हिट एंड रन मामले में नए कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने फिलहाल कहा है कि इसे लागू नहीं किया जाएगा, और आगे इस पर सलाह ली जाएगी, लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि भारतीय न्याय संहिता में जो कानून सरकार लेकर आयी थी, उसमें सेक्शन 106 (2) में एक प्रोविजन किया गया था कि हिट एंड रन केस में ड्राइवर को 10 साल की सजा और 7 लाख रुपये का जुर्माना होगा. 


इसने पूरी ट्रांसपोर्ट बिरादरी में एक भय, चिंता और डर पैदा कर दिया था. उसका जगह-जगह विरोध हुआ. ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए 27 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखकर सूचित किया था कि ये एक गंभीर विषय है. ड्राइवर की चिंता बढ़ चुकी है. पहले से ही ड्राइवरों की 27 फीसदी कमी है. ऐसे में जल्दबाजी में और बिना किसी सलाह-मशविरा के ये कानून लेकर आए हैं, जिसे लागू करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है.


जल्दबाजी में कानून लेकर आयी सरकार


समय पर सरकार ने इसकी गंभीरता को नहीं समझा और समय रहते इस पर संज्ञान नहीं लिया. अंत में वही हुआ जिसकी हमें चिंता और डर था. साल के पहले ही दिन एक तारीख को अनायास (स्पॉन्टेनियस) रिएक्शन सड़कों पर देखने को मिला. सड़कों पर जगह-जगह धरने हुए, प्रदर्शन हुए. गाड़ियों का रास्ता रोको हुआ. ड्राइवर ने गाड़ियों को चलाने से मना कर दिया. विरोध में ड्राइवरों ने अपने लाइसेंस तक जला दिए, परमिट जला दिए और झोला उठाकर अपने गांव की तरफ जाने लगे. एक तारीख को भी हमने सरकार से संपर्क करने के प्रयास किए. हमने सरकार से ये भी अपील की कि ये जो गंभीर स्थिति बनती जा रही है, उसे मिलजुलकर काबू करें, हम सकारात्मक बातचीत में विश्वास रखते हैं. दो जनवरी यानी कि मंगलवार की शाम साढ़े सात बजे केन्द्रीय गृह मंत्रालय में गृह सचिव अजय भल्ला की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक हुई.  



इस बैठक के दौरान काफी विस्तार से चर्चा हुई और ये कहा गया कि जो भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 106 (2) में प्रावधान है कि 10 साल की सजा और 7 लाख रुपये का जुर्माना, ये अभी लागू नहीं हुआ है, और इस नियम को लागू करने से पहले हम एआईएमटीसी से संपर्क करेंगे. यानी, स्पष्ट रुप से ये मान लिया है कि जो नियम है, वो गलत बना है और उसको लागू करना मुश्किल होगा. 


इससे एक अच्छा संदेश ड्राइवरों और ट्रांसपोर्ट बिरादरी में गया है. सरकार ने भी हमसे और ट्रांसपोर्ट बिरादरी से ये अपील की है कि वे अपने काम पर लौटें. परिस्थितियों को देखते हुए हमने भी अपने जो चालक हैं, उनसे अपील की है कि जो आपका डर था, भय और चिंता थी, यही चिंता हमारी भी थी. क्योंकि मालिक है तो चालक है और चालक है तो मालिक है.



ये कानून लागू करना मुश्किल होगा


दरअसल, ड्राइवरों को डर इसलिए था क्योंकि ये जो काले कानून बना है, जो नियम 106 (2) में था, जिसमे ये था कि हिट एंड रन के केस में ड्राइवरों को 10 साल की सजा और 7 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है, उसमें कई तरह की दिक्कतें हैं. हमारे देश में कोई भी एक्सीडेंट प्रोटोकॉल नहीं है. ऐसे में गलती को कौन तय करेगा. अब ऐसे में जहां पर एफआईआर कराने जाएंगे, पहले ही 25-से 50 हजार रुपये एफआईआर दर्ज कराने के लिए देना पड़ता है. जहां हम थाने जाएंगे तो जो वहां पर इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर होगा, वो ये बताएगा कि मैं आईओ हूं. वो बताएगा कि आपको 10 साल होगी. ऐसे में रिश्वत काफी बढ़ जाएगी.


फिर 7 साल के ऊपर अगर किसी कानून में सजा है तो वो गैर-जमानती बन जाती है. ऐसे में ये सिर्फ चालकों के लिए नहीं बल्कि हर आम व्यक्ति के लिए ये कानून है. पहले तो उस आरोपी ड्राइवर को जेल भेजा जाएगा. फिर वो किसी वकील को हायर करेगा और कोर्ट की प्रक्रिया करेगा. फिर उसकी बेल होती है या नहीं होती है, 90 दिनों में चार्जशीट आएगी और उसके बाद तय होगा. 10  साल केस चलेगा तो तलवार उसके सिर पर लटकती रहेगी.


नए कानून से खौफ में ड्राइवर


ड्राइवर ये सोचेगा कि अगर 10 साल की सजा ही काटनी है और 7 लाख रुपये का जुर्माना ही देना है तो फिर हमें गाड़ी क्यों चलानी है. ट्रांसपोर्टर भी सोचेगा कि फिर हमें गाड़ियां क्यों चलवानी है. एक तरफ तो हम ये बोलते हैं कि विकसित भारत की तरफ जा रहे हैं. गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है तो वहीं दूसरी तरफ ड्राइवर्स  की संख्या कम हो रही है. तो फिर इस तरह से देश कैसे चलेगा.  देश कैसे आगे बढ़ेगा.



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