जब-जब दहला विश्व हमारा और जब-जब बेमकसद खून बहा, चीन, रूस, जापान सहित ने भारत को एक दूत कहा, भारत को एक दूत कहा...एक और पंक्ति है बढ़े चलो-बढ़े चलो यही निदा-ए वक्त है, ये कायनात, ये जमीं, ये कहकशां का रास्ता, इसी पे गामेजन रहो, अमन की राह पर चलो... नेशनल यूथ फेस्टिवल की तैयारी तो बहुत दिनों से चल रही थी. जब हमें टॉपिक मिलता है तो वो सामान्यतः एक दिन पहले ही मिलता है. लेकिन जो तैयारी होती है चूंकि हमें अपना नॉलेज बेस बढ़ाना होता है. इसके अलावा हमें अपने अल्फाज पर मेहनत करनी होती है, प्रोनन्सिएशन पर काम करना होता है वो तो वर्षों से चली आ रही होती है. हमारी रोज की आदत है कि हम अच्छे शब्द सीखने की कोशिश करते हैं जिसके मायने नहीं मालूम हैं वो जानने की कोशिश करते हैं. सही प्रनंसीएशन चेक करते रहते हैं...तो ये सब मेहनत शुरू से हो रही होती है...तो फिर हमें एक आइडिया हो जाता है कि क्या चीजें चल रही हैं देश दुनिया में ताकि जो भी टॉपिक आपको मिले उस वक्त आपको आसानी हो.


हमारा टॉपिक था पीस बिल्डिंग और रिकॉन्सिलिएशन का मतलब होता है कि हम बातचीत के माध्यम से अमन चाहते हैं और मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं न कि युद्ध से. स्पीच तो हम खुद लिखते हैं लेकिन इसमें हम बहुत लोगों की मदद लेते हैं. मैं मानती हूं कि जब आप खुद लिखते हैं तो वो सिर्फ आपका पर्सपेक्टिव होता है. लेकिन जब आप बहुत लोगों से बात करके लिखते हैं तो आपको बहुत सारे आइडिया मिल जाते हैं. इससे स्पीच एक मल्टी एंगल स्पीच बन जाती है तो हमने इसमें बरखा की लाइन ली जिससे हमने ओपनिंग करी. हमारे दोस्त हैं आशुतोष उन्होंने भी हमारी मदद की. 


उन्होंने बहुत सारे प्वाइंट्स दिए. हमारे एनवाईकेएस के आफिसर हैं उनको भी चेक करवाया और अपने मां-बाप को भी दिखाया. तो जितने भी इंटेलेक्चुअल होते हैं आपके आस-पास आप उनको अपना स्पीच भेजें, उनसे आइडियाज पूछ लें फिर बाकी बैठ कर आप खुद लिखें. चूंकि ये इसलिए जरूरी होता है क्योंकि आपको उस टॉपिक का सबसे ज्यादा नॉलेज होना चाहिए. ताकि आप ये सॉर्ट कर पाएं कि आपको कौन सी इन्फॉर्मेशन लेना है और कौन सी नहीं लेना है. इंटरनेट पर बहुत रिसर्च करनी पड़ती है. आपने कोई किताब पढ़ी होगी जिसमें आपके टॉपिक से रिलेटेड कोई रेफरेंस होगा आपको उसको कोट करना है तो बहुत सारी सूचनाएं मिलती हैं. लेकिन आपको शॉर्ट खुद करना होता है. इसके लिए आपको टॉपिक का डीप नॉलेज होना चाहिए.


मुझे उम्मीद तो थी की मेरी अच्छी पोजिशन रहेगी चूंकि हमने उस लेवल की मेहनत की थी. लेकिन ऐसी कुछ एक्सपेक्टेशन नहीं होती है कि इतना ज्यादा प्यार मिलेगा. हमारा बस यही मोटिव था कि अपने राज्य को उस लेवल तक ले जाना है. वहां पर अपने राज्य का अच्छा प्रतिनिधित्व करना है ताकि छत्तीसगढ़ का नाम रोशन हो. हमने ये तो बिल्कुल नहीं सोचा था कि ये वायरल हो जाएगा लेकिन ये उम्मीद जरूर थी की एक पोजीशन आ सकती है. देखिये, हमारे देश में आप अगर देशभक्ति की बात करें कोई आपत्ति करे तो मैं मानती हूं कि सबके अपने-अपने ओपिनियन होते हैं. वो अपने ओपिनियन दे सकते हैं लेकिन हम ट्रोलर्स को तो नथिंग टू नथिंग रिप्लाई करना चाहिए. 


मुझे ट्रोल होने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जिसे ट्रोल करना है वो करें और मैं बता चूकि हूं की मैं अपने देश से कितना मोहब्बत करती हूं और जो टॉपिक था मैंने उस पर बात की है. देखिये, कॉफिडेंस आता नहीं है उसे डेवलप किया जाता है. बचपन से हम स्टेप परफॉर्मेंस करते आ रहे हैं. जब मैं नर्सरी में थी तब फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन होता रहा है तब से मेरी आदत लगी हुई है कॉन्फिडेंस बोलने की. और हमारे मां-बाप का हमेशा से शिक्षा के तरफ, अच्छी भाषा के तरह झुकाव रहा है. हमें हमारे शिक्षक बहुत अच्छे मिले डीपीएस रायपुर में और फिर जब हम डिग्री गर्ल्स कॉलेज में गए तो वहां पर हमें बहुत मौके मिले परफॉर्म करने की...तो हमारी स्कूलिंग अच्छी हुई, घर में परवरिश अच्छी हुई कि जबान साफ था और सबको ये लगता था कि इसे एक मौका देना चाहिए.  तो हमें बहुत मौके मिले हैं और जितने मौके मिलते गए उससे आत्मविश्वास बढ़ता ही गया.


मेहनत एक सीढ़ी होती है और सफलता तो आपको एक बार में नहीं ही मिलती है और शायद एक बार में मिलने वाली सफलता से ज्यादा बेहतर वो वाली सफलता होती है जो बहुत असफलताओं के बाद मिलती है. इस बार हम जीते हैं तो हम बहुत सारी सीख के बाद जीते हैं. पिछली बार की गलतियां हमें सब याद थीं...तो हम यही कोशिश करते हैं कि हम अपने सीख को हमेशा याद रखें और जो आपको फेलियर से जो सीख मिलती है न वो आपको ऐसे नहीं मिलती हैं.


आज उर्दू एक डाइंगि लैंग्वेज है आज कल और एक यूथ होने के नाते हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम एक मरती हुई भाषा को संरक्षित करें और उसका इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा कर सकें. अगर आपको नहीं आती है तो आप उसे पढ़ें और कहीं न कहीं उसका इस्तेमाल करें ताकि वो खत्म न हो. क्योंकि उर्दू एक ऑफिसियल लैंग्वेज है और वो संविधान की आठवीं अनुसूची में है और हमारा ये फर्ज बनता है कि हम इसका इस्तेमाल करते रहें ताकि आगे आने वाली पीढ़ी भी इसे जान सके. जैसे वो कहते हैं न कि वो इत्र दान सा लहजा मेरे बुज़ुर्गों का, रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की खुशबू, तो यही हमारी लीगेसी है कि हम अपनी जबान को आगे कायम रख पाएं...तो हमने अपनी स्पीच के आखिर में ये कोशिश की कि उसमें दो-तीन लाइन उर्दू की भी डाल दूं ताकि उसे राष्ट्रीय पटल पर एक स्थान मिल सके और उसका ग्लोबल एक्सपोजर हो सके.  


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल माहिरा खान से बीतचीत पर आधारित है.]