पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की ये किताब पीएम मोदी को कर सकती है असहज
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद हामिद अंसारी दूसरे ऐसे शख्स हैं, जो लगातार दो बार उपराष्ट्रपति रहे हैं. पहली बार उपराष्ट्रपति बनने के बारे में उन्होंने लिखा है कि उनके पास पीएमओ से फोन आया. दूसरी तरफ देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे.
देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की आत्मकथा रिलीज हो गई है. किताब का नाम है 'बाई अ मेनी हैपी एक्सिडेंट, रिकलेक्शन्स ऑफ अ लाइफ'. रूपा पब्लिकेशन से छपी इस आत्मकथा में हामिद अंसारी ने अपनी पैदाइश से लेकर लगातार दो बार देश के उपराष्ट्रपति रहने और इस दौरान हासिल अनुभवों का बड़ी बेबाकी से जिक्र किया है.
हामिद अंसारी ने किताब की शुरुआत की है गालिब के एक शेर से. लिखा है...मंजूर है गुजारिश ए अहवाल-ए-वाकई...अपना बयान हुस्न-ए-तबियत नहीं मुझे. लेकिन किताब में उन्होंने जो बयां किया है, उससे प्रधानमंत्री मोदी खास तौर से नाराज हो जाएंगे. वो जावेद अख्तर का शेर है न कि जो बात कहते डरते हैं सब, तू वह बात लिख, इतनी अंधेरी थी न कभी पहले रात लिख. तो हामिद अंसारी ने किताब में सब लिख दिया है. अपने जीवन के तमाम पहलुओं पर, उपराष्ट्रपति बनने का किस्सा, पीएम मोदी से मतभेद और उसके बाद पैदा हुए विवादों पर हामिद अंसारी ने खुलकर लिखा है.
मनमोहन सिंह का फोन और उपराष्ट्रपति बन गए हामिद अंसारी
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद हामिद अंसारी दूसरे ऐसे शख्स हैं, जो लगातार दो बार उपराष्ट्रपति रहे हैं. पहली बार उपराष्ट्रपति बनने के बारे में उन्होंने लिखा है कि जुलाई 2007 की शुरुआत में वो इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अपने एक दोस्त का इंतजार कर रहे थे. उस दौरान उनके पास पीएमओ से फोन आया. दूसरी तरफ देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. मनमोहन सिंह ने हामिद अंसारी से कहा कि वो और सोनिया गांधी आपसे उपराष्ट्रपति पद की स्वीकृति चाहते हैं. हामिद अंसारी ने अपनी स्वीकृति दे दी. 23 जुलाई को जब नामांकन हो रहा था तो उस वक्त इलेक्टोरल रोल की एक सर्टिफाइड कॉपी चाहिए थी. 3 बजे की डेडलाइन थी. तब माइनॉरिटीज कमीशन का एक साथी ईस्ट दिल्ली का इलेक्टोरल रोल लेकर आया और फिर हामिद अंसारी का नामांकन हो सका और वो उपराष्ट्रपति बने.
जब राष्ट्रपति बनते-बनते रह गए थे हामिद अंसारी
2012 के बजट सेशन के बाद अप्रैल-मई में इस बात की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि अब राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के उत्तराधिकारी की खोज हो रही है. जुलाई में प्रतिभा पाटिल का कार्यकाल खत्म हो रहा था. देश का इतिहास है कि 11 में से छह उपराष्ट्रपति बाद में देश के राष्ट्रपति बने हैं. मीडिया में कई नाम चलने लगे. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. कुछ लोगों ने हामिद अंसारी के नाम की भी चर्चा की. फिर प्रणब मुखर्जी का भी नाम सामने आया. लेकिन इसके लिए मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी की सहमति की जरूरत थी, क्योंकि उनके वोट के बिना जीत नहीं हो सकती थी. इस पशोपेश में हामिद अंसारी 12 जून की दोपहर में गोल्फ खेलने निकल गए. उनके साथ दो दोस्त भी थे. तभी हामिद अंसारी के दफ्तर से फोन आया कि आप दोबारा उपराष्ट्रपति बन रहे हैं. इस वाकये पर हामिद अंसारी अपनी आत्मकथा में दाग देहलवी का शेर लिखते हैं
किस्मत की खूबी देखिए, टूटी कहां कमंद दो चार हाथ जबकि लब-ए-बाम रह गया.
यानी कि हामिद अंसारी राष्ट्रपति बनते-बनते फिर से उपराष्ट्रपति बन गए और जब हामिद अंसारी दोबारा उपराष्ट्रपति बने तो उन्हें अपने दूसरे कार्यकाल के दो साल के बाद ही दूसरी पार्टी के प्रधानमंत्री के साथ काम करना पड़ा, जिनका नाम है नरेंद्र दामोदर दास मोदी और अब शुरू होता है हामिद अंसारी की इस आत्मकथा का सबसे दिलचस्प अध्याय.
यूं तो हामिद अंसारी की नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई थी गोधरा दंगे के बाद. तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति बन गए थे और अस्थायी तौर पर उनका ठिकाना बना था हरियाणा भवन, क्योंकि उपराष्ट्रपति के लिए आवंटित बंगला 6 मौलाना अबुल कलाम रोड पर रंग-रोगन का काम चल रहा था. इस दौरान नरेंद्र मोदी से बातचीत में हामिद अंसारी ने पूछा कि गोधरा में आपने ऐसा होने क्यों दिया. बकौल हामिद अंसारी नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया कि लोग एक ही पक्ष देखते हैं, अच्छे काम की तरफ कोई ध्यान नहीं देता, जो उन्होंने खास तौर से मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के लिए किया है. हामिद अंसारी ने कहा कि वो इसके बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं और इसका तो प्रचार भी होना चाहिए. नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया, ये मेरी राजनीति को सूट नहीं करता है.
शोरशराबे के बीच बिल पास क्यों नहीं करते थे हामिद अंसारी
उपराष्ट्रपति बनने के बाद 2014-15 में मोदी सरकार की ओर से संसद में सवाल उठाया गया कि राज्यसभा में कोई भी बिल शोरशराबे के बीच पास क्यों नहीं हो रहा है. सरकार की ओर से पुराने उदाहरण भी दिए गए थे कि जब शोरशराबे के बीच बिल पास होते रहे हैं. हामिद अंसारी ने लिखा है कि बहुमत होने पर तो शोरशराबे के बीच बिल पास होता ही रहा है, लेकिन सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था. इसलिए लोकसभा में बहुमत वाली सरकार के कह भर देने से राज्यसभा में शोरशराबे के बीच मैं बिल पास नहीं कर सकता था, क्योंकि ऐसा करना तकनीकी तौर पर और नैतिक तौर पर असंभव था. हामिद अंसारी लिखते हैं कि उन्होंने यूपीए सरकार में भी तय कर रखा था कि कोई भी बिल शोरशराबे में पास नहीं होगा और तब विपक्ष में बैठी बीजेपी ने मेरे इस फैसले की सराहना की थी.
राज्यसभा चैनल और पीएम मोदी से टकराव
राज्यसभा चैनल पर चलने वाले कॉन्टेन्ट को लेकर भी मोदी सरकार की ओर से हामिद अंसारी पर सवाल उठाए गए थे. हामिद अंसारी लिखते हैं कि एक दिन प्रधानमंत्री बिना किसी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के राज्यसभा के मेरे दफ्तर में आ गए. सामान्य शिष्टाचार के बाद पीएम मोदी ने उनसे कहा कि सरकार को आपसे बहुत अपेक्षाएं हैं, लेकिन आप मदद नहीं कर रहे हैं. उन्होंने शोरशराबे के बीच बिल पास न करने पर भी सवाल किया. फिर कहा कि राज्यसभा चैनल सरकार का पक्ष नहीं ले रहा है. बकौल हामिद अंसारी, उनका जवाब था कि एडिटोरियल कॉन्टेन्ट में उनका कोई हस्तक्षेप नहीं है. साथ ही राज्यसभा सदस्यों की जो कमिटी बनी है, उसमें भी बीजेपी के सदस्य हैं. कमिटी ने एक विस्तृत गाइडलाइंस जारी की है और चैनल के कॉन्टेन्ट को दर्शक खूब सराह रहे हैं.
बतौर उपराष्ट्रपति आखिरी दिन और पीएम मोदी का संबोधन
हामिद अंसारी ने राज्यसभा में सभापति और देश के उपराष्ट्रपति के तौर पर अपने आखिरी दिन का भी जिक्र किया है. तारीख याद करते हुए वो लिखते हैं कि 10 अगस्त, 2017 का दिन था. पीएम मोदी ने मेरे बतौर राजनयिक किए गए कामों को तो याद किया, लेकिन राज्यसभा में सभापति या उपराष्ट्रपति के तौर पर किए गए काम का जिक्र नहीं किया. पीएम ने कहा कि इतने दिनों के कार्यकाल के दौरान आपने बहुत संघर्ष किया है, लेकिन अब से आपको कोई दुविधा नहीं होगी. अब से आप अपनी विचारधारा के मुताबिक बोलने और काम करने के लिए आजाद होंगे. इस पूरे प्रकरण को हामिद अंसारी अल्लामा इकबाल के एक शेर के जरिए बयान करते हैं.
भरी बज्म में राज की बात कह दी बड़ा बेअदब हूं, सजा चाहता हूं.
हालांकि इसके बाद बालयोगी ऑडिटोरियम में हुए फेयरवेल का जिक्र करते हुए हामिद अंसारी लिखते हैं कि वहां मौजूद प्रधानमंत्री ने मेरे परिवार का जिक्र किया, 1948 में शहीद हुए ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जिक्र किया और उम्मीद जताई कि कार्यकाल के दौरान हासिल हुई सीख को जनता के फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
तिरंगे के अपमान पर क्या लिखा हामिद अंसारी ने?
अपनी आत्मकथा में हामिद अंसारी ने अपने नाम के साथ जुड़े विवादों का भी विस्तार से जिक्र किया है. याद होगा आपको 26 जनवरी, 2015 का वो दिन, जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र दिवस के मुख्य मेहमान थे. राजपथ पर परेड की सलामी ली जा रही थी और तब खबर आई थी कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने तिरंगे को सैल्यूट न करके उसका अपमान किया है. इस घटना के बारे में हामिद अंसारी ने बताया है कि परेड की सलामी सिर्फ राष्ट्रपति लेते हैं. बाकी विदेश से आए मेहमान और वहां मौजूद सभी लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वो सावधान की मुद्रा में खड़े रहेंगे. लेकिन चूंकि यह प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री के लिए पहली मिलिट्री सेरेमनी थी और शायद उन्हें इसके बारे में तफ्सील से बताया नहीं गया था. तो जब परेड शुरू हुई तो राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सलामी ली. इस दौरान पीएम मोदी और रक्षा मंत्री ने भी सलामी ले ली और मैं सावधान की मुद्रा में खड़ा रहा. इसे ही कहा गया कि मैंने तिरंगे का अपमान किया है.
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर क्यों नहीं पहुंचे थे हामिद अंसारी?
ठीक यही बात योग दिवस वाले कार्यक्रम को लेकर हुई थी. 21 जून, 2015 को पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया. खुद प्रधानमंत्री भी इसमें शरीक थे. लेकिन मेरी गैरमौजूदगी को लेकर सवाल उठे. मेरे ऑफिस की ओर से ये साफ कर दिया गया था कि मुझे कार्यक्रम का बुलावा ही नहीं आया था. बाद में संबंधित अधिकारियों ने मुझसे खेद भी जताया था. हामिद अंसारी ने ये भी लिखा है कि कार्यकाल के आखिरी दिनों में दो घटनाओं ने मेरे खिलाफ और बड़ा माहौल बनाया. एक तो था बेंगलुरू के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ यूनिवर्सिटी का 25वां दीक्षांत समारोह. इसमें मैंने सहिष्णुता से आगे जाकर स्वीकार्यता के लिए सतत बातचीत के जरिए सद्भाव को बढ़ावा देने पर जोर देने की बात की थी. कहा था कि हमारे समाज के विभिन्न वर्गों में असुरक्षा की आशंका बढ़ी है, खासकर, दलितों, मुसलमानों और ईसाइयों में.
इसके अलावा 9 अगस्त, 2017 को राज्यसभा टीवी पर दिए गए इंटरव्यू पर भी लोग नाराज थे. करण थापर ने मुझसे कई सवाल किए थे, जिनमें अगस्त 2015 में ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत में दिए गए भाषण और बेंगलुरू के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ यूनिवर्सिटी के भाषण का जिक्र था. मैंने कहा था कि मुसलमानों में बेचैनी है, असुरक्षा है. जहां भी सकारात्मक कार्रवाई की जरूरत है वहां होनी चाहिए. ये भी कहा था कि भारतीय मुस्लिम अनूठे हैं और चरमपंथी विचारधारा की ओर नहीं खिंचते हैं.
हामिद अंसारी की देश को सीख
इसके अलावा हामिद अंसारी ने लिखा है कि संसद बहुमत से चुनकर आए लोगों की मनमानी की जगह बनकर रह गया है. न्यायपालिका पर भी पूर्व उपराष्ट्रपति ने सवाल उठाए हैं. बाकी तो जैसे जब सत्ता का हस्तांतरण होता है या फिर परिवार में ही सत्ता किसी बुजुर्ग के हाथ से लेकर किसी नौजवान के हाथ में दी जाती है तो बुजुर्ग आम तौर पर नए निजाम को कुछ सीख देता है. ऐसा ही काम हामिद अंसारी ने भी किया है. उन्होंने सलाह दी है कि हमें फिर से अपने संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग पर लौटने की जरूरत है. कोऑपरेटिव फेडरलिज्म की जरूरत है. शहरी अमीर इंडिया और गरीब भारत के बीच की रेखा को मिटाने की जरूरत है और संवैधानिक मूल्यों को बचाने की जरूरत है. बाकी इस किताब में ऐसा बहुत कुछ है, जिसे पढ़कर आपको भारत की आंतरिक राजनीति और भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर एक नई दृष्टि मिलेगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)