साल 2010 के आखिरी दिनों की बात है. एक शाम करीब 7.30 बजे मेरे मोबाइल पर ज्वाइंट कमिश्नर मुंबई क्राइम ब्रांच के दफ्तर से कॉल आया. कॉल करने वाले शख़्स ने कहा “जेसीपी क्राइम हिमांशु रॉय साहब बात करना चाहते हैं.” कुछ दिन पहले ही रॉय सर ने क्राइम ब्रांच का चार्ज लिया था. उनसे मेरा परिचय था लेकिन रोज़ाना मिलना जुलना नहीं होता था. मै समझ नहीं पाया कि आख़िर ये कॉल क्यूं किया गया है.
कुछ सेकेंड में फोन पर आवाज सुनाई दी ‘सॉरी ब्रदर, मीटिंग में था इसलिए आपका फोन नहीं ले पाया. बताइए कुछ खास? ये सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ कि एक बड़ा आईपीएस अधिकारी अपनी व्यस्त मीटिंग के चार घंटे बाद आप को कॉल करना नहीं भूलता है. दरअसल मैंने ही हिमांशु रॉय से मिलने का समय लेने के लिए फोन किया था.
आप सोच रहे होंगे कि इसमें आश्चर्य होने जैसा क्या है. हर रिपोर्टर ये बात कहेगा खास तौर पर क्राइम रिपोर्टर. ऐसे कम अधिकारी होते हैं जो व्यस्त होने पर कॉल नहीं लेते लेकिन फुरसत मिलते ही कॉल बैक जरुर करते हैं. उन अधिकारियों में से एक थे हिमांशु रॉय. उनकी इस आदत ने मेरे मन में उनके प्रति आदर बढ़ा दिया था.
क्राइम ब्रांच चीफ बनते ही कई लोगों ने उनके बारे में तरह तरह की बातें की. किसी ने कहा बड़े खड़ूस हैं तो किसी ने कहा कि अब क्राइम रिपोर्टर्स को खबरें मिलना बंद हो जाएंगी. लेकिन उनसे संपर्क में रहकर जो मेरा अनुभव था वो बिलकुल उसके विपरीत था. और शायद मेरे इस खयाल से मुंबई के कई क्राइम रिपोर्टर सहमत होंगे.
हिमांशु रॉय ने राकेश मारिया से क्राइम ब्रांच का चार्ज लिया था. उन्होंने शिवानंदन, राकेश मारिया जैसे क्राइम की दुनिया की ज़बरदस्त समझ, जानकारी और पकड़ रखनेवाले अधिकारियों के बाद क्राइम ब्रांच की कमान संभाली थी. उन पर बहुत प्रेशर था. लोग कहते थे कि हिमांशु रॉय इन अधिकारियों के स्टैंडर्ड का काम नहीं कर पाएंगे. अपने प्रति लोगों की इसी इमेज को हिमांशु रॉय बदलना चाहते थे जो कि उन्होंने बख़ूबी बदली.
क्राइम ब्रांच का चार्ज लेने के बाद हमारी पहली मुलाकात में भी इसी विषय पर बात हुई. हिमांशु रॉय ने मुझे पूछा था कि पत्रकार मेरे बारे में क्या सोचते हैं. इस पर मैंने कहा कि पत्रकारों को बस एक बात की चिंता है कि क्या अब उन्हें क्राइम ब्रांच से सहयोग मिलेगा. क्या नए क्राइम ब्रांच चीफ तक पत्रकारों को एक्सेस मिलेगा जो कि अब तक मिलता आ रहा है. उन्होंने हंस कर कहा कि 6 महीने बाद मैं दोबारा तुमसे यही सवाल करुंगा, विश्वास है कि तुम्हारा जवाब मुझे पसंद आएगा.
शायद चार महीने बाद ही हिमांशु रॉय के सवाल पूछने से पहले ही मैंने उन्हें जवाब दे दिया था जिसे सुनकर वो ख़ुश हुए. उन्होंने केवल पत्रकार ही नहीं बल्कि मुंबई क्राइम ब्रांच की अपनी पूरी टीम के साथ एक नाता जोड़ा था. आप किसी भी उनके साथी, सहयोगी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि रॉय साहेब के क्राइम ब्रांच में चार साल क्राइम ब्रांच का गोल्डन पीरियड था.
हिमांशु रॉय ये भलीभांति जानते थे कि क्राइम ब्रांच का सफर एक बहुत मुश्किल और चुनौती भरा होगा. क्राइम ब्रांच पर अपनी पकड़ बनाने के लिए उन्होंने सबसे पहले एक मजबूत टीम बनाई. पहले देवेन भारती के साथ फिर निकेत कौशिक के साथ. इन तीनों की जोड़ी ने क्राइम ब्रांच को एक बल दिया. इसी बल के आधार पर क्राइम ब्रांच ने ऐसा काम किया कि देश की तमाम एजेंसियां मुंबई क्राइम ब्रांच के काम की कायल हो गईं. उन्होंने अपनी टीम पर कभी प्रेशर नहीं दिया, उन्हें फ्री हैंड दिया. हर बार सरकार, मीडिया के दबाव को खुद झेला लेकिन कभी भी उसका असर अपनी टीम पर नहीं होने दिया. यही वजह थी कि क्राइम ब्रांच ने उन चार सालों में बेहतरीन काम किया.
आईपीएल बेटिंग केस, जे डे मर्डर केस, शक्ति मिल गैंग रेप केस, पल्लवी पुरकायस्थ मर्डर केस, फरीद तानाशाह मर्डर केस, एनएसइआय केस जैसे कई केस हैं जो हिमांशु रॉय के कार्यकाल में डिटेक्ट हुए. ऐसा नहीं है कि वो रिलेशन सिर्फ काम के लिए ही बनाते थे. जिससे एक बार दोस्ती की उसे वो ज़िंदगी भर निभाते भी थे. अकसर फिट रहने पर जोर देने वाले रॉय सर ने मेरी शादी के वक़्त मुझे डायट प्लान दिया था. शादी के एक साल बाद जब मेरा वजन बढ़ा तब उन्होंने मुझे टोका भी. एक दिन उन्होंने मुझे अपनी ब्लड रिपोर्ट दिखाई और कहा, “देखो मेरी ब्लड रिपोर्ट कैसे 30-35 साल के आदमी जैसी है. कोई कहेगा कि ये पचास साल के आदमी की रिपोर्ट है. तुम्हे भी खुद को मेंटेने करना चाहिए.” वो रिपोर्ट वाकई में किसी पचास साल के शख्स की नहीं थी. सारे पैरामीटर्स नॉर्मल.
अपने सेहत का इतना ध्यान रखने वाले हिमांशु रॉय इस तरह हमें छोड़ जाएंगे ये किसी ने भी नहीं सोचा होगा. करीब दो साल पहले आईपीएस अधिकारी विवेक फनसलकर जी की माताजी का जब देहांत हुआ था तब मैं उनसे मिलने पहुंचा था. उस दिन पहली बार मैंने रॉय सर को तकलीफ में देखा. उनका वजन बहुत बढ़ गया था और उन्हें चलने में दिक्कत भी हो रही थी. मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने बात टाल दी.
कुछ दिन बाद पता चला कि वे मेडिकल लीव पर चले गए. उनसे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन सीधे संपर्क नहीं हो पाया. बाद में उनकी इस बीमारी की जानकारी मुझे मिली. उनके बेहद करीबी एक अधिकारी ने मुझे बताया कि कुछ दिनों पहले रॉय सर घुड़सवारी करते समय गिर गए थे. करीब 15 दिनों तक वो उस चोट को नजरअंदाज करते रहे. लेकिन जब दर्द कम नहीं हुआ तब जाकर उन्होंने अपनी तकलीफ को डायगनॉस किया.
कुछ महीनों तक रॉय सर किसी से भी नहीं मिले. केवल फोन और मैसेज पर बात होती रही. मैं और जीतू भाई अकसर उनके संपर्क मैं रहते क्यूंकि बजरंगबली के जरिए हमारा एक विशेष नाता बन गया था. लगभग एक साल बाद वो मुझसे मिलने के लिए राजी हुए. मैं उनके घर गया और उन्हें देखकर बुरा लगा. लेकिन उनकी हिम्मत देखकर प्रेरणा भी मिली. वो कहते थे कि बहुत जल्द फोर्स में आउंगा. हर आईपीएस अधिकारी की तरह उनका भी सपना मुंबई पुलिस कमिश्नर बनने का था. आज स्वस्थ रहते तो निश्चित रुप से उस पद के प्रबल दावेदार होते. दो महीने पहले एक निजी काम से उन्होंने मुझे मिलने बुलाया था तब उनकी हिम्मत टूटते दिख रही थी. लेकिन कभी लगा नहीं की वो इस तरह हार मान जाएंगे.