कांग्रेस से जुड़ी चंद खबरें....
पहली खबर- पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने दिया इस्तीफा
दूसरी खबर- कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी ने कांग्रेस ज्वाइन किया
तीसरी खबर-गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता लुझिनो फ्लैरियो (luizinho faleiro) ने सोमवार को विधायक पद से और कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. जाते जाते लुझिनो फ्लैरियो ने खुलासा किया कि कैसे 2017 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना पायी. ये खबरें नहीं वे दास्तान हैं जो जनता की नजरों में दर्ज हो रहे हैं. सियासी पटकथा के लेखक, राजनीतिक रंगमंच के कलाकार और सभी किरदार भी वर्तमान और बनते इतिहास के अक्षरों में झलकेंगे.
बीजेपी के चार सीएम बदले और कांग्रेस के एक लेकिन हंगामा किसके घर बरपा?
कांग्रेस की पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र और झारखंड में सरकार है. उसमें भी महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस गठबंधन में शामिल है. अर्थात कांग्रेस की तीन राज्यों में ही अपने नेतृत्व में सरकार है और सभी जगह कांग्रेसी आपस में ही आईपीएल मैच खेल रहे हैं. इतनी दुर्गति के बाद टीम इंडिया की तरह खेलने के बजाय जी-23 और सीएम के 'अघोषित दावेदार' आपस में आईपीएल मैच खेल रहे हैं.
रोज आने वाली खबरें..पंजाब में सीएम बदलने के बाद राजस्थान में हलचल तेज. चंद दिनों पहले सचिन पायलट दिल्ली में प्रियंका गांधी से मिले. कांग्रेस के आलाकमान के दूत का एक पैर राजस्थान में ही रहता है. रोज खबरें आपसी सिर फुटव्वल की आती हैं. समाधान अभी भी जारी है... आलाकमान से 'अपने अपने दूल्हे' की पैरवी करने छत्तीसगढ़ से विधायकों की बारात दिल्ली तक पहुंच गई.
अब जरा एक पंक्ति में बीजेपी को समझिए.. कर्नाटक, उत्तराखंड, असम और गुजरात... सभी जगह सीएम बदल गये. गुजरात में तो पूरा मंत्रिमंडल ही बदल गया. कितना स्मूथ बदलाव हुआ किसी को खबर तक ना हुई. जिनकी कुर्सी गई क्या उनका कोई आलाकमान को लेकर कोई बयान आया? कहीं कोई उठापटक आपने सुना. क्या इसे अनुशासन के दायरे में नहीं देखना चाहिए?
कांग्रेस में असली समस्या क्या है?
- कांग्रेस में जीत के फॉर्मूला पर कन्फ्यूजन- नरम हिन्दुत्व या सेंट्रल टू लेफ्ट की तरफ झुकाव
- युवा बनाम ओल्ड गार्ड की लड़ाई
- क्या कांग्रेस नेताओं को लगने लगा है कि आलाकमान अब जीत के 'पुष्पक विमान' पर सैर नहीं करा सकता?
- सिद्धू के जरिए कांग्रेस आलाकमान का दूरदर्शिता भरा त्वरित समाधान फेल. क्या आलाकमान पार्टी के भीतर अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए सत्ता की कुर्बानी ले रहा है?
खैर.. वजह आप बताएं लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस आलाकमान के लिए सिद्धू प्रथम ग्रासे मक्षिका पात मतलब पहले ही निवाले में मख्खी गिर गई... यानी, जिस सिद्धू के फॉर्मूले को कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनाने की सोच रही थी, वह फॉर्मूला उसका पूरी तरह से विफल हो गया है. उधर यह बात समझनी होगी दो तरह के युवा वर्ग हैं. एक युवा वर्ग वो है जो 200 के खरीद पर 10 परसेंट कैश बैक देने वाले पोस्टर से नजर टिकाए रखता है.
दूसरा युवा वर्ग वह है जो चपरासी, लेखपाल, प्राइमरी स्कूल के टीचर से लेकर सिपाही बनने के लिए लाठियां खाता है. लेकिन ध्यान रहे कन्हैया कुमार की पहचान जेएनयू के नारे से जुड़ा है. क्या इन दोनों युवा वर्ग को इस पहचान से दिक्कत नहीं होगी? सवाल और उसके जवाब भविष्य के गर्भ में है, लेकिन आज की खबर सिद्धू और कन्हैया ही हैं.
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