दिल्ली की सीएम की भाषा और बोली पर भी उठाएं सवाल, ठीक नहीं सिर्फ रणवीर अलाहबादिया पर वबाल

रेखा गुप्ता का नाम दिल्ली की सीएम के तौर पर फाइनल हुआ और उनके पुराने भाषण और ट्वीट्स वायरल होने लगे. शपथ लेने तक तो इस तरह के कई ट्वीट्स सामने आ गए थे, जिनकी भाषा बेहद आपत्तिजनक थी. इसमें से कुछ में दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल पर व्यक्तिगत प्रहार से लेकर उनके परिवार तक पर भाषायी हमला किया गया था और इसमें कोई सीमा नहीं रखी गयी है. हालांकि, दिल्ली की वर्तमान सीएम रेखा गुप्ता कोई प्रथम या अंतिम नेता नहीं हैं, जिनकी ऐसी भाषा है, जो बेहद आक्रामक और कई बार तो 'बिलो द बेल्ट' भी होती है, लेकिन जिनको बीजेपी ने हमेशा आगे किया है. वैसे ही लोगों को बढ़ाने का काम किया है.
भाजपा के साथ ही है कोई दिक्कत
इस कड़ी में रेखा गुप्ता प्रथम और आखिरी नहीं हैं. हुबरिस सिंड्रोम एक इंटरनेशनल फिनोमिना है, जिसपर विदेश में लिखा हुआ है. कई राष्ट्रीय अध्यक्षों से लेकर राष्ट्राध्यक्ष तक, 0 जिसमें डोनाल्ड ट्रम्प भी हैं और भी कई वैश्विक नेता शामिल हैं, इस सिंड्रोम से ग्रस्त हैं. यह हुबरिस सिंड्रोम उन व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है जो उच्च पदों पर होते हैं या बहुत पैसे वाले होते है, कॉर्पोरेट में या राजनीति में बहुत उच्च पदों पर होते हैं उनमें ये सिंड्रोम पाया जाता है. हुबरिस सिंड्रोम वाले व्यक्ति मानते है जो उन्होंने कहा और सोचा, जो निर्णय लिया, जो किया , वही श्रेष्ठ है और उसके दाएं और बाएं कुछ नहीं है. हिन्दुस्तान में पिछले कुछेक दशक में जो आधुनिक राजनीति हो गयी है, खासकर 1990 के बाद की उसमें पहली बार इस सिंड्रोम का प्रदर्शन और एग्जीबिशन देखने को मिल रहा है.
ऐसे नेताओं को शॉक ट्रीटमेंट देने में मज़ा आता है. चाहे वह राजस्थान के हों या मध्यप्रदेश के सीएम हो और अब दिल्ली की भी हों. रेखा गुप्ता अकेली नहीं बल्कि कपिल मिश्रा, प्रवेश सिंह वर्मा वगैरह भी इनमें शामिल हैं. हम सबको याद है कि किस तरह रमेश बिधूड़ी ने, संसद के अंदर आपत्तिजनक बयानबाजी की थी, समुदाय विशेष को बेहद आक्रामक शब्दों से संबोधित किया था.
ये किस तरह की पॉलिटिक्स...
दिक्कत ये है कि अब अब पॉलिटिक्स में वैसे ही लोग आगे आएंगे और इंस्पायर करेंगे किसी और को भी, जो गालीबाज हों, जो शॉक ट्रीटमेंट दे सकें, जो अधिक से अधिक विवाद पैदा कर सकें, क्योंकि इस क्षणजीवी और ट्विटरजीवी समय में राजनीतिक दल केवल क्लिकबेट राजनीति कर रहे हैं. वे सोचते हैं कि वे भी जितना below the belt जायेंगे और प्रहार करेंगे या पर्सनल होकर किसी को गाली देंगे, तो उनकी जनता, उनके वोटर, उनके कैडर उसी तरह उनके साथ जुड़ सकते हैं. अगर वे किसी की मां को बहन को टारगेट करके गली दे सकते हो तो आप आगे बढ़ेंगे. इस वक्त की राजनीति में इसको क्वॉलिटी बना दिया गया है. पहला कारण यह है कि इससे ट्रैक्शन मिलता है, क्लिक्स और व्यूज मिलते हैं और दूसरा कारण यह है कि वे अपने से बड़े नेता और सुप्रीमो यानी आलाकमान की नजर में आते हैं.
रणवीर अल्लाहबादिया को अवॉर्ड दिया गया
रणवीर अल्लाहबादिया को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद क्रिएटर अवॉर्ड दिया हुआ है. तो इस तरह की चीजें करने और कहने वाले लोगों को अगर आप आगे बढ़ाएंगे तो वे एक दिन भस्मासुर साबित होंगे.आज बीजेपी का वक्त है तो वह यह सब कर रही है, कल कांग्रेस का होगा तो वो यह सब करेंगे. ये तो नॉर्म्स सेट हो रहा जिसके चक्कर में जो भारतीय संस्कृति को लेके आम जनता रोती है वह रोना मेरे हिसाब से बंद कर देना चाहिए. क्यूंकि हमारी भारतीय संस्कृति और परंपरा पर और सनातनी संस्कृति पर यह सब नेता और सोशल मीडिया भरी पड़ रहे हैं. अभी भी देखा जा सकता है कि एकतरफा विरोध नहीं हुआ रणवीर या समय रैना का. चूंकि समय के पिता की मीडिया तक पहुंच है, तो वो एक दूसरा नैरेटिव थोप रहे हैं, दूसरों का नाम उछाला जा रहा है कि उसने भी किया. यह इस देश की संस्कृति नहीं है. एक गलत को दिखाकर आप अपनी गलती नहीं छिपा सकते. हद तो ये है कि लोग कह रहे हैं कि वह कंटेंट तो पेड था, तो लोगों की गलती है. एक बार को जरा ये सोचा जाए कि कल को अगर पेड कंटेंट के नाम पर ब्लू फिल्में दिखायी जाएंगी तो उसको भी नॉर्मलाइज किया जाएगा क्या?
नाम हमेशा भारतीय संस्कृति का, लेकिन काम...
हर पार्टी के सर्वोच्च नेताओं को भाषा का ध्यान रखना चाहिए. क्यूंकि आज कल जो हमारी भाषा है और सांस्कृतिक समझ है वो बिल्कुल खत्म हो चुकी है. प्रधान मंत्री हिन्दू सनातन और संस्कृति की बात करते हैं. लेकिन मुझे दुख है यह कहते हुए कि वह उसकी ताकत को नहीं पहचानते हैं. भाजपा अक्सर ही सनातन की बात करती है, मर्यादा और राम की बात करती है, लेकिन उसके नेताओं की भाषा बताती है कि वे इससे दूर जा रहे हैं. भाजपा भारतीय सनातन शक्ति को सिर्फ धर्म तक, कर्मकांड तक सीमित करके जो साजिश कर रहे हैं, यह अभी तो समस्या बन ही रही है, आने वाले समय में और अधिक विकराल समस्या बनेगा. अब दिक्कत की बात है कि हम इस वक्त रेखा गुप्ता की बात कर रहे हैं, लेकिन इन पंक्तियों के लेखक को भी सीधा कुछ बोलने से बचना पड़ रहा है क्योंकि वह मातृशक्ति का प्रतिनित्व करती हैं.
भारतीय संस्कृति में मातृशक्ति सर्वोच्च शक्ति है, लेकिन उसी भारतीय संस्कृति ने हमें यह भी सिखाया है कि पूतना का वध हमारे भगवान श्रीकृष्ण ने किया था, ताड़का का वध श्रीराम ने और लंकिनी को हनुमान जी ने परलोक पठाया था. आज भाजपा भले ही रेखा गुप्ता को आगे खड़ा करके हमले कर ले, याद रखना चाहिए कि वह वुमन पावर को रिप्रजेंट कर रहीं हैं. तो उनको अपने ट्वीट्स के लिए माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि आने वाली पीढी उस ट्वीट से ही उनको याद करेगी. बेशक वह दिल्ली की सीएम के तौर पर अच्छा काम कर के जाएं, मगर उन ट्वीट्स को भी याद रखा जाएगा.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]


ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस

