी कंसेप्ट नहीं था. ये सिर्फ हमारे देश में होता था, जिसका कुछ लोग नाजायज फायदा उठाते थे. अब जो भी हज के लिए जाएगा वो एक हाजी के तौर पर जाएगा. हज बिल्कुल एक धार्मिक मसला है. आप मदीने में जाना चाहते हैं और उसमें भी वीआईपी बनकर जाना चाह रहे हैं, ये अजीबोगरीब रियायत थी, जिसे पता नहीं पिछली सरकार ने क्या सोचकर दिया था. मोदी सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य है.


हज का पूरा मकसद ये है कि जो कुछ भी आपके पास है, आप अमीर हो या गरीब हो, आप एक बार हज या फिर उमराह के लिए जरूर जाते हैं. इसमें जरूरी चीज ये है कि जो वीआईपी कोटा था उसे हटाया गया है. किसी भी इस्लामिक देश में ऐसा नहीं था कि अलग से वीआईपी कोटा हो.


अपना पैसा खर्च कर हज करने जाएं


अगर जो भी इस्लाम के बारे में थोड़ा सा भी जानता होगा, तो रिलीजन का मतलब ही है ब्रदरहूड. ऐसे में हम रसूख वाले लोगों को रियायत दे रहे हैं और वे लोग वीआईपी बनकर जा रहे हैं. क्यों? अपने मजहबी काम के लिए अपने पैसे खर्च कर आम हजयात्री की तरह जाएं, जैसे हर तरह से होता है.   


विपक्ष के जो लोग भी मोदी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं वो निरर्थक हैं. सवाल उठाने वालों से यह पूछा जाए कि आखिर उनका आधार क्या है. अल्लाह के रिश्तों के बीच प्रभाव और रसूख का फायदा उठाना चाहते हैं.


इसमें सरकार के पैसे बचाने की बात नहीं है. कोई भी देश का नागरिक या आम मुसलमान होगा, वो अधिकार आम मुसलामनों को भी होने चाहिए. इसमें पैसे बचाने की बात नहीं बल्कि उसूलों की बात होनी चाहिए. अगर कुरान के मूल्यों को देखें तो वीआईपी कल्चर की बात ही नहीं है. ये मजहब के भाईचारे पर आधारित है. सब जाते हैं मस्जिद-अल-हरम में, वो जगह सबसे लिए बराबर है, ऐसे में पता नहीं लोग वीआईपी बनकर क्यों जाते हैं.


सवाल उठाने वाले नहीं जानते इस्लाम


हज करने का ये पूरा कंसेप्ट ही इसके खिलाफ है. विपक्ष के लोग अगर ये कह रहा है कि कुछ मुसलमान खास हैं क्योंकि उनके पास ज्यादा पैसा है तो उन्हें इस्लाम की ही जानकारी नहीं है. अगर कोई भी हाजी या महिला जाना चाहती है तो ये एक ख्वाहिश है. इसमें एक जरूरी चीज ये है कि मैं अपना फर्ज अदा करूं.


उसमें भी आप सरकारी कोटे से जाना चाहते हैं, वीआईपी कोटा लगा रखा है, अपने रसूख का इस्तेमाल करना चाहते हैं. आप तो अच्छे मुसलमान तभी बनेंगे जब आप गरीबों की मदद करेंगे. जो भी कुरान में विश्वास रखता है, वो जरूर मोदी सरकार के इस फैसले का खैर-मकदम करेगा.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]