आरएसएस का वर्षों पुराना स्वप्न रहा है कि जब भी केंद्र में उसकी विचारधारा वाली सरकार आयेगी तो वह अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद देश में सबके लिए एक ही कानून बनायेगी जिसे समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड कहा जाता है. मोदी सरकार ने पहले दोनों लक्ष्य को तो पूरा कर दिखाया और अब वह तीसरे उद्देश्य को अमली जामा पहनाने के लिए तेजी से आगे बढ़ रही है. लेकिन ये मुद्दा थोड़ा पेचीदा रूप लेने की तरफ बढ़ता दिख रहा है क्योंकि इसका नाता मज़हब से जुड़ा हुआ है.
देश के मुसलमानों की सबसे बड़ी संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि मुल्क में नफरत का जहर फैलाया जा रहा है और उसे सियासी लड़ाई का हथियार बनाया जा रहा है. अब सवाल ये है कि सरकार एक राष्ट्र, एक कानून बनाकर क्या सचमुच नफ़रत फैला रही है या फिर इसे मज़हबी रंग देते हुए ऐसा माहौल को तैयार करने की कोई सुनियोजित कोशिश की जा रही है? बड़ा सवाल ये है कि पूरे देश की आबादी पर अगर एक ही कानून लागू होता है तो वह हमारी सबसे बड़ी अल्पसंख्यक जमात यानी मुस्लिमों के लिए वह नुकसानदायक क्यों और कैसे बन सकता है?
सवाल ये भी उठता है कि किसी भी धर्म के चंद ठेकेदार किस आधार पर ये फैसला ले सकते हैं कि सरकार द्वारा बनाये जाने वाले किसी एक कानून से पूरी कौम खतरे में आ जायेगी? वैसे भी करोड़ों लोगों की किस्मत का फैसला उस मज़हब के चंद झंडे बरदारों के विरोध की दलील के बिना पर न तो कोई सरकार लेती है औऱ न ही लेगी. मोदी सरकार का दावा है कि मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक खत्म होने से काफी खुश हैं.
साल 1973 में बना ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) एक गैर-सरकारी संगठन है जिसका मकसद उस वक़्त भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा करना और उसे निरंतर बनाये रखने के लिए उपयुक्त रणनीति अपनाने के लिए किया गया था. इसके जरिये ही 1937 में मुस्लिमों के लिए बने पर्सनल लॉ (शरीयत) को कानूनी जामा भी पहनाया गया था. लेकिन लगता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मुद्दे पर अब सरकार से आर-पार की लड़ाई करने की तैयारी शुरू कर दी है. आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रविवार को हुई अपनी बैठक के बाद कहा है कि मुसलमान का मतलब अपने आपको अल्लाह के हवाले करना है इसलिए हमें पूरी तरह शरीअत पर अमल करना है.
इसके साथ ही बोर्ड ने सरकार से अनुरोध किया है कि देश के संविधान में हर शहरी को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी है इसलिए वह आम नागरिकों की मजहबी आजादी का एहतराम करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का इरादा छोड़ दे. उसका ये भी कहना है कि ये मुल्क के लिए नुकसानदेह है. अगर भाईचारा खत्म हो गया तो मुल्क का इत्तेहाद पार हो जाएगा. बोर्ड ने कहा, अगर नफरत के जहर को नहीं रोका गया तो ये आग ज्वालामुखी बन जाएगी और मुल्क की तहजीब, उसकी नेकनामी, इसकी तरक्की और इसकी नैतिकता सब को जलाकर रख देगी.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में नदवातुल उलेमा लखनऊ में बोर्ड की कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पारित कर मुसलमानों से जो आह्वान किया गया है. वह सरकार के लिये भी चिंताजनक इसलिए है कि इससे देश में साम्प्रदायिक हिंसा का माहौल बन सकता है. वह इसलिये कि उस बैठक के बाद बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफ उल्लाह रहमानी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, ''बोर्ड की यह बैठक मुसलमानों को यह याद दिलाती है कि मुसलमान का मतलब अपने आपको अल्लाह के हवाले करना है, इसलिए हमें पूरी तरह शरीअत पर अमल करना है.''
बोर्ड ने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा, "देश के संविधान में बुनियादी अधिकारों में हर शहरी को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी दी गई है, इसमें पर्सनल लॉ शामिल है. इसलिए हुकूमत से अपील है कि वह आम नागरिकों की मजहबी आजादी का भी एहतराम करे और यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) को लागू करना अलोकतांत्रिक होगा." पर्सनल लॉ बोर्ड ने बगैर किसी का नाम लिए बीजेपीशासित राज्य सरकारों पर निशाना साधते हए ये भी कहा कि, "देश में किसी को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं होनी चाहिए, लेकिन बदकिस्मती है कि इस वक्त देश में ला-कानूनियत का माहौल बन रहा है. मॉब लिंचिंग हो रही है, मुल्ज़िम पर गुनाह साबित होने से पहले ही उसको सजा देने की कोशिश की जा रही है."
धर्म के प्रचार के लिए आजादी पर संविधान का हवाला देते हुए बोर्ड ने दलील दी है इसी बिनाह पर हमारे संविधान में इस अधिकार को स्वीकार्य किया गया है और हर नागरिक को किसी धर्म को अपनाने और धर्म का प्रचार करने की पूरी आजादी दी गई है लेकिन वर्तमान में कुछ प्रदेशों में ऐसे कानून लाए गए हैं जो नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करने की कोशिश है जो कि निंदनीय है. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 के अनुसार राज्य में गैर कानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन कराने या पहचान छिपाकर शादी करने के मामले में सख्त सजा का प्रावधान किया गया है.
हालांकि ये कहना बहुत जल्दबाजी होगी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने बयानों से मुस्लिमों को भड़का रहा है लेकिन उसके तीखे तेवरों को देखते हुए लगता नहीं कि ये आग इतनी जल्द बुझने वाली है. वो इसलिये कि बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (पूजा स्थल कानून) का लगातार उल्लंघन हो रहा है. इसको खत्म करने से देश में अफरातफरी और अराजकता का माहौल तैयार हो जाएगा. उनके मुताबिक तमाम इबादतगाहों और बौद्ध मंदिरों पर भी दूसरे मजहब के मानने वालों का कब्जा है. ऐसे में सरकार ने खुद 1991 में इस कानून को संसद से पास करवा कर लागू किया था और अब इस कानून को बरकरार रखने और उसका पालन करवाने की जिम्मेदारी भी सरकार की है. मौलाना ने कहा कि सरकार खुद एक कानून बनाती है और खुद ही उस पर अमल नहीं कर रही है तो इसे क्या समझा जाए. लिहाजा, बड़ा सवाल ये है कि सरकार समान नागरिक संहिता को भी ठीक वैसे ही शांतिपूर्ण तरीके से लागू कर पाएगी जैसा उसने धारा 370 को निरस्त किया था?
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