राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) चीफ मोहन भागवत ने हाल ही में मुस्लिमों को लेकर संघ की विचारधारा को बदलने की कोशिश की है. इसे लेकर उन्होंने कई बयान भी दिए हैं, साथ ही मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी मुलाकात की है. उनकी इस मुलाकात को हिंदू-मुस्लिम के बीच पैदा हो रही खाई को पाटने की बड़ी कोशिश बताया गया, हालांकि अगर देखा जाए तो ऐसा नहीं है. आरएसएस आज भी उन मुस्लिमों से दूर है, जो जमीनी तौर पर काम करते हैं और जिनकी अपने समुदाय में काफी अच्छी पैठ है. 


आरएसएस का जो प्लान है मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने का, उसका ये पूरा हिस्सा है. प्रधानमंत्री ने कहा कि हर वर्ग तर पहुंचने का काम किया जाएगा. उसी के बाद मोहन भागवत ने पांच प्रमुख बुद्धिजीवियों के साथ मुलाकात की. जिसका मकसद मुस्लिमों तक पहुंचना था. इसकी पहल काफी पहले से हो चुकी थी. आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार के नेतृत्व में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का निर्माण हुआ और जो पूरे देशभर के मुस्लिम जुड़े हैं वो बीजेपी की तरफ झुकाव रखते हैं. 


इसे हम ऐसे भी देख सकते हैं कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि मुस्लिमों को लेकर विवादास्पद रही है, इसके बावजूद अगर चुनाव में 15 फीसदी मुस्लिम समुदाय का वोट उन्हें मिलता है तो वो कहीं न कहीं आरएसएस के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और सरकार के कुछ वेलफेयर प्रोग्राम के चलते हुआ है. 


अब अगर उन लोगों की बात की जाए जिन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की है तो उनकी पब्लिक में ज्यादा पैठ नहीं है. किसी से भी अगर चुनाव लड़ा लिया जाए तो ये सच्चाई पता चल जाएगी. 


पीएम मोदी से मिलने वालों में पूर्व राज्यपाल नजीब जंग का नाम भी शामिल है. मुस्लिम समुदाय में इनकी कोई खास पहचान नहीं है. नजीब जंग पूर्व नौकरशाह भी रहे हैं और जामिया के पूर्व वीसी भी हैं. इसके अलावा मुकेश अंबानी की कंपनी से भी जुड़े रहे हैं. वो दिल्ली के एक अमीर मुस्लिम घराने से संबंध रखते हैं. 


पत्रकार रहे शाहिद सिद्दीकी की अगर बात करें तो वो किसी समय उर्दू का एक बड़ा चेहरा रहे हैं. उसका उन्हें फायदा मिला और राज्यसभा से चुने गए. जब कांग्रेस से उनकी बात नहीं बनी तो वो समाजवादी पार्टी में गए. उन्हें अपनी मैगजीन में हर तत्कालीन सरकार के खिलाफ आग उगलने के लिए जाना जाता है, उन पर मुसलमानों को कई मुद्दों पर उकसाने का आरोप भी लगता रहा है. शाहिद सिद्दीकी उर्दू के पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना वहीदुद्दीन सिद्दीकी के बेटे हैं. 


अब मौलाना इलियास की बात करें तो सबसे पहले ये देखना चाहिए कि वहां कितने लोग शुक्रवार की नमाज पढ़ते हैं. उनके पिता की छवि भी काफी विवादित रही है. जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी और कांग्रेस से मुस्लिम समुदाय टूटकर अलग-अलग समुदाय से जुड़ गया, उस वक्त इलियास जी के पिता ने मुस्लिम समुदाय को एकजुट करने की कोशिश की. उस वक्त उन्होंने दूरदर्शन टीवी पर हरी पगड़ी नरसिम्हा राव को पहनाई. एक वक्फ बोर्ड मस्जिद का इमाम बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद प्रधानमंत्री को हरी पगड़ी पहना रहे थे, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुस्लिम समाज के दिलों पर क्या गुजरी होगी? कितनी मोहब्बत की नजरों से उन्होंने मौलाना इलियास को देखा होगा. 


एसवाई कुरैशी की बात करें तो ये भी बुद्धिजीवी की कैटेगरी में आते हैं. वो कभी भी मुस्लिम समुदाय के पास नहीं गए हैं. ये पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं. इनकी समाज में कोई खास पकड़ नहीं है. अगर वो मुस्लिम बस्तियों में भी गए होंगे तो रुमाल से चेहरा छिपाकर गए होंगे. अर्बन क्लास मुस्लिम वहीं जाएंगे जहां उनकी गाड़ियों के टायर कटने का डर नहीं रहेगा. एसवाई कुरैशी ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें एक मुसलमानों की आबादी पर भी है. मुस्लिम के मुद्दों पर खुलकर बात करने के बाजाए मध्यमार्ग का रास्ते अपनाते हैं. 


आरएसएस ने जिनसे संपर्क किया उनमें जमीरुद्दीन शाह भी शामिल हैं. जो पूर्व सेनाधिकारी हैं. वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी हैं. 2018 में सरकारी मुसलमान नाम की किताब लिखी, जिसमें सरकारों की आलोचना की. उनका अमीर मुसलमान घराने से संबंध है, आम मुसलमानों के मसले के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वीसी बनाए जाने के बाद मुसलमानों को कुछ समझने में लगे हैं. 


आरएसएस के साथ कई दिक्कतें हैं, अगर मोहन भागवत ये कहते हैं कि हिंदुस्तान में रहने वाले सभी हिंदू हैं. ये बात बड़े स्तर पर मुस्लिमों को समझ नहीं आती है. मोहन भागवत का ये कहना एक तरह से गलत नहीं है, जैसे- भारत में अगर हम रहते हैं तो हम भारतीय हैं, इंडिया में रहने वाले इंडियन तो हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदू हुए... हालांकि ये बात संघ प्रमुख कर रहे हैं, इसीलिए मुसलमान सोचते हैं कि उनकी पहचान मिटाने की कोशिश हो रही है. मुसलमान ऐसे आपके साथ नहीं जुड़ सकते हैं. सावरकर ने खुद अपनी किताब में लिखा है कि जो भी मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट हैं वो बाहर के हैं. ऐसे में आम मुस्लिम आरएसएस को शक की नजर से देखता है. 



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