राजनीति में कब कौन सा दांव कहां चलना है यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर कोई और नहीं जानता. नए संसद भवन में पहले विधेयक के रूप में महिलाओं के लिए पहला कदम उठा कर मोदी ने पूरे विपक्ष को फिर से चौंका दिया है. वर्षों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक को कई बार पास कराने के प्रयास हो चुके थे लेकिन आखिरकार विपक्ष के संयुक्त प्रयास से यह विधेयक पारित हो गया और इतिहास बन गया. चुनावी साल में विपक्ष इस विधेयक पर अपनी आपत्ति जताएगा इसकी उम्मीद भी कम ही थी. हालांकि, विपक्ष में मौजूद कांग्रेस यह आरोप लगा रही है कि यह उनके द्वारा लाया गया बिल था. मोदी सरकार भी इस बिल को पास कराने को लेकर प्रतिबद्ध दिख रही थी. भाजपा के पास वर्तमान में किसी भी बिल को पास कराने के लिए पर्याप्त बहुमत भी है और इस बिल के पास होने के साथ ही यह भाजपा का मास्टरस्ट्रोक साबित होगा, जिससे देश की आधी आबादी को साधा जा सकेगा और उसके सहारे वह फिर से 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपना परचम लहरा कर सत्ता पर काबिज होगी.
क्या है नारी शक्ति वंदन अधिनियम
नारी संसद वंदन अधिनियम में यह प्रावधान है कि लोकसभा, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी. इसके साथ ही लोकसभा, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए रिजर्व सीटों का एक तिहाई हिस्सा भी महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा. लोकसभा या विधानसभा सीटों पर आरक्षण भी 15 वर्ष के रोटेशन के आधार पर होगा और परिसीमन के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें बदली जा सकेंगी. विपक्ष ने इस बिल पर समर्थन देकर यह संदेश देने के कोशिश की है कि महिलाओं के मुद्दे पर वह सरकार के साथ है. इस बिल को तुरंत लागू किए जाने की मांग विपक्ष द्वारा की जा रही है. लोकसभा में तो सोनिया गांधी ने इस बिल के जल्द से जल्द लागू करने की बात कही है और यह कहा कि अब महिलाएं और इंतजार नहीं कर सकती, क्योंकि सोनिया गांधी को भी यह पता है कि इसे परिसीमन के पहले लागू किए जाने में कई समस्या है. ऐसी मांग करके वह कांग्रेस को महिलाओं का हितैषी साबित करने लगेंगी. पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में भी इस बिल की गूंज सुनाई देगी.
महिलाओं के वोट बैंक साधने के लिए सभी पार्टियां अपना राग अलापेगी कि उसने इस बिल का समर्थन देकर महिलाओं के लिए सशक्त होने के कई द्वार खोले हैं. इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत आरक्षण की अगली प्रक्रिया परिसीमन के बाद ही लागू होगी और परिसीमन जनगणना के बाद ही हो सकती है. 2021 में कोविड महामारी के कारण जनगणना का काम नहीं हो पाया था, ऐसे में इस बिल के सहारे भाजपा 2024 का लोकसभा चुनाव के साथ 2029 के रण को भी साधने के उपाय खोज जा रही है. सरकार द्वारा यह जवाब दिया गया कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जनगणना और फिर उसके बाद परिसीमन का कार्य कर लिया जाएगा.
ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण
इस बिल के पारित होने के बाद सियासी हवा भी तेज हो गई है. सभी राजनीतिक पार्टियों को यह पता है कि वर्तमान में देश में सबसे बड़ी आबादी ओबीसी समुदाय की ही है. ऐसे में इस पर सियासत तो होनी ही है. यह सही भी है कि अगर उसमें ओबीसी समुदाय की महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया जाएगा तो इस बिल के वास्तविक लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सकेगा. महिलाओं को समुचित सम्मान देने के लिए संसदीय कार्यप्रणाली में अत्यंत पिछड़े वर्ग और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के बीच से ही चुनकर उनके लिए सांसदों, विधायकों को सदन में लाना होगा. सदन में हर वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व चुन कर लाना होगा तभी महिलाओं की मूल - भूत सुविधाएं और सामाजिक स्तर पर सुधार संभव हो पाएगा. दलित, पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को भी लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर आरक्षण दिए जाने की आवश्कता है इसे कहीं से दरकिनार नहीं किया जा सकता है. तभी इस महिला आरक्षण बिल की सार्थकता सिद्ध होगी. समाज के हर जाति के साथ हर क्षेत्र की महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी इसमें जरूरी होना चाहिए तभी उनके लिए संसद में नीति- निर्माण और कानून बनाने का कार्य पूरा हो पाएगा जिससे समाज की आधी आबादी बराबरी की हकदार हो पाएगी.
महिलाओं के लिए राजनीतिक स्वाधीनता
महिला आरक्षण विधेयक पास हो जाने और कानून मात्र बन जाने से ही राजनीति में महिलाओं के लिए सशक्तीकरण के द्वार नहीं खुलेंगे बल्कि हमें उनके लिए राजनीतिक स्वाधीनता का भी माहौल पैदा करना होगा. आज भी हमारा समाज पुरुष प्रधान ही है. सामाजिक रूप से भी महिलाओं के लिए सहज रूप से राजनीतिक माहौल पैदा करने होंगे. महिला आरक्षण के बाद सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने घर की महिलाओं को राजनीति में तो लेकर आ जाएंगे लेकिन उसका प्रतिनिधित्व वे स्वयं करेंगे. यह देखा भी जाता है कि सांसद, विधायक अपनी पत्नी, मां, बहन या परिवार के किसी अन्य संबंधियों को आगे करके उस सीट पर चुनाव लड़ा कर जीत तो हासिल कर लेते हैं उसके बाद फिर वे ही समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं.
ऐसी मानसिकता से महिलाएं कभी आगे नहीं आ पाएंगी. उनके सहयोग एवं सहभागी के रूप में वे पुरुष जरूर रहें लेकिन उन्हें राजनीतिक स्वतंत्रता का माहौल पैदा करने के अवसर दें तभी महिलाओं की मूलभूत समस्याओं की आवाज सदन तक पहुंच पाएगी. आज महिलाएं समाज के हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है सदन में भी उनकी समान भागीदारी की आवश्कता है. वर्तमान में भी अगर देखा जाए तो लोकसभा में 82 महिला सांसद हैं और राज्यसभा में 31 महिला सांसद है. राज्यों की विधानसभाओं में भी महिला सदस्यों की संख्या कहीं किसी राज्य में भी 15 फीसदी से अधिक नहीं है. ये आंकड़े यह दर्शाते हैं कि लोकतंत्र में आधी आबादी का समुचित प्रतिनिधित्व होना कितना आवश्यक है.
वर्तमान में सभी पार्टियों ने मिलकर इस अधिनियम पर एक सुर में अपनी सहमति दी है. वह राजनीति में महिलाओं के लिए सार्थक अवसर प्रदान करने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी. ओबीसी महिलाओं के लिए भी अलग से आरक्षण देकर उन्हें मुख्य धारा की राजनीति में जोड़ना होगा तभी समाज का सर्वांगीण विकास संभव हो पाएगा, जो महिलाओं के लिए राजनीति में तदबीर और तकदीर दोनों बदल देगा.
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