नवाज शरीफ की वापसी है फुलप्रूफ योजना का परिणाम, वह हैं आर्मी का वो मुहरा जिसे दुनिया के सामने सेना करेगी पेश
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ चार वर्षों तक निर्वासित रहने के बाद अपने वतन लौट आए हैं. आते ही उन्होंने लाहौर में भाषण दिया और अपने इरादे जाहिर कर दिए. पाकिस्तान की खस्ता हालत और डूबती नैया को बचाने के लिए आर्मी को एक चेहरे की जरूरत थी, जिसे वह नवाज के रूप में देख रही है. नवाज ने भी अल्लाह की मर्जी पर सब छोड़ दिया है. वैसे, जेल में बैठे इमरान खान की मुश्किलें जरूर बढ़ गयी हैं, क्योंकि अब सेना के पास दिखाने के लिए एक चेहरा भी है. भारत को वहां हो रहे सारे डेवलपमेंट पर नजदीक से नजर बनाए रखनी होगी.
पाकिस्तान में होगा वही, जो आर्मी चाहे
पाकिस्तान में नवाज शरीफ की वापसी की योजना तो काफी दिनों से चल रही है. जो ये डेवलपमेंट हुआ है, वह तो देखने की बात है. उनको एक पूरी योजना के तहत वापस बुलाया गया है. वे निर्वासन में थे और पाकिस्तानी कोर्ट ने उनको प्रोटेक्शन प्रदान किया है. उनके वापस आने की घोषणा तो उनके भाई ने ही कर दी थी. अब वापसी में हर चीज का हिसाब रखा गया है. इसमें कहीं न कहीं आर्मी का भी संरक्षण उनको है. सेना की सहमति के बिना नवाज शरीफ पाकिस्तान नहीं आते. उनका मुख्य मकसद है कि वह चुनावी तौर पर लाभ उठा सकें. जो व्यक्ति एक प्रजातांत्रिक तरीके से इमरान खान की लोकप्रियता को काउंटर कर सकता है, वह नवाज शरीफ ही हैं. सेना इमरान खान की लोकप्रियता को किसी तरह बराबर करना चाहती है, तो एक ऐसा व्यक्ति जो राजनीति में है, इमरान के कद का है और उनको खुलकर चुनौती दे सकता है, वह नवाज ही हैं. इसलिए, उनको पूरे एजेंडे के तहत, पूरी योजना के साथ लाया गया है. अगर आप लाहौर में उनकी स्पीच को देखें तो जो भी मसले उन्होंने छुए हैं, वे घरेलू राजनीति पर ही हैं. उन्होंने सबसे पहले आर्थिक मसलों पर बात की है. कहा कि पाकिस्तान में आइएमएफ की जो फंडिंग है, वह पूरी खत्म हो गयी है. पाकिस्तान में हाड़तोड़ महंगाई है, जब मैं गया था तो बिजली हमेशा आती थी, अब नहीं आ रही है. तो, मुद्रास्फीति हो, महंगाई हो या बाकी जो भी मसला हो, नवाज शरीफ ने वो सारे मुद्दे छुए जो किसी तरह पाकिस्तान की घरेलू राजनीति को प्रभावित करते हैं.
नवाज शरीफ ने ये भी कहा है कि उनको बदले की इच्छा नहीं है. यानी, अगर वो सत्ता में वापस आए तो भी किसी से बदला नहीं लेंगे. इसलिए, ये पूरी तरह एक इलेक्टोरल पॉलिटिक्स के तहत हो रहा है और नवाज वही बोल रहे हैं, जो उनको बोलना है, जो उनसे बुलवाया जा रहा है. बुलवाने वालों में आर्मी है, इसमें संदेह नहीं होना चाहिए. उनको वापस लाया गया है, ताकि पाकिस्तान की जो राजनीतिक अस्थिरता है, वह पूरी तरह खत्म हो और इसके पीछे पूरी तरह आर्मी का हाथ है.
इमरान खान अभी जेल में रहेंगे
आर्मी वाले किसी न किसी मामले में फंसाकर इमरान खान को जेल के अंदर ही रखेंगे. उनकी पार्टी चुनाव जरूर लड़ेगी और हो सकता है कि जेल के अंदर से ही वह भी लड़ लें. इनकी पार्टी के साथ नवाज शरीफ की पार्टी का सीधा मुकाबला होगा और नवाज शरीफ की पार्टी (मुस्लिम लीग- एन) ही जीतेगी. पाकिस्तान का हिसाब-किताब बड़ा सीधा सा है. जिसको भी सेना का आशीर्वाद मिलता है, वह जीतता है और इस वक्त इमरान खान के ऊपर आर्मी का हाथ नहीं है, ब्लेसिंग नहीं है. सेना इस समय उनसे नाराज चल रही है. वह सत्ता में नहीं आ पाएंगे. पाकिस्तान में तीन अ- अल्लाह , आर्मी और अमेरिका- बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. नवाज शरीफ ने भी स्पीच के अंत में यही कहा है कि वह सत्ता में आते हैं कि नहीं, यह अल्लाह की मर्जी है. आखिर में उन्होंने कहा है कि वह सबकुछ अल्लाह के ऊपर छोड़ते हैं. तो, आर्मी की अभी पूरी बैकिंग है नवाज शरीफ को और अल्लाह का नाम वह जप ही रहे हैं, तो उनके सत्ता में आने के चांस मुफीद हैं. हालांकि, जब 2018 में सेना ने नवाज को हटाया था, तो संबंध बिल्कुल भी ठीक नहीं थे, लेकिन अभी जो समीकरण बदले हैं, उसमें सेना को लग रहा है कि सबसे बढ़िया दांव उसके पास नवाज शरीफ के तौर पर ही है, ताकि दिखावे के लिए एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था तो स्थापित हो जाए.
नवाज हैं सेना के लिए पसंदीदा
जहां तक तालिबान की बात है, तो वह पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में दखल नहीं देता, आतंकी घटनाओं में देता है. वहां जो पख्तून वाली बेल्ट है, वहां आतंकियों का नेटवर्क बढ़ रहा है. वहां आइएसके और तहरीके-तालिबान का जाल फैल रहा है. नवाज शरीफ को तालिबान की बैकिंग है और बेहद अच्छे संबंध हैं. पाकिस्तान के साथ चीन का जो सीपेक (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) है, वह नवाज शरीफ के समय ही तो बना था. पाकिस्तानी सेना की यह भी सोच है कि अगर नवाज शरीफ को आगे बढ़ाएंगे तो वह चीन के साथ भी संबंध ठीक करेंगे और संबंध ठीक करने से मतलब है कि चीन को और पैसा देने के लिए मनाएंगे. इसके अलावा तालिबान के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं, तो वह मोर्चा भी थोड़ा सुधरेगा. इसके अलावा वह एक प्रजातांत्रिक चेहरा भी हैं. सेना नहीं चाह रही है कि वह इस बार सीधे तौर पर सत्ता में नहीं आना चाहती है. वह नवाज शरीफ के तौर पर अपना एक मुहरा बनाना चाहती है. आर्मी यह नहीं चाहती है कि इमरान खान जेल से बाहर आएं. वह राजनीतिक स्थिरता को भी दूर कर एक मैसेज भी देंगे, अप्रत्यक्ष तौर पर वह सत्ता में रहेंगे ही. यह पाकिस्तान की स्ट्रक्चरल प्रॉब्लम है कि वह बिना सेना के फंक्शन नहीं कर सकता है. वहां कोई भी सत्ता में आए, उसको चलना सेना के हिसाब से ही होगा.
जहां तक भारत का सवाल है, तो हमारा स्टैंड बड़ा साफ है. आतंक और बातचीत साथ नहीं हो सकते हैं. नवाज की वापसी को अगर देखें तो उनका पिछला रिकॉर्ड थोड़ा ठीक ही रहा है. वह शुरुआत तो ठीक ही करते हैं. कहते हैं कि भारत के साथ संबंध सुधारना है. पाकिस्तान के साथ हमें हमेशा सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि हम लोग तीन-चार बार पीठ में छुरा खा चुके हैं. चाहे कारगिल देखें, या आगरा-समिट देखें, जब पार्लियामेंट पर हमला हुआ. हम कंपोजिट डायलॉृग करते हैं और हमें मुंबई ब्लास्ट मिला. तो, रणनीतिक तौर पर बहुत सावधान रहने की जरूरत है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)