इजरायल की नई सरकार भारत के साथ निभाएगी पुरानी दोस्ती ?
नई दिल्ली: दुनिया में चौथी सबसे बड़ी व ताक़तवर सेना रखने वाले और भारत को हथियार व गोला बारुद उपलब्ध कराने वाले इजरायल में सत्ता परिवर्तन के बाद नई सरकार बनी है. आठ पार्टियों वाली नई सरकार के आने के बाद सवाल उठा है कि अब इजरायल के भारत के साथ वैसे ही मधुर रिश्ते बने रहेंगे या इसमें कोई बदलाव आयेगा? वहां 12 साल तक सत्ता पर काबिज़ रहे बेंजामिन नेतन्याहू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच हुई मुलाकातों ने दोनों देशों के सामरिक व रणनीतिक संबंधों को नये मुक़ाम तक पहुंचाया ही है, साथ ही दोनों नेताओं के बीच बनी केमिस्ट्री ने व्यक्तिगत रिश्तों को भी मजबूत किया. लेकिन भारत की तरह ही आतंकवाद व कट्टरवाद का सामना करने वाले इस यहूदी मुल्क की कमान अब 49 बरस के नेफ्टाली बेनेट के हाथों में आ गई है.वह आठ दलों वाली 'खिचड़ी सरकार' के प्रधानमंत्री बने हैं.
एक समय तक नेतन्याहू के वफादार रहे नेफ्टाली ने उनका साथ छोड़कर अपनी अलग यामिनी पार्टी बना ली. 120 सांसदों वाली इजरायली संसद में उनके महज छह सांसद हैं लेकिन गठबंधन ने उन्हें अपना नेता चुना, ऐसे में अब वे पीएम बन गए. उन्हें ऐसा दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नेता माना जाता है, जो सिर्फ यहूदी राष्ट्र की वकालत करते हैं और कट्टरवादियों को फांसी देने में यकीन रखते हैं.
लिहाजा, ये सवाल उठना वाजिब है कि क्या अब भारत-इजरायल के रिश्तों पर कोई असर पड़ेगा. हालांकि दोनों देशों के संबंधों पर नजर रखने वाले जानकार मानते हैं कि इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ने वाला है क्योंकि बीते कुछ सालों में दोस्ती पहले से और ज्यादा मजबूत हुई है. चूंकि दोनों देश आतंकवाद से पीड़ित हैं और इस मोर्चे पर न सिर्फ एक साथ संघर्ष कर रहे हैं,बल्कि इससे निपटने में रणनीतिक साझेदार भी हैं. रक्षा व सामरिक संबंध भी इतने मजबूत हैं कि भारत को हथियार व आयुध सप्लाई करने में भी इजरायल की बड़ी हिस्सेदारी बनी हुई है. इसके अलावा जल, कृषि व इनोवेशन के क्षेत्र में भी व्यापक सहयोग है और कोविड महामारी से निपटने में भी दोनों देशों के बीच पारस्परिक सहयोग जारी है. ऐसा माना जा रहा है कि नेतन्याहू की विदेश नीति को ही बेनेट भी आगे बढ़ाएंगे, इसलिये लगता नहीं कि वे भारत के साथ अपनी रणनीति में कोई बड़ा बदलाव करेंगे.
लेकिन भारत के लिए इजरायल-फिलिस्तीन का विवाद एक सिरदर्दी बना रहेगा क्योंकि बेनेट वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियां बनाने के पक्षधर रहे हैं और उन्होंने फलस्तीन को अलग राष्ट्र मानने से इनकार किया है.फिलहाल तो दोनों देशों के बीच लड़ाई थमी हुई है लेकिन कोई भरोसा नहीं कि ये कब विस्फोटक रुप ले ले. नए प्रधानमंत्री बेनेट हाईटेक होने के साथ ही देश के प्रमुख धन कुबेर भी हैं.उनके साथ सरकार में वामपंथी दलों, मध्यमार्गी दल और अरब पार्टी,रा'म (Ra'am) भी साझीदार है.
नेफ्टाली को नेतन्याहू से भी अधिक अति-राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी माना जाता है. नेफ्टाली इजरायल की यहूदी राष्ट्र के तौर पर वक़ालत करते हैं. इसके साथ ही वे वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और सीरियाई गोलान हाइट्स को भी यहूदी इतिहास का हिस्सा बताते हैं. इन इलाक़ों पर 1967 के मध्य-पूर्व युद्ध के बाद से इजरायल का नियंत्रण है. नेफ़्टाली वेस्ट बैंक में यहूदियों को बसाने का समर्थन करते हैं और इसे लेकर वो काफ़ी आक्रामक भी रहे हैं.
हालांकि वे गाज़ा पर कोई दावा नहीं करते हैं. साल 2005 में इजरायल ने यहां से सैनिकों को हटा लिया था. वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम की 140 बस्तियों में 6 लाख से ज़्यादा यहूदी रहते हैं. इन बस्तियों को क़रीब-क़रीब पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय अवैध मानता है, जबकि इजरायल इसे नकारता है.फ़लस्तीनियों और इसराइल के बीच बस्तियों का निर्धारण सबसे विवादित मुद्दा है. फ़लस्तीनियों इन बस्तियों से यहूदियों को हटाने की मांग कर रहे हैं और वे वेस्ट बैंक, ग़ज़ा के साथ एक स्वतंत्र मुल्क चाहते हैं, जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम हो.