रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने दुनिया में नया शरणार्थी संकट पैदा कर दिया है. अभी हम सीरिया, अफगानिस्तान और अफ्रीकी देशों के शरणार्थी संकट से निकले भी नहीं हैं कि एक नए शरणार्थी संकट ने पूरी दुनिया को चिंता में ला दिया है. जो लोग यूक्रेन से भाग रहे हैं, उन्हें पनाह कौन देगा? कितने दिनों तक देगा? उनके रहने और खाने-पीने का खर्च कौन उठाएगा? और सबसे बड़ी बात, उन्हें वापस अपने देश कब और कैसे भेजेंगे? जाहिर है इस वक्त इनका जवाब देना किसी के भी बस की बात नहीं है.
मानवीयता के आधार पर अभी तो यूक्रेन के लोगों को दूसरे देशों में शरण मिल रही है लेकिन पनाह देने वाले देश भी लंबे समय तक ऐसा नहीं कर सकेंगे. वो इसलिए कि कोई नहीं जानता कि यूक्रेन में युद्ध कब तक चलेगा. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि यह इस सदी का सबसे बड़ा शरणार्थी संकट हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पिछले 10 दिनों में युद्ध की वजह से करीब 15 लाख लोगों ने अपना देश छोड़ दिया है और पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं. यूक्रेन के शरणार्थी सबसे ज्यादा पोलैंड और मोल्दोवा पहुंच रहे हैं. पोलैंड में यूक्रेन के करीब 7.5 लाख शरणार्थी पहुंच चुके हैं जबकि मोल्दोवा के राष्ट्रपति के मुताबिक उनके देश में अब तक यूक्रेन के 2.5 लाख शरणार्थी पहुंचे हैं. अब तक जो लोग यूक्रेन छोड़कर दूसरे देशों में शरणार्थी बने हैं, उनकी संख्या यूक्रेन की 4.4 करोड़ आबादी का केवल 3 फीसदी है. संयुक्त राष्ट्र (UNHCR) का पूर्वानुमान है कि करीब 40 लाख लोग अंतत: यूक्रेन छोड़कर जा सकते हैं. अगर युद्ध लंबा खिंचा तो ये संख्या और भी ज्यादा हो सकती है.
यूक्रेन से जो तस्वीरें आ रही हैं उन्हें देखकर दिल पसीज जाता है. हर दिन हजारों लोगों को कड़ाके की ठंड के बीच देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. इनमें से ज्यादातर को ये नहीं पता कि उन्हें वास्तव में जाना कहां हैं. सोचिए कितनी भयावह स्थिति है. लोग आसमान से गिरते बम-गोलों और मिसाइलों से बचते हुए अपने बच्चों को लेकर पैदल निकल रहे हैं. जिनके पास थोड़ा रसूख और संसाधन है वो खचाखक भरी ट्रेनों और ट्रकों के जरिए यूक्रेन छोड़ रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि यूक्रेन से लगने वाले पड़ोसी देशों के बॉर्डर पर 10-10 मील लंबी कतारें लगी हुई हैं. ऐसी विकट स्थिति को देखते हुए स्लोवाकिया और पोलैंड ने युद्ध की वजह से भाग रहे शरणार्थियों को पासपोर्ट या अन्य वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना भी अपने देश में घुसने की इजाजत देने का ऐलान किया है. फिलहाल पलायन करने वाले लोग इन देशों में पहले से रह रहे अपने दोस्तों और जान-पहचान के लोगों के घर शरण ले रहे हैं लेकिन अगर यही हालात बने रहे तो फिर उनके शरणार्थी कैंपों में रहने की नौबत आ जाएगी.
यूरोपियन यूनियन इसे सबसे बड़ा मानवीय संकट कह रहा है जो उसने बहुत साल बाद देखा है. वैसे भूलना नहीं चाहिए कि 2015 में सीरिया में हुए युद्ध के वक्त भी यूरोप को बड़ा शरणार्थी संकट देखना पड़ा था. लेकिन खास बात ये है कि इन दो स्थितियों में यूरोप ने जिस तरह की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं वो उन लोगों के लिए एक सबक है जो यूरोप से ज्यादा मानवीयता और उदारता की उम्मीद कर रहे हैं. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया और रोमानिया जैसे देशों में अक्सर सार्वजनिक तौर मुस्लिम बहुत वाले पश्चिम एशियाई देशों और अफ्रीकी देशों के शरणार्थियों के बारे में नस्लवादी टिप्पणियां की जाती हैं. इसका सबूत इस बार भी देखने को मिल रहा है. पिछले कुछ दिनों में आपने पढ़ा होगा कि यूक्रेन से भागने वाले श्वेत यूक्रेनी नागिरिकों से जिस तरह का सहानुभूति भरा व्यवहार किया जा रहा है वैसा यूक्रेन से भागने वाले पश्चिम एशियाई और अफ्रीकी मूल के लोगों से नहीं किया जा रहा. शरणार्थी संकट के कई आयामों में से ये सिर्फ एक आयाम है. समस्याएं बहुत सारी हैं. इस पर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी.
जहां तक बात दुनिया भर के शरणार्थी संकट की है तो यूक्रेन के शरणार्थी संकट को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले दुनिया में विस्थापित लोगों की कुल संख्या लगभग 8 करोड़ थी. शरणार्थियों की यह संख्या मोटे तौर पर जर्मनी की आबादी के बराबर है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में इतने शरणार्थी कभी नहीं थे. सोचिए, अभी तो ये युद्ध सिर्फ यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा है, अगर इसमें दूसरे देश भी शामिल हो गए तो फिर कितने लोगों को अपना घर-बार और देश छोड़ना पड़ेगा. इसकी कल्पना भी करना मुश्किल है. इसलिए ऐसे हालात पैदा न हो यही कामना करनी चाहिए. ये युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो इसके लिए दुनिया के सभी देशों को प्रयास करना होगा, खास तौर पर बड़े देश. अपने-अपने स्वार्थ को देखते हुए जो देश अभी भी चुप हैं, उन्हें भूलना नहीं चाहिए कि शरणार्थी संकट किसी एक देश की समस्या नहीं है. अगर किसी एक देश में स्थिति बिगड़ी तो इसका असर दूसरे देशों पर भी पड़ेगा.
मान लीजिए अगर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भारत से भी शरणार्थियों को शरण देने की गुजारिश की तो क्या भारत उन्हें शरण देने की स्थिति में है? ध्यान रहे कि हमारे यहां बांग्लादेश, म्यांनमार, पाकिस्तान, चीन समेत कई पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों का मुद्दा पहले ही काफी संवेदनशील है. दरअसल शरणार्थी भारत ही नहीं किसी भी देश के लिये एक समस्या बन जाते हैं क्योंकि इससे देश के संसाधनों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है, साथ ही लंबी अवधि में जनसांख्यिकीय परिवर्तन (Demographical changes) में बढ़ोतरी कर सकता है. इसके अतिरिक्त सुरक्षा जोखिम भी पैदा हो सकता है. वैसे भारत में ज्यादातर बहस शरणार्थियों के बजाय अवैध प्रवासियों को लेकर होती है. दिसचस्प है कि हमारे यहां सार्वजनिक विमर्श के दौरान दोनों में खास फर्क नहीं किया जाता.
फिलहाल भारत अपने नागरिकों को ही यूक्रेन से सुरक्षित निकालने और वापस लाने में जूझ रहा है. स्थितियां ऐसी बनी हुई है कि यूक्रेन में रह रहे हजारों भारतीय नागरिक यूक्रेन की सीमा को पार कर दूसरे देशों में जा रहे हैं. खास तौर पर यूक्रेन में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की बड़ी तादाद है. ये लेख लिखे जाने तक विदेश मंत्रालय के मुताबिक अब तक 20 हजार भारतीय यूक्रेन छोड़ चुके हैं. इनमें से 10 हजार से ज्यादा लोगों को विशेष फ्लाइट्स के जरिए भारत लाया जा चुका है. बाकी लोग अभी भी यूक्रेन के सटे पड़ोसी देशों में फंसे हुए हैं. इन्हें भी लाने की कोशिश की जा रही है. उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में ज्यादातर लोग भारत पहुंच जाएंगे. लेकिन आप सोचिए कि यूक्रेनी नागरिकों का क्या होगा. अगर स्थिति नहीं सुधरी तो वो कहां जाएंगे? मान लीजिए अगर अगले कुछ दिनों में स्थितियां थोड़ी सुधर भी गईं तो क्या सारे के सारे लोग वापस अपने वतन लौटेंगे? शायद नहीं. कई लोगों के घर उजड़ चुके होंगे, अपने बिछड़ चुके होंगे, जीवन की सारी पूंजी खत्म हो गई होगी. आखिर ये लौट जाएंगे भी तो कहां? इस पर साक़ी फ़ारुक़ी की दो लाइनें याद आ रही हैं -
अब घर भी नहीं, घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएंगे इक दिन
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)