आज़ाद भारत की राजनीति में शायद ये ऐसी पहली व अनूठी मिसाल बनते दिख रही है, जो आने वाले इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के लायक़ बनती है. सरकार और नौकरशाही के रिश्ते तो अक्सर खटास भरे होते ही आये हैं लेकिन देश में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि एक राज्य के ताकतवर मंत्री ने किसी ऐसे नौकरशाह के ख़िलाफ़ इतनी जबरदस्त तरीके से मोर्चा खोल दिया हो,जो उनकी सरकार का नहीं बल्कि केंद्र सरकार का ओहदेदार मुलाज़िम हो.


चूंकि मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है. लिहाज़ा आप या हम ये तय नहीं कर सकते कि महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक सच बोल रहे हैं या फिर अपने ही विभाग की विजिलेंस जांच को झेल रहे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी के मुंबई के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े के दावे झूठे हैं. लेकिन ये मामला हमारे लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय इसलिये है कि किसी भी जांच एजेंसी के एक अफसर को महज उसकी ईमानदारी के नाम पर मनमानी करने की छूट दे दी जाए या फिर सत्ता में बैठे एक मंत्री को अपनी निजी दुश्मनी निकालने के लिए किसी अफसर और उसके पूरे खानदान को कथित रुप से बदनाम करने का हक़ दे दिया जाये? ये ऐसा सवाल है, जिसका जवाब आखिरकार न्यायपालिका के फैसले से ही मिलेगा लेकिन पिछले 26 दिन से इसने देश में उन लोगों को भी बेचैन कर रखा है,जो शाहरुख खान या उनकी फिल्मों के उतने बड़े फैन्स नहीं हैं लेकिन फिर भी वे किसी कलाकार को लेकर नफ़रत की भावना अपने दिल में नहीं रखते.


चूंकि मामला बॉलीवुड के सुपर स्टार समझे जाने वाले  शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की ड्रग्स मामले में हुई गिरफ्तारी से जुड़ा है,लिहाज़ा दुनिया के कई मुल्कों के उन लोगों की निगाहें भी इस पूरे केस पर लगी हुई हैं जो शाहरुख के फैन्स हैं. लेकिन एक मंत्री और संबंधित अफसर व उनके परिवार के बीच मीडिया के जरिये आरोप-प्रत्यारोप की जो जंग छिड़ी हुई है,उसे देख-सुनकर वे भी हैरान हैं कि भारत में आखिर ये हो क्या रहा है. एक मंत्री हर दिन किसी नए दस्तावेज़ को पेश करके एक खास अफसर पर संगीन आरोप लगाए और उसके बचाव में उस अफसर के पूरे परिवार को मीडिया के सामने आकर सफाई देनी पड़े,तो उसे देखने-पढ़ने वाला आम इंसान भी इस पसोपेश में पड़ जाता है कि आखिर सच कौन बोल रहा है ? मंत्री या वो अफसर और उसका परिवार?                 


लेकिन एक बड़ा सवाल और भी है जो लोगों को परेशान किये हुए है कि नवाब मलिक की समीर वानखेड़े से आखिर ऐसी क्या दुश्मनी है कि उन्होंने मुम्बई एनसीबी के 'सिंघम' कहलाने वाले अफसर की ईमानदारी वाली इमेज को महज़ चंद दिनों में ही ऐसा धोकर रख डाला कि हाई प्रोफाइल मामले की जांच करने वाला ही खुद शक के दायरे में आ गया. इस मसले पर दोनों पक्षों के अपने दावे हैं और किसी को सही या गलत ठहराने के हम हकदार भी नहीं हैं. लेकिन इस मामले से जुड़े मुख्य गवाह के सहयोगी ने जो आरोप लगाए हैं,उसने वानखेड़े की मुश्किलें जरुर बढ़ा दी हैं और उसके बाद से ही नवाब मलिक दोगुनी ताकत से हमलावर हो गए हैं.


कानून के जानकारों की मानें,तो वानखेड़े ने 2 अक्टूबर की रात क्रूज़ पर छापा मारने के दौरान अगर कुछ बुनियादी कानूनी गलतियां न की होतीं,तो शायद नवाब मलिक इतनी ताकत से उनके खिलाफ मोर्चा खोलने की हिम्मत नहीं करते और न ही उनकी पूरी कुंडली लोगों के सामने पेश करते. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की अल्पमत वाली सरकार को बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देने वाले कांड को उजागर करने वाले दिल्ली हाइकोर्ट के वकील रवींद्र कुमार के मुताबिक " वानखेड़े की सबसे पहली व बड़ी ग़लती ये थी कि वे क्रूज़ पर रेड करने के लिए अपने साथ Stock Witnesses यानी ऐसे गवाह ले गए,जो उनके पुराने परिचित थे और जिनका इस्तेमाल वे पहले भी कुछ मामलों में कर चुके थे. कोर्ट की नज़र में किसी भी पुलिस या जांच एजेंसी का छापा उसी वक़्त शक के दायरे में आ जाता है,जब वो किसी इंडिपेंडेंट व्यक्ति को गवाह बनाने की बजाय पुराने ही गवाहों का इस्तेमाल करती है.


दूसरी बात कि वह टार्गेटेड रेड थी जिसमें एनसीबी की टीम के लोगों के मोबाइल फ़ोन में पहले से ही उन चुनिंदा लड़के-लड़कियों के फोटोग्राफ थे,जिन्हें पकड़ना ही उनका एकमात्र मकसद था. भले ही उनसे कुछ बरामद होता है या नहीं.उनकी तलाशी भी गवाहों के सामने नहीं ली गई लेकिन उन्हीं गवाहों का बर्ताव आर्यन खान या दूसरे आरोपियों के साथ कुछ ऐसा था,मानो वे एनसीबी के अफसर हों. किसी भी तरह की रेड करने के लिए कानून साफ कहता है कि वहां मौजूद सभी लोगों की तलाशी ली जाये.जबकि एनसीबी के दावे के मुताबिक क्रूज़ पर उस वक़्त करीब छह सौ लोग थे लेकिन गिरफ्तार किए गए लोगों समेत वहां किसी की भी तलाशी न ली जाना, पूरी घटना को रहस्यमय बनाता है."


कानूनी जानकारों की नज़र में हालांकि अब इस पूरे मामले को सियासी लड़ाई में बदल दिया गया है लेकिन जिन परिस्थितियों में और जिस अंदाज में उस रात इस छापे को अंजाम दिया गया,उसके लिहाज़ से एनसीबी की नीयत पर किसी भी मंत्री का या मीडिया का सवाल उठाना,कानूनी हक बनता है जिसका सच एनसीबी को कोर्ट के सामने साबित करना ही पड़ेगा.


देश के इतिहास में ये भी शायद पहली बार हो रहा है कि मंत्री और अफसर की इस लड़ाई में धर्म और जाति को भी सियासी हथियार बना लिया गया.बुधवार को नवाब मलिक ने एक ट्वीट के जरिए समीर वानखेड़े के मुस्लिम होने का दावा करते हुए उनकी पहली शादी का जिक्र किया है.नवाब मलिक के ट्वीट में लिखा है कि 7 दिसंबर 2006, दिन गुरुवार को शाम 8 बजे समीर दाऊद वानखेड़े और शबाना कुरैशी का निकाह मुंबई के लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स अंधेरी वेस्ट में सम्पन्न हुआ था.नवाब मलिक ने समीर वानखेड़े और डॉ.शबाना कुरैशी के निकाहनामे का सर्टिफिकेट भी ट्विटर पर शेयर किया है.हालांकि वानखेड़े परिवार ने उस निकाहनामे को गलत नहीं ठहराया है लेकिन वे  खुद को आज भी अनुसूचित जाति का ही बता रहे हैं और उनका दावा है कि उन्होंने कभी धर्म परिवर्तन नहीं किया.


जाहिर है कि वक़्त आने पर हर सवाल का जवाब किसी सच के साथ सबके सामने आयेगा.लेकिन मंत्री और अफसर की इस लड़ाई का सच भी देश के सामने आना ही चाहिए कि आखिर इसमें बेलगाम होकर किसने अपनी हदें पार की थीं और बेकसूर कौन था?


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