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मैंने उस बिटिया को डंडा क्यों मारा...

मुझे अपनी पुलिस की नौकरी में होने पर उस दिन पहली बार पछतावा हुआ जब मैंने अपनी बिटिया जैसी दिखने वाली प्रदर्शन कर रही एक बेटी पर ही डंडा चला दिया. ये हमारे पुराने मित्र थे जो इंदौर पुलिस में डीएसपी हैं और लंबे समय बाद उज्जैन में मुझे मिले तो कमरे में चाय पीते-पीते ये अफसोस जता गये. और सुना गये ये अनसुना किस्सा.

उस दिन इंदौर में पीएससी दफ्तर के बाहर पढे लिखे बेरोजगार छात्र छात्राओं का प्रदर्शन था. हम हमेशा की तरह बिना किसी भाव के प्रदर्शनकारियों की निगरानी में खड़े थे. मैं भी उस दिन मौके पर था. हमारी मांगे पूरी करो के नारों के बीच करीब पांच सौ लोग पीएससी के पुराने रिजल्ट जारी करो और नयी भर्ती लाओ के नारे लगा रहे थे. 

हम भी अपने विश्वविद्यालय में ऐसे ही धरने प्रदर्शन करते थे तो मुझे पुराने दिन याद आ रहे थे. मगर उस भीड़ में मेरा ध्यान खींच रही थी लंबे काले बालों वाली वो लडकी. जिसके नैन नक्श हूबहू मेरी बेटी छुटकी जैसे ही थे. जो इन दिनों दिल्ली में पढ़ रही है. सर पानी ले लीजिये हमारे ड्राइवर ने ठंडी पानी की बोतल जब मुझे दी तो मैं उस बोतल को लेकर उस लड़की के पास गया और कहा लो बेटा पानी पी लो बहुत गर्मी है. उसने मुस्कुराकर हमें थैंक्यू अंकल कहा.

अब मैंने उससे बात करनी शुरू कर दी. उसने बताया कि वो रायसेन जिले के सिलवानी कस्बे में किसान परिवार की है और पिछले कुछ सालों से इंदौर में पढ़ रही है. स्कूल में अच्छे नंबर आये तो पिता से जिद करके इंदौर पढ़ने आ गई. उसने 2019 में प्री और मेंस की परीक्षा दी. फिर 2020 में उसने पीएससी का प्री पास करके मेंस दिया मगर अब तक उसका रिजल्ट भी नहीं आया तो 2021 में फिर पीएससी प्री दिया और उसका भी रिजल्ट अब तर रुका है. 

उसने कहा कि मैंने तीन साल में तीन परीक्षा दी हैं और अब ओवर एज होने की कगार पर हूं. घर वाले भी अब मेरे करियर की नहीं बल्कि शादी की चिंता करते हैं. उसने कहा कि कहां तो हम प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना सालों से संजोए थे मगर अब धूप में धक्के खा रहे हैं. कब आप लाठी डंडे मारकर भगा दोगे कोई भरोसा नहीं. कोई सुनवाई नहीं है हम पढे लिखे काबिल छात्र छात्राओं की. उस पर हम किसी वर्ग कोटे में नहीं आते तो और दिक्कत है. आप बताइए कि हम क्या करें और कितने सालों तक पीएससी ही देते रहें.

यदि पास नहीं होते तो मन मानकर घर बैठ जाते मगर हम मेहनत से परीक्षा पास कर रहे हैं फिर भी सरकार नौकरी नहीं दे पा रही है. ऐसे में ये सब ना हो तो क्या करें ये बात आप बताइये. हमसे ये सवाल उस लड़की का था. हडबडाकर हमने कहा कि बेटा तुम्हारी बात एकदम सही है मगर ऐसे विरोध प्रदर्शन से आखिर क्या हासिल होगा.  

हडबडाकर मैंने कहा बेटा तुम्हारी बात एकदम सही है मगर क्या ऐसे विरोध प्रदर्शन से क्या हासिल होगा. अंकल आप अपनी बेटी से कहते हो पढो मैंने पढ़ाई की अब रिजल्ट नहीं आ रहे तो अपने हक के लिये कुछ तो करना होगा. पीएससी दफ्तर के सामने प्रदर्शन करते हैं तो आप कहते हैं भोपाल जाओ वहां भी हम सब मामा मुख्यमंत्री के पास भी गये थे मगर दरवाजे से ही खदेड दिये गये.

अच्छा आप यूं समझिये कि आप मेरे पापा हैं आपने मुझे पेट काटकर पढाया लिखाया और अब इंदौर भेज दिया पढने मैंने भी मेहनत की. ग्रेजुएशन किया. फिर पीएससी दी प्रिलिम्स निकाला मेंस निकाला अब नौकरी कब मिलेगी कोई बताने वाला नहीं है. ये सरकार हमारी काबिलियत की नहीं धीरज की परीक्षा ले रही है. आप मेरे पापा के तौर पर क्या सोचते हैं. बोलिए.

नहीं ये तो गलत है यदि परीक्षा ली है तो तय समय पर रिजल्ट आना होगा ये मैं बोल गया. वो होशियार लडकी फिर बोली यदि सरकार आरक्षण के नियमों में फंसने पर नगरीय और पंचायत चुनावों के लिए रास्ता निकाल लेती है तो हम बेरोजगारों के लिये क्यों नहीं ऐसा करती. क्योंकि अब नेताओं के बच्चे सरकारी नौकरियों के लिये भर्ती परीक्षा नहीं देते सीधे चुनाव लड़कर सरकार में शामिल हो जाते है. समझे आप. अंकल हमें आप के बेटे बेटी समझ कर सहानुभूति रखिये और प्रदर्शन करने दीजिये.

उस लडकी की बातें सुन कर मेरे दिमाग के तार हिल गये और मैं दूर खडा हो सोचने लगा कल को मेरी बेटी भी पढ़ने और परीक्षा पास करने के बाद यही सवाल पूछेगी तो क्या कहूंगा. मगर ये क्या अचानक ही बदहवासी का आलम बन गया. कुछ प्रदर्शनकारी छात्र दफ्तर परिसर में घुसने लगे ऐसे में पुलिस के डंडे चल उठे मैं भी उलटे पैर भागा और जो पहला डंडा एक लड़के पर घुमाया ही था कि सामने कोई लडकी आ गयी और वो उसे जा लगा.

मगर ये क्या ये तो वही लड़की वही थी जो थोडी देर पहले मुझे पापा समझ कर परेशानियां समझा रही थीं. डंडे की चोट खाने के बाद आंसू भर कर उसने मुझे भरपूर नजरों से देखा. उसकी नजरें शायद यहीं बोल रहीं थी क्या पापा आप भी अपनी बेटी को ही मार रहे हैं. उस दिन के बाद से मेरा मन नहीं लग रहा है सोचता हूं इन पढे लिखे बेरोजगार काबिल बच्चों का क्या कसूर है?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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