उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए नयी नियमावली लाई जा रही है. उस पर आपत्ति जताने के लिए 8 अगस्त तक का समय दिया गया था और अब उस पर चर्चा के बाद मतदान होना है. इस नयी नियमावली में कुछ नियम बड़े अजीब हैं, जो ध्यान खींचते हैं. जैसे, विधायकों के तेज हंसने पर भी रोक है, अखबारों की कटिंग या पोस्टर दिखाने पर भी. विपक्ष की तरफ से हालांकि इस पर अभी तक जोरदार विरोध दर्ज नहीं किया गया है. यूपी में यह नियमावली लागू होते ही ई-विधान लागू करने वाला यूपी देश का पहला राज्य होगा.
नयी नियमावली लोकतंत्र के खिलाफ
बीते बुधवार यानी 9 अगस्त को यूपी विधानसभा में नयी नियमावली पेश हुई और अब इस पर चर्चा हो रही है. इससे पहले 8 अगस्त तक का समय दिया गया था कि इस पर किसी को आपत्ति हो, तो वह दर्ज करा सकता है या सकती है. इसमें जो मुख्य बात है कि सरकार का विरोध करने के लिए विपक्षी दल बैनर, पोस्टर या प्लकार्ड नहीं ले जा सकते हैं. वे अध्यक्ष के आसन के पास नहीं जाएंगे. कोई कागज फाड़ कर भी विरोध नहीं जताया जा सकता है. मोबाइल की भी आज्ञा नहीं है. पिछली बार एक विधायक ने मोबाइल से क्लिप बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया था. अस्त्र-शस्त्र तो अलाउड नहीं हैं हीं. साथ ही, जो दर्शक दीर्घा है या जिधर अधिकारी वगैरह बैठते हैं, या पत्रकार दीर्घा है, उधर इशारा भी नहीं कर सकते हैं. हालांकि, कुछ नियम जरूर हैं जो समझ में नहीं आनेवाले हैं. जैसे, विधायक जोर से हंस नहीं सकते हैं. अब, इतना अधिक नियंत्रण भला कैसे संभव होगा. आखिर, एक्सप्रेशन दिखाने के ये भी तो तरीके हैं, फिर आखिर सहज संवाद भला कैसे मुमकिन होगा? जहां तक सवाल हंसी के मापने का है तो वो तो स्पीकर का विवेक है कि वह किसको जोर की हंसी मानते हैं या किसको हल्की हंसी मानते हैं? इसके अलावा तो कोई रास्ता है नहीं.
ई-विधान से खत्म होगी जीवंतता
इसके अलावा ई-विधान का भी प्रावधान है. यानी, विधायक भले सदन में नहीं हों, लेकिन वह अपनी कार से, घर से या दफ्तर से भी विधानसभा की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं. विधानसभा के भीतर इससे सारे लोगों की उपस्थिति पर भी असर पड़ेगा. यह भी खतरा है कि विधायकों की उपस्थिति कम है. एक तो वे अपनी चर्चाएं करते हैं, उस पर रिएक्शन देते हैं. अब अगर हरेक चीज वर्चुअल होने लगेगी तो फिर दिक्कत है. यहां तक तो ठीक है कि विधानसभा और विधायिका को पेपरलेस किया जा रहा है, कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है, लेकिन विधायकों की सशरीर उपस्थिति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. वह इससे निश्चित तौर पर बाधित होगी. अब हम देखेंगे कि ह्विप जारी होने पर ही कोरम पूरा होगा. अब अगर प्रश्नकाल या किसी सत्र का कोरम नहीं पूरा होगा, तो पता चला कि उसे तो ऑनलाइन उपस्थिति के जरिए पूरा कर लिया गया, लेकिन इससे बहस की जो गरिमा है, बहस का जो एक मूड है, उस पर जरूर असर पड़ेगा.
अराजकता न हो, पर विरोध तो हो
हमने देखा है कि सदन में कई बार ऐसा होता है, खासकर आम तौर से जब सत्र शुरू होता है, तो कुछ पोस्टर जरूर लहराए जाते थे. आजकल भले ही फ्लेक्स ने कागजों की जगह ले ली है. कई बार बहस के दौरान पत्र-पत्रिकाओं की कटिंग भी दिखाई जाती थी, किसी खबर का ध्यानाकर्षण करने के लिए. नयी नियमावली में ये सब हटा दिया गया है. वेल के पास जाकर विरोध करना भी एक अधिकार है. हालांकि, यूपी विधानसभा में कई ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिन्हें अच्छा नहीं माना जा सकता है, सदन में मारपीट भी हुई है, स्पीकर पर कागज के गोले भी फेंके गए हैं. वे चीजें गलत थीं, उन्हें जायज नहीं ठहरा सकते हैं, लेकिन अगर कोई वेल में बैठकर नारेबाजी होती थी, तो उसे होने देते थे. अब यह बताइए कि विरोध के तरीके क्या होंगे, अब. धरना औऱ प्रदर्शन को तो लोकतंत्र में विरोध का हथियार ही माना गया है. यह ठीक है कि सदन में अराजकता नहीं होनी चाहिए, लेकिन आप अखबार की कटिंग नहीं दिखा सकते, प्लकार्ड नहीं दिखा सकते, तो ये तो रास्ते बंद किए जा रहे हैं. विरोध करने के नए आयाम फिर खोजने होंगे. इससे जीवंतता खत्म होती है.
विपक्ष नहीं है मुखर
विपक्ष का रवैया अभी इस पर बहुत स्पष्ट नहीं है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन चीजों का विरोध होना चाहिए या अगर विपक्ष को ऐसा लगता है कि उसकी आवाज दबाई जा रही है, तो विपक्ष को मुखर होना चाहिए, हालांकि हमें ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला है. बिल को 9 अगस्त को पेश किया गया है और सदन बहुत दिनों तक चलेगा नहीं, ऐसी मेरी जानकारी है. सरकार की कोशिश होगी कि इसको ध्वनिमत से पारित करवा लें, क्योंकि बहुमत है सरकार के पास. तो, वह तो इसी सत्र में पारित करवाना चाहेगी. यह तय है कि योगी आदित्यनाथ सख्त मिजाज मुख्यमंत्री हैं, हालांकि भाजपा शासित प्रदेशों में कुछ और मुख्यमंत्री भी उनकी ही राह पर हैं. जैसे, हेमंत विश्व सरमा को ले सकते हैं या अभी जो बहुचर्चित हैं, मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह. ये लोग अपनी जिद के आधार पर सियासत को आगे बढ़ाते हैं. तो, इसका नजीर बनना तय है औऱ धीरे-धीरे कुछ और राज्य भी इसको आगे बढ़ाएंगे. सरकार जिस तरह से काम करती है, आश्चर्य नहीं होगा अगर जल्दी ही हम संसद में भी ऐसी नियमावली को आते देखें. विरोध के तरीकों को कैसे न्यूनतम करें, कैसे उसकी धार कुंद करें, विरोध को कम से कम स्पेस कैसे मिले, यही तो इसके पीछे का मूल विचार है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]