अमेरिका और चीन के बीच गहराती दुश्मनी क्या दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ़ धकेल रही है? ये सवाल इसलिए कि चीन की तमाम धमकियों को नजरअंदाज करते हुए अमेरिका ने अपनी तीसरी ताकतवर नेता और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी को ताइवान भेजकर उसे और उकसा दिया है. अमेरिका के दो दर्जन विमानों और युद्धपोतों की कड़ी सुरक्षा के बीच पेलोसी मंगलवार की रात ताइवान पहुंच गई हैं. अब चीन ने अमेरिका को इसका बेहद गंभीर अंजाम भुगतने की धमकी दी है.


उम्मीद के मुताबकि रुस भी चीन के समर्थन में कूद पड़ा है और समूची दुनिया में हलचल मच गई है. सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या ताइवान से ही दो महाशक्तियों के बीच जंग का आगाज होने वाला है क्योंकि वहां के समुद्री क्षेत्र में दोनों देशों की सेनाओं ने आमने -सामने वाली पोजीशन संभाल ली है. नैंसी के ताइपे (Taipei) पहुंचने से पहले ही ताइवान के प्रेसिडेंशियल हाउस की वेबसाइट समेत कई सरकारी वेबसाइट डाउन हो गई हैं. सुरक्षा एजेंसियों ने अंदेशा जताया है कि यह एक साइबर अटैक हो सकता है.


चीन ने आधिकारिक तौर पर पेलोसी की ताइवान यात्रा का विरोध किया है.चीन पहले भी कई बार चेता चुका है कि ताइवान के मामले में अमेरिका कोई दखल न दे क्योंकि ये उसका आंतरिक मामला है.लेकिन अमेरिका ने हमेशा ताइवान का खुलकर साथ दिया है और अब निचले सदन की स्पीकर को वहां भेजकर अमेरिका ने चीन को ये संदेश दिया है कि वह उसकी "गीदड़ भभकी" से नहीं डरता.


विदेशी मामलों के जानकार मानते हैं कि चीन के लिये ताइवान का मसला ठीक वैसा ही है,जैसा भारत के लिए कश्मीर का मामला है,जहां हमें भी किसी दूसरे पक्ष की दखलंदाजी मंजूर नहीं है. दरअसल,चीन और ताइवान के बीच ये झगड़ा सात दशक से भी पुराना है. चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है और उसका मानना है कि एक दिन ताइवान उसका हिस्सा बन जाएगा. वहीं, ताइवान खुद को आजाद देश बताता है. उसका अपना संविधान है और चुनी हुई सरकार भी है. 


विश्लेषकों के मुताबिक अमेरिका ने जो कदम उठाया है,उसके बाद चीन शांत नहीं बैठने वाला है. ये ऐसा मुद्दा है, जिसका हल किसी कूटनीतिक वार्ता के जरिये नहीं निकल सकता है. देखना ये होगा कि चीन इसका जवाब किस घातक तरीके से देता है क्योंकि अमेरिका तो ताइवान को बचाने के लिए पूरी ताकत लगायेगा लेकिन उधर, रुस के चीन के समर्थन में कूद जाने के बाद होने वाली लड़ाई कितना खतरनाक रुप ले लेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. 


रुस ने  चीन का समर्थन करते हुए साफ कह दिया है कि पेलोसी की संभावित ताइवान यात्रा पूरी तरह से उकसावे वाली कार्रवाई है.यानी,रुस ने दुनिया के आगे अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि ताइवान को लेकर अगर जंग छिड़ती है,तो वह खुलकर चीन का साथ देगा.


चीन ने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि अगर पेलोसी ताइवान की यात्रा करती हैं तो चीनी सेनाएं शांति से नहीं बैठी रहेंगी. जाहिर है कि अमेरिका ने उसकी चेतावनी को ठुकराकर चीन से आर-पार की लड़ाई छेड़ने का बिगुल बजा दिया है?


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