पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार की एयर स्ट्राइक को आप नहीं भूले होंगे न ही प्रधानमंत्री मोदी के आतंक के खिलाफ कड़े और इससे बड़ी कार्रवाई के वादे को, आतंक के खिलाफ मोदी सरकार शिकंजा कसने के लिए हर वो कदम उठाना चाहती है जो हिंदुस्तान के इस नासूर का इलाज कर सके। यही वजह है कि वो घाटी में जहां लगातार ऑपरेशन क्लीन चलाती रही तो वहीं आतंक के लिए सरहद पार से होने वाली फंडिंग रोकने के लिए अलगाववादियों पर शिकंजे कसने से भी नहीं चूकी।
जाहिर है आतंक के खिलाफ सरकार के कदम इतनी कवायद से रूकने वाले नहीं क्योंकि सबने देखा है घाटी में किस तरह किसी आतंकी की घेराबंदी पर पत्थरबाज़ों के रूप में उसके समर्थकों की फौज सामने आ जाती है या फिर एक आतंकी की मौत पर उसकी जगह लेने दूसरा आतंकी खड़ा हो जाता है। अब सरकार इस वजह को भी खत्म करने की तैयारी में है। इसके लिए वो चाहती है कि पहले से मौजूद अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट में संशोधन। जिस पर कैबिनेट की मुहर लग चुकी है और इसे सदन से पास करा कर अमलीजामा पहनाया जाना है। इसमें अब प्रतिबंधित संगठन के साथ ताल्लुक रखने वालों को भी आतंकी घोषित किया जा सकेगा।
हालांकि आतंक के खिलाफ किसी सख्त कानून का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले टाडा और पोटा जैसे कानून लागू किए जा चुके हैं। आतंक के खिलाफ इन कानूनों का असर कितना रहा इस पर जितनी बहस होती है उससे कहीं ज्यादा सियासत होती है। अब UAPA में संशोधनों को लेकर ऐसी बहस हो सकती है। सवाल यही है कि
टाडा और पोटा खत्म कर UAPA लाने के बाद फिर संशोधन की जरूरत क्यों?
नए प्रावधानों से देशद्रोहियों पर नकेल कसने में कामयाब होगी सरकार?
आतंक के खिलाफ सख्त कानून की राह में रोड़ा तो नहीं बनेगी मजहबी सियासत ?
आतंकी बुरहान वानी की बरसी पर पसरा सन्नाटा बताता है कि आतंक के पैरोकारों का असली मकसद क्या है? घाटी में आतंक के खिलाफ चल रही कवायद के खिलाफ बेचैनी की वो तस्वीर है जिसे लेकर ये समझना मुश्किल नहीं है कि आतंक पर शिकंजा कसने की कवायद में चलाया जा रहा ऑपरेशन क्लीन। किस तरह घाटी में आतंकी मंसूबों पर भारी है और अब आतंक के आकाओं और उनकी नर्सरी को लेकर सरकार की सख्ती को नया रंग देने वाला है UAPA में संशोधन। इसे लेकर सरकार और सख्त करने जा रही है और इसके लिए उसने अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट यानी UAPA में संशोधन कर लिया है जिसे वो सदन में पेश कर नये सिरे से अमल में लाने की तैयारी में है।
इस कानून में नए प्रावधानों के ज़रिए सरकार कई अहम बदलाव करने जा रही है। संशोधन के इन प्रस्तावों को कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। माना जा रहा है कि ये प्रावधान पहले से मौजूद इस कानून को और भी सख्त बनाएंगे। सरकार की मंशा के मुताबिक UAPA में प्रस्तावित बदलाव से सरकार आतंकियों को प्रतिबंधित सूची में डाल सकेगी। लश्कर सरगना हाफिज सईद, जैश सरगना मसूद अजहर जैसे आतंकियों को 'इंडिविजुअल टेररिस्ट' घोषित किया जा सकेगा। अभी सिर्फ संगठन को ही 'आतंकी संगठन' घोषित किया जा सकता है। किसी शख्स को 'आतंकी' घोषित करने के बाद उस पर ट्रैवल बैन लग जाएगा। फंड तक उसकी पहुंच सीमित हो जाएगी।
UAPA के तहत किसी आतंकी को प्रतिबंधित सूची में डालने से भारत का पक्ष मजबूत होगा
खास कर तब जब अन्य देशों से भी उन्हें इसी तर्ज पर आतंकी घोषित करने का अनुरोध करेगा
प्रस्तावों और प्रावधानों से बिल्कुल साफ है कि आतंक की पैरोकारी करनी महंगी पड़ेगी। यही वजह है कि इसे लेकर सियासत होने की आशंका है। क्योंकि अब तक मौजूद कानूनों में कार्रवाई को लेकर सवाल उठते रहे हैं। फिर चाहे वो टाडा हो, पोटा या फिर राज्यों से जुड़े मकोका, यूपीकोका जैसे कानून। संगठित अपराध को लेकर बने इन कानूनों की कार्रवाइयां अक्सर कटघरे में आती रहीं।
देश की सुरक्षा से जुड़े गंभीर मसलों पर न तो समझौता किया जा सकता है, न ही सियासत की इजाज़त दी जा सकती है। कानून बनाना सरकार का काम है और उस पर अमल करना सुरक्षा एजेंसियों का। आतंक के खिलाफ जंग को किसी भी तरह कमजोर नहीं किया जा सकता, लेकिन कई बार सख्ती के नाम पर या कानून के नाम पर किसी खास शख्स को निशाना बनाना भी इस लड़ाई को कमजोर कर देता है। इसी वजह से कई पुराने कानून बदले गए या उनमें संशोधन किए गए। ऐसे में जरूरी है कि कानून का सख्ती के साथ ही ईमानदारी से भी पालन हो।