सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने संसद में बताया कि पिछले तीन सालों के दौरान यानी 2019, 2020 और 2021 में 35 हजार 950 छात्रों ने खुदकुशी की. उन्होंने बताया कि साल 2019 में 10 हजार 335 छात्र, 2020 में 12 हजार 526 छात्र और 2021 में 13 हजार 89 छात्रों ने खुदकुशी कर ली. दरअसल, आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में मैं ये कह सकता हूं कि बच्चों में तनाव का एक मुख्य कारण ये है कि उन पर पैरेंट्स का भारी दबाव रहता है.


हमारा एजुकेशन सिस्टम का ढांचा जो चला आ रहा है वो आज भी कई राज्यों में काफी पुराना है. ऐसे में बच्चों को ऊपर इतना बोझ डाल दिया जाता है कि उससे बच्चे काफी तनाव में रहते हैं. इसके अलावा, प्रतिस्पर्धा और अभिभावकों का भारी दबाव. हालांकि, भारत सरकार ने नई एजुकेशन पॉलिसी दी है, उसमें इस तरह के तनाव को काफी हद तक कम भी किया गया है.


तनाव की वजह पुराना एजुकेशन सिस्टम


मेरा विचार है कि सभी राज्यों में नई एजुकेशन पॉलिसी अपनाई जाए, जिससे काफी हद तक तनाव कम हो जाएगा. इसके अलावा, ये एक ग्लोबल एजुकेशन है, जिसको इंटरनेशनल लेवल पर मान्यता मिली हुई है.  नई एजुकेशन पॉलिसी हमने खुद हरियाणा के जींद स्थित रणबीर सिंह यूनिवर्सिटी में लागू की है.


इसमें  खासकर क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा दिया गया है. क्षेत्रीय स्तर पर जो परंपराएं हैं, जो संस्कृति और वेद हैं, उन सबको बढ़ावा दिया गया है कि उनसे ज्ञान को आप पढ़ो. यदि आप ज्ञानी होंगे, यदि आप अच्छे तरीके से वेद पढ़ोगे या जो पुराने ग्रंथ हैं, रामायण-महाभारत को आप गहराई से पढ़ोगे तो ये तनाव इतना नहीं हो पाएगा.       



यूथ के ऊपर तनाव इस तरह से हावी होने की बड़ी वजह भौतिकवाद है. भागदौड़ की इस जिंदगी में हर कोई आगे निकलने की सोचता है. ऐसे में लोगों के ऊपर इस भौतिकवाद का ज्यादा प्रभाव पड़ा है. इंट्रेंस लेवल पर जो चीजें पहले हम अमेरिका में सुनते थे कि ऐसा है, आज उसी तरह के शहर, उसी तरह की भागदौड़ नोएडा-गुड़गांव में देखते हैं.


आगे भागने की मची होड़


जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ रहा है, ये तनाव वाली चीजें बच्चों पर हावी होती हुई दिख रही है. इसके अलावा, अभिभावक जिस तरह से अपने बच्चों से ये उम्मीद करते हैं कि उनके बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बने ये भी एक बड़ा फैक्टर है.


मेरी तो व्यक्तिगत तौर पर ये राय है कि कोई बच्चा जिस चीज में जाना चाहता है, वो उसकी पसंद है तो जाने देना चाहिए. जैसे- किसी का स्पोर्ट्स में है तो उसको उसमें जाने देना चाहिए. एक बड़ा कारण ये देखा गया है कि बच्चे की रुचि आर्ट्स में है और हम कहते हैं कि उसे डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहिए तो नेचुरली तौर पर वो बच्चा प्रेशर में आएगा. इसलिए ये सब बच्चे के ऊपर ही छोड़ दिया जाना चाहिए.



जब बच्चा 10वीं या 12वीं की पढ़ाई पास करता है तो उनके समझदार पैरेंट्स ये पूछते हैं कि वे किसमें एडमिशन लेना चाहता है. इस तरह से उस बच्चे पर ये फैसला छोड़ देना चाहिए. प्रेशर तब बनेगा जब पैरेंट्स की तरफ से ये कहा जाएगा कि तुम्हें तो डॉक्टर बनाना है, या तुम्हें इंजीनियर बनाना है या सीए बनाना है. जबकि, बच्चा खुद बनना नहीं चाहता है. जब जबरदस्ती की जाएगी तो नेचुरली प्रेशर बनेगा.


अभिभावकों को भी रखना होगा ध्यान


कंपीटिशन के लिए हम अपने बच्चों को दो-तीन साल के लिए बाहर भेजते हैं. जैसे हम पुरानी परंपरा के अनुसार जो चीज हम अपनी कक्षा में पढ़ते थे, उसमें से जो अच्छे बच्चे होते थे वो निकल जाते थे. अब बच्चे कोटा जा रहे हैं, नया सेंटर सीकर बन गया है. अगर बच्चों के साथ अभिभावक नहीं रहते हैं तो ऐसा मुमकिन है कि बच्चे ड्रग्स का शिकार हो जाएं. यही बात कोटा में भी हुई है. 


  इसके साथ ही, स्कूलिंग की जहां तक बात है तो स्कूलों में साइकोलॉजिकल काउंसलिंग जरूर होनी चाहिए. आप देखते होंगे कि बहुत से स्कूल ऐसे हैं, खासकर सरकारी स्कूल या छोटे-मोटे दूसरे स्कूल, जहां पर कोई भी काउंसलर नहीं होता है. एक काउंसलर भी जरूर होना चाहिए. यदि आप इंटरनेशनल लेवल के एजुकेशन हासिल कर रहे हों तो सारी सुविधाएं भी देनी चाहिए. 


पैरेंट्स के लिए ये भी सुझाव रहेगा कि बच्चों में जिस चीज को लेकर प्रतिभा है, वो उनकी पहचान करें. हर एक बच्चे में कोई न कोई स्किल जरूर होती है. चाहे वो टैलेंट किसी भी तरह का हो, तो उन बच्चों को उसी तरह का काम करने दिया जाए. जिससे उन बच्चों पर तरह से प्रेशर नहीं रहेंगे.


सरकार ने कई स्कीम निकाली


आज की तारीख में बच्चों पर ज्यादा प्रेशर न बने, इसके लिए कई स्कीम निकाली है, जैसे- स्टार्टअप्स है. कम्प्यूटर का कोई भी कोर्स करके आप आराम से अच्छे पैसे कमा सकते हैं. बहुत ऐसी स्कीम सरकार की और बाहर की भी है, जिसे हम कम्प्यूटर पर ऑनलाइन करके घर बैठे ही 10-15 हजार रुपये आसानी से कमा सकते हैं. ऐसे स्कील बेस्ड जो भी सब्जेक्ट्स हैं, उनको एडॉप्ट करें. सरकार ने भी यही किया है कि जिसकी जैसी स्किल है उस हिसाब से वो अपने सब्जेक्ट का चुनाव करें.


इसके अलावा, ऐसे बच्चे जो प्रतिभाशाली है, लेकिन आर्थिक मजबूरियां कहीं न कहीं उनके सामने आती हैं, ऐसे बच्चों के लिए भी सरकार की तरफ से कई स्कीम्स हैं. गांवों में भी नवोदय या केन्द्रीय विद्यालय है. इसका यही उद्देश्य था कि ऐसे लोग जिनके पास पैसे नहीं है, दूरदराज में ऐसे स्कूल सरकार की तरफ से बनाए गए हैं. केन्द्रीय विद्यालय का ये उद्देश्य है कि जो छोटे कर्मचारी है, अगर उनके पास संसाधन नहीं है तो अपने बच्चों को ऐसे स्कूल में दाखिला दिलवा सकते हैं.


 इसके अलावा, सरकार ने संस्कृति स्कूल बनाए हुए हैं. खासकर हरियाणा में हर जिले में एक-एक स्कूल बनाए हुए हैं. उसमें बहुत ही अच्छे टीचर्स का सेलेक्शन किया गया है. फीस बहुत कम है और पढ़ाई बहुत ही अच्छी है. इस तरह से सरकार उसमें प्रयास कर रही है कि गांव के लेवल पर या दूर-दराज में बच्चे एजुकेशन लें. 


हमने खुद किए खास इंतजाम


ऐसे बच्चे जिनके ऊपर बहुत ज्यादा तनाव न हो इसके लिए साइकोलॉजी विभाग है. सबसे पहले इंडेक्शन प्रोग्राम करते हैं. नए बच्चे के आने पर काउंसलर से इंडेक्शन प्रोग्राम कराते हैं. कुछ मोटिवेटर आते हैं, उनसे हम छात्रों को मोटिवेशनल लेक्चर दिलाते हैं.  


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]