फिर 27 मार्च 2016 जैसी गलती कर रहे हैं कई भाजपा नेता. उन्हें अतीत के घटनाक्रम से सीख लेनी चाहिए. उस दिन हरियाणा भाजपा  के कई दिग्गजों के कान में कठोर शब्द तत्कालीन मुख्यमंत्री के पड़े थे,वो  शायद जीवन भर भूलेंगे भी नहीं. तो भोले हैं,संत हैं,नरम है… वो अवश्य होंगे, मगर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे किसी भी राजनेता के बारे में यह गलतफहमी पालना किसी भी समय 440 वाट का झटका खाने जैसा सिद्ध हो सकता है. 


बताना चाहता हूं कि मोरनी में रखी गई भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में इसी तरह का झटका खाने वाले कुछ नेताओं के मुंह लटक गए थे. उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि जिस तार को उन्होंने एक नहीं दो नहीं पांच बार एक ही बैठक में बार बार संत हैं,भोले हैं जैसे शब्दों से नवाजते हुए छेड़ा था, उसके बाद जो शब्द तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मुख से निकले थे, उससे मोरनी की ठंडी हवाओं में एक बार गर्मी पैदा हो गई थी. कुछ मुंह लटकाए चुप्पी साधे टकटकी बांधे बरबस मंच से निकलते हुए शब्द बाण सह रहे थे और सहते भी क्यों नहीं, उन्होंने गलती तो की ही थी. 


तब लग रहा था मनोहर लाल की कुर्सी अब गई कल गई 


27 मार्च 2016 को हरियाणा में भाजपा की पूर्ण बहुमत से पहली बार बनी सरकार के उस दिन पांच माह ही हुए थे. और प्रदेश सरकार जाट आंदोलन के दौरान हुई त्रासदी को झेल रही थी. मुख्यमंत्री मनोहर लाल को कमजोर आंका जा रहा था. कइयों के दिल ही दिल में लड्डू फूट रहे थे. इन्हें लग रहा था कि मनोहर लाल के नीचे से मुख्यमंत्री की कुर्सी अब गई कल गई परसों गई. कोई मान रहा था कि शायद अगले दिनों में मनोहर लाल का हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से हटना तय है. इसी दौरान हरियाणा भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक सुनिश्चित हुई. इसके लिए हरियाणा के हिमाचल से सटे पंचकूला जिला के मोरनी हिल्स स्थित एक रिसोर्ट चुना गया. ताकि वादियों में ठंडें वातावरण में सब कुछ कूल कूल हो. मगर वैसा नहीं हुआ. 


तब जो लंगोट कस कर आए थे, वे चुकता हो गए थे


मनोहर विरोधी और कुछ तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला और मंत्रियों से नाराज भाजपायी लंगोट कस के आए थे. यहां तक तो ठीक था मगर  जाट आंदोलन की वजह से तत्कालीन मनोहर लाल भी उतने सहज नहीं थे, जिसका फायदा उन्हें कुर्सी से हटाने के इच्छुकों ने राजनीतिक शब्दावली का उपयोग करते हुए अपने संबोधन में कहा कि हमारे मनोहर जी संत हैं. वे भोले हैं. मनोहर लाल भी तय कर चुके थे कि आखिरी में सबको चुकता करना है और सबकी सुनते रहे. इसके बाद जब उनके बोलने की बारी आई तो मनोहर लाल बोले जितना समझ रहे हो उतना सरल भी नहीं हूं. जहां जरूरत पड़ती है,वहां कठोर फैसले भी लेना जानता हूं. 


मनोहर बोले थे मैं संत वंत नहीं हूं…


मैं संत वंत नहीं हूं, मुख्यमंत्री हूं और अपने कर्तव्य का पालन करना जानता हूं. वह यहीं चुप नहीं हुए और बोले मैं काफी देर से सुन रहा था हमारे वरिष्ठगण मुझे संत सन्यासी बनाते पर तुले थे. उनका इशारा साफ था कि वह संत बन कर या संन्यासी बन कर जाने वाले नहीं है और हुआ भी वही उन्होंने लगभग पौने दस साल बतौर मुख्यमंत्री हरियाणा में पारी खेली और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं. 


जो मनोहर को संत बता रहे थे वे संन्यास वाली मुद्रा में है


रोचक पहलू यह है कि भाजपा के जो दिग्गज तब मनोहर लाल को संत बता रहे थे, वे लगभग संन्यास वाली मुद्रा में हैं. ताजा परिप्रेक्ष्य में वर्तमान मुख्यमंत्री नायाब सिंह सैनी को लेकर इसी तरह की धारणा, भीतर और बाहर से सामने आ रही है. अब इन्हें मोरनी हिल्स जैसा झटका कब लगेगा यह तो वक्त बताएगा, मगर यह तय है और इससे इंकार नहीं किया जा सकेगा. 


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