निशांत आ रहे हैं, जद(यू) हड़पने का भाजपाई सपना अब क्या टूट जाएगा!

बिहार की 58 फीसदी आबादी 25 साल से कम की है. 20 से 59 साल की आबादी करीब 47 फीसदी है. तेजस्वी, पीके, चिराग, कन्हैया, सम्राट चौधरी, मुकेश साहनी जैसे नए लीडर अब मैदान में हैं. लालू प्रसाद यादव स्वास्थ्य कारणों से और नीतीश कुमार भी करीब-करीब उम्रजनित दिक्कतों की वजह से सक्रिय राजनीति से दूर हो जाएंगे. कब होंगे, इसका निर्णय वे स्वयं ही लेंगे. फिर, भाजपा के उस सपने का क्या होगा, उन लोगों का क्या होगा, जो जद(यू) में काफी पहले “प्लांट” किए गए थे, अगर नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार भी सक्रिय राजनीति में आ कर जद(यू) की कमान संभाल लेते है?
राजा का बेटा राजा?
हरनौत सीट से नीतीश कुमार चुनाव लड़ते रहे हैं. अब एक पोस्टर आया है, जिस पर लिखा है, “राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा.” ये पोस्टर किसी कांग्रेसी टिकटार्थी नेता रवि गोल्डन ने लगाया है, जो इसी सीट से खुद को संभावित प्रत्याशी मान कर चल रहा है. अब गोल्डन को राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और संतोष मांझी “फकीर” के बेटे तो निश्चित ही नहीं लगते होंगे. तो, उन्होंने ऐसा पोस्टर क्यों लगाया? असल में खबर है कि निशांत इसी सीट से चुनाव लड़ कर अपने पिटा की विरासत और जद(यू) की कमान संभालेंगे. बिहार की और जद(यू) की अशांत राजनीति में निशांत की एंट्री अब तकरीबन क्लियर होती दिख रही है. और इसलिए भी कि अब नीतीश कुमार के पास दूसरा कोई मुक्कमल “रास्ता” भी नहीं बचा है. रह गयी बात राजा का बेटा राजा की, तो बिचारा गोल्डेन, मेरी समझ से किसी टटपुंजिया पर्चेबाज की सलाह पर यह गलती कर बैठा या सबकुछ “प्लांड” है, कहना मुश्किल है.
यह कहना आसान है कि राजनीति में तो धुआं बिना आग के भी दिख जाता है है. यहाँ तो निशांत की एंट्री को ग्रैंड बनाने की कोशिश “सोशल इंजीनियरिंग” के मास्टर नीतीश कुमार कर ही रहे होंगे. बस, ऐलान होना बाकी रह गया है. एनडीए के घटक संतोष मांझी से ले कर चिराग पासवान तक ने निशांत की एंट्री को ले कर सकारात्मक बयान दिए हैं. लालू यादव और तेजस्वी यादव खामोश है. तो बिहार में नेता का बेटा नेता ही बनता है, यह कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर से ले कर जीतनराम मांझी के बेटे संतोष मांझी तक जगजाहिर है. ऐसे में, नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार अगर बिहार की राजनीति में कदम रखते हैं, तो “किमाश्चर्यम्”.
निशांत: जरूरी या मजबूरी
निशांत बिहार की जरूरत हो न हो, लेकिन वे नीतीश कुमार की जरूरत जरूर है, जद(यू) की जरूरत जरूर हैं. जद (यू) नीतीश कुमार की महत्वकांक्षा की वजह से आज ऐसी स्थिति में हैं, जो एक तरह से गिरवी रखी पार्टी जैसी है. वह भी तब, जब पिछले 18 सालों से नीतीश कुमार सीएम है. जार्ज फर्नांडीज से ले कर शरद यादव जैसे दिग्गज समाजवादी नेताओं को राजनैतिक तौर पर हाशिये पर डालने का काम नीतीश कुमार ने किया है. नतीजा, आज उनकी पार्टी में उनके अलावा कोई नहीं दीखता. जो दिखता है, वो “कोई और” हैं. वो कम से कम समाजवादी मूल्यों वाली राजनीति तो नहीं ही करेगा. यह बात नीतीश कुमार अब भलीभांति समझाने लगे हैं, महसूस करने लगे हैं. उन्हें यह अंदाजा आज से नहीं, काफी पहले से हैं, कि भाजपा ने 18 साल उनकी पालकी ऐसे ही नहीं ढोयी है. इसका मुआवजा भाजपा को चाहिए होगा. और जद(यू) से बेहतर मुआवजा भाजपा एके लिए क्या हो सकता है?
बिहार और देश की नब्ज समझाने वाले लालू प्रसाद यादव ने संसद में ऐसे ही नहीं कह दिया था कि लोगों के मुंह में दांत होते है, लेकिन नीतीश कुमार के...तो, आपने-हमने सबने गौर किया होगा कि जब-जब ऐसा लगा कि भाजपा बिहार में अपने दम पर या जद(यू) को नुकसान पहुंचा कर स्वयं सत्ता में आ सकती है, नीतीश कुमार की अंतरात्मा जाग कर सीधे लालू जी के आवास पर सुबह की सैर पर चली जाती थी. सुबह की सैर का यह शौक आज भी ख़त्म हो गया हो, जरूरी नहीं है. जरूरी है कि उनकी पार्टी बचे और पार्टी बचाने का काम क्या सनाज्य झा करेंगे? नहीं. निश्चित ही यह काम निशांत करेंगे?
अधूरा सपना!
आज तक, मंडल-कमंडल-मंदिर-मस्जिद की महागाथा के बाद भी, भाजपा का रथ बार-बार बिहार में ही रूक जाता है. दक्षिणपंथ की राजनीति को जैसे समाजवादी नेता शुरू से ऑक्सीजन देते रहे थे, वैसे ही बिहार में भाजपा को ऑक्सीजन मिला नीतीश कुमार से. लेकिन, कहते है ना, दुनिया में कुछ भी फ्री नहीं. तो, भले सबसे कम सीटें ला कर भी नीतीश कुमार लगातार 18 सालों से मुख्यमंत्री बने हुए हैं, लेकिन भाजपा शांत भी इसी वजह से बैठी रही कि जब सही वक्त(!) आएगा, तब सबकुछ सूद समेत वसूल लिया जाएगा. इसलिए, याद कीजिए कि नरेन्द्र सिंह से ले कर ब्रृषिण पटेल, जीतन राम मांझी से ले कर आरसीपी सिंह या फिर उपेन्द्र कुशवाहा हो, सारे के सारे जब जद(यू) का दामन छोड़ते है, तो सीधे भाजपा कार्यालय या उसके आसपास के लॉन में ही देखे जाते रहे हैं/देखे जाते हैं. पटना में दोनों ही पार्टी के कार्यालय भी आसपास ही हैं, वैसे!
नीतीश कुमार इस मामले में स्वर्गीय रामविलास पासवान से भी एक कदम आगे के मौसम विज्ञानी है और उन्हें पता है कि किसे कब कहां रखना है, कितनी देर रखना है. अन्यथा, जिन पीके ने 2015 में उनके लिए दिल खोल कर काम किया था, उन पीके को भी नीतीश कुमार ने बाहर का रास्ता दिखाने में संकोच नहीं किया. ऐसे में, जद (यू) के संजय झा हो या अन्य कोई नव-समाजवादी नेता, कल को अगर भाजपा के सपने को पूरा करने की कोशिश भी करते दिखे तो क्या नीतीश कुमार चुप रह जाएंगे. नहीं. उनके पास बेटा है. सबसे भरोसेमंद. वैसे भी नीतीश कुमार कभी राजा नहीं रहे. तो निशांत को राजा का बेटा कहना भी गलत होगा. 60 फीसदी युवा बिहारियों के बीच एक और युवा राजनीति में आएं, इसमें बुराई ही क्या है?
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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