(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
BLOG: ट्रैफिक कानून संशोधित- क्या अब भारतीय सड़कों पर सचमुच रामराज उतरेगा?
लोगों को समझना चाहिए कि ट्रैफिक नियमों का अनुपालन इसलिए भी जरूरी है कि हमारे देश में आतंकवाद के कारण कम और सड़क हादसों में उससे कई गुना लोग मारे जाते हैं. तथ्य है कि सड़क दुर्घटनाओं में हर साल करीब डेढ़ लाख लोगों की जान चली जाती है और साढ़े चार लाख से ज्यादा लोग घायल होते हैं.
बात हल्के-फुल्के अंदाज में शुरू की जाए तो ऐसा लगता है कि जैसे देश में मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2019 को तेलुगु सुपरस्टार महेश बाबू की फिल्म 'भारत अने नेनु' का वह सीन देख कर लागू किया गया है, जिसमें नायक मुख्यमंत्री की भूमिका में है और अधिकारियों को ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कई गुना ज्यादा जुर्माना ठोकने का आदेश दे रहा है. यह बात और है कि नए निमय लागू होने के पहले दिन से ही देश भर में वाहन चालक ट्रैफिक पुलिस के सामने ‘तू डाल-डाल मैं पात-पात’ वाली तरकीबें आजमाने को मजबूर हैं और उनके फिल्मों से भी मजेदार कॉमेडी सीन सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहे हैं. सड़क परिवहन को लेकर भारतीय समाज में इतनी कहावतें, लोकोक्तियां और मिथक प्रचलित हैं कि लगता है जैसे ट्रैफिक के नियम तोड़ना कोई शानदार कारनामा हो. रांग साइड में वाहन घुसेड़ना, छोटे-से वाहन में पूरा मोहल्ला लेकर चलना, नो पार्किंग जोन में वाहन पार्क करना, स्कूलों-अस्पतालों के दरवाजे पर जोर-जोर से हॉर्न बजाना, सिग्नल तोड़ कर आगे बढ़ जाना, जेब्रा क्रॉसिंग पर वाहन बढ़ा लेना गर्व की बात समझी जाती है. हमारे विंध्य क्षेत्र (एमपी) में तो बच्चे-बच्चे की जबान पर चढ़ा हुआ है- ‘पकड़ के हैंडल, तोड़ के सिग्नल, मार के पैडल, जांय दे कक्का सांय-सांय!’ पंजाब के किसी भी ड्रायवर से पूछिए, वह बताएगा कि सड़क पर ‘मत्स्य न्याय’ होता है और ‘जंगल का कानून’ चलता है!
जिस वाहन में जितने ज्यादा पहिए होते हैं, उसका उतना बड़ा रुतबा होता है. बारह चका वाला मालवाहक ट्रक उखड़ी हुई सड़क पर भी खुद को व्हेल मछली और दोपहिया वाहन को झींगा मछली मान कर चलता है. ट्रैफिक वाले कितने भी बड़े बोर्ड लगाएं कि ‘दुर्घटना से देर भली’, लेकिन वाहनवीरों के बीच यह मान्यता पुख्ता हो चुकी है कि सड़क दुर्घटनाएं अपनी लापरवाही से नहीं बल्कि दूसरों की असावधानियों के चलते ही होती हैं. यातायात के नियम तोड़ने वालों के पास ट्रैफिक वालों को गच्चा देकर पतली गली से निकलने, नाकाबंदी करने वालों पर पद या पैसों का रौब झाड़ने, किसी रिश्तेदार मंत्री या अधिकारी का नाम उछाल कर साफ बच निकलने की ऐसी-ऐसी वीरगाथाएं होती हैं कि उनके सामने पृथ्वीराज रासो लिखने वाले महाकवि चंदबरदाई भी पानी भरें! भले ही उनके पास हेलमेट, ड्रायविंग लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन, टैक्स, बीमा और वाहन के एक भी कागजात न पाए जाते हों!
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा संशोधित विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद 1 सितंबर, 2019 से प्रभावी नियमों के अंतर्गत जुर्माना राशि 30 गुना तक बढ़ा दी गई है और चालक अथवा वाहन स्वामी को सलाखों के पीछे भेजने के साथ-साथ उनके लाइसेंस निरस्त करने के भी प्रावधान हैं. और तो और, यदि किसी नाबालिग से वाहन चलाते समय कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसके माता-पिता या अभिभावक को 3 साल तक की जेल काटनी पड़ेगी. सभी नियम और जुर्माना विस्तार से देखने के लिए कृपया यह लिंक क्लिक करें - https://sarkaricourse.com/motor-vehicle-act-2019/
लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि 'पइसा कै टोरबा, टका मुड़उनी’ (एक पैसे का बच्चा और उसके मुंडन का खर्च एक रुपया) वाली कहावत सिद्ध होने लगे. कहीं ऐसा न हो कि कर्ज की ईएमआई चुका कर वाहन खरीदने वालों को जुर्माना भरने के लिए नया कर्ज लेना पड़ जाए! हालांकि लिंक देखने पर यही आभास होता है कि पुराने अधिनियम को वाहन चालकों की भलाई के लिए ही संशोधित किया गया है. संशोधित एक्ट के प्रावधानों में यह व्यवस्था है कि हर दुर्घटना की साइंटिफिक जांच होगी और कारणों की तह तक जाकर दुर्घटना की हर वजह दूर की जाएगी, ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने के पहले ऑनलाइन टेस्ट होगा, जिससे रिश्वत देकर लाइसेंस हथियाने वाले अनाड़ियों की छंटनी हो जाएगी, अगर सड़क की डिजाइनिंग में खराबी है या सड़क के टूटा-फूटा होने की वजह से कोई एक्सीडेंट हुआ है तो उसके लिए संबंधित विभाग के इंजीनियर और ठेकेदार भी जिम्मेदार माने और धरे जाएंगे, किसी घायल को अस्पताल पहुंचाने वाले मददगार व्यक्ति को कानून के पचड़ों से घायल नहीं होने दिया जाएगा.
इसके उलट चर्चा यह गर्म है कि नोटबंदी और जीएसटी आदि के चलते अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने नया वसूली अभियान चलाया है. इस पर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि पैसे से ज्यादा कीमत लोगों की जान की है और जुर्माने में भारी वृद्धि का फैसला कानून का पालन अनिवार्य बनाने के लिए किया गया है, सरकारी खजाना भरने के मकसद से नहीं. लेकिन भारी जुर्माने की मार झेल रहे लोग बेहद आक्रोश में हैं. एक शख्स ने ट्विटर पर लिख मारा कि नए एक्ट में सिर्फ फांसी की सजा का प्रावधान ही नहीं है, बाकी सब सजाएं हैं. एक साहब ने कुछ इस तरह से खुन्नस निकाली- ‘जिस तरह सरकार बिना हेलमेट के या ज्यादा सवारी बिठाने पर जुर्माना ठोक रही है, क्या हम भी उसी तरह टूटी हुई सड़क, बंद पड़े सिग्नल, किसी चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस वाला न होने या ट्रैफिक जाम की स्थिति में सरकार पर जुर्माना ठोक सकते हैं?’ हद तो यह है कि अगर बीच सड़क पर गाय या भैंस विराजमान हैं तो इसका जिम्मेदार भी ट्रैफिक पुलिस को ही माना जा रहा है!
लोगों को समझना चाहिए कि ट्रैफिक नियमों का अनुपालन इसलिए भी जरूरी है कि हमारे देश में आतंकवाद के कारण कम और सड़क हादसों में उससे कई गुना लोग मारे जाते हैं. तथ्य है कि सड़क दुर्घटनाओं में हर साल करीब डेढ़ लाख लोगों की जान चली जाती है और साढ़े चार लाख से ज्यादा लोग घायल होते हैं. मरने वालों में 60 फीसदी लोग 18 से 35 की चरम उत्पादक आयुवर्ग के होते हैं. प्रापर्टी के नुकसान का आकलन किया जाए तो वह देश की जीडीपी के दो फीसदी के बराबर बैठता है. बड़े-बड़े मंत्री-संत्री, वैज्ञानिक-खिलाड़ी और कवि-कलाकार भीषण सड़क दुर्घटनाओं में जान गवां चुके हैं. इसी बिंदु पर प्रतिप्रश्न उठता है कि आम लोगों के लिए यातायात के नियम तो सख्त बना दिए गए हैं लेकिन क्या सरकार व प्रशासन की गलतियों और लापरवाहियों तथा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे ट्रैफिक कर्मचारियों की वजह से जनता को होने वाले नुकसान, दुर्घटनाओं, यहां तक कि लोगों की मौत के लिए किसी को सजा या जुर्माना होगा कि नहीं?
सरकार सिर्फ कानून बना कर बरी नहीं हो जाती. अगर वह लोगों से नए ट्रैफिक नियमों का अक्षरशः पालन करने की अपेक्षा करती है तो लोग भी अपेक्षा करते हैं कि संशोधित एक्ट के सभी जनहितैषी प्रावधानों पर सरकार की तरफ से अक्षरशः अमल किया जाए. विडंबना यह है कि जुर्माना वसूली तो तत्काल चालू हो गई, लेकिन संशोधित कानून में उल्लिखित बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर का कोई अता-पता नहीं है. हाईवे की यह वनवे कार्रवाई लोगों को आखिर कब तक और किस हद तक पचेगी? यातायात के नियम तोड़ने वालों के प्रति हमारी कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन सरकार को भी चाहिए कि वह सड़कों को गड्ढामुक्त करे, मेनहोल बंद करे, जाम की समस्या से निजात दिलाए, सांड, गाय, भैंस, सुअर, घोड़े, कुत्ते, गधे तथा नीलगाय जैसे आवारा पशुओं के सड़क पर खुलेआम घूमने और बैठने को रोके, सड़कों का चौतरफा अतिक्रमण हटाए, सिग्नल चाक-चौबंद करे, पुलों और सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था करे तभी तो यह भारी जुर्माना और सजा तर्कसंगत व न्यायसंगत लगेगी.
हमारी सरकार मानती है कि सख्त सजा का डर ही लोगों को अपराध करने से रोक सकता है. नए ट्रैफिक नियमों की खासियत यही है कि वे बेहद सख्त हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि नए नियम जनता की मुट्ठी गरम करने की लत और सरकारी अमले की ऊपरी कमाई की हवस का शिकार नहीं होंगे. पूरा ट्रांसपोर्ट और ट्रैफिक सिस्टम आने वाले सालों में पटरी पर आ जाएगा और यातायात को लेकर लोगों में इतना आत्म अनुशासन पैदा हो जाएगा कि जुर्माना और सजा की नौबत ही नहीं आएगी. अगर इतना हो गया तो भारतीय सड़कों पर रामराज्य आने से कोई नहीं रोक सकता!
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)