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नीतीश कुमार का इनकार पड़ेगा इंडिया अलायंस को भारी, संयोजक बनते तो तालमेल और सीट-शेयरिंग में होती आसानी

इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. आज यानी शनिवार 13 जनवरी को जब विपक्षी दलों के गठबंधन की वर्चुअल बैठक हुई, तो नीतीश कुमार ने संयोजक पद स्वीकार करने से मना कर दिया था. वैसे, बहुत पहले ही उनकी पार्टी के एक बड़े नेता ने कह भी दिया था कि संयोजक का पद तो झुनझुना है, नीतीश जी को तो पीएम पद का प्रत्याशी घोषित करना चाहिए. यह तो तय ही था कि नीतीश संयोजक नहीं बनेंगे और बिहार में चल रही सर्दी के बीच भयंकर राजनीतिक गरमी बढ़ेगी. सीटों के बंटवारे को लेकर भी अभी तक कुछ तय नहीं है और अब इंडिया गठबंधन के संयोजक के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे का भी नाम सामने आ रहा है. 

सीट शेयरिंग नहीं है समस्या

इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर जो पूरे देश में, खासकर बिहार में जो चल रहा है, वह दरअसल जबरन मुद्दा बनाने की कोशिश है. नीतीश कुमार भले ही संयोजक नहीं बने हों, लेकिन उनके यहां सीटों को लेकर झमेला नहीं है. बात दरअसल ये है कि कोई भी दल अपना दावा कमजोर नहीं करना चाहता, इसलिए दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं. यह दबाव बनाने की रणनीति है. सीपीआई-(एमएल) ने तो पहले पांच सीटों की बात की थी, अब वे तीन पर आए हैं. उनके दावे में गलत भी कुछ नहीं है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उनका प्रदर्शन कांग्रेस से तो बहुत बेहतर है. 19 सीटें लड़कर वे 12 सीटों पर जीते थे. जद-यू और कांग्रेस की जहां तक बात है, तो नीतीश कुमार शुरू से ही थोड़ा अतिरिक्त दबाव बना रहे हैं. आज उन्होंने संयोजक का पद भी ठुकरा दिया. पिछले दिनों वह खुद जेडी-यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. अब वह अपने 16 सिटिंग एमपी को नेचुरल क्लेम बताते हैं.

सबको देनी होगी कुर्बानी

बात तो सैद्धांतिक तौर पर ठीक है, लेकिन संगठनात्मक स्तर पर जेडीयू इतनी बड़ी भी पार्टी नहीं है कि उसे 17 सीटें दी जाएं. एनडीए के साथ रहते हुए उन्होंने भले ही मोलभाव तगड़ा कर लिया, लेकिन अब जब वह महागठबंधन में हैं, तो दलों की संख्या अधिक है. बिहार में तो मुकेश सहनी की वीआईपी भी है. 2020 में विधानसभा चुनाव जब वह लड़े तो उन्होंने चार की चार सीटें जीती थीं. उपचुनाव जो उसके बाद हुए, बोचहां और कुढ़नी में, उनका बहुत अच्छा प्रदर्शन रहा था. तो, कुछ नए दल भी गठबंधन में आ सकते हैं. तो, नीतीश कुमार को फराखदिली दिखानी चाहिए. सीमांचल में ओवैसी का भी एक प्रभाव है, उसको नकारने पर उनको लोकसभा चुनाव में नुकसान भी हो सकता है. सीट-शेयरिंग को लेकर फिलहाल जो बात आ रही है, उसमें राजद और जेडीयू अगर 17-17 सीटें आपस में बांट रहे हैं, तो वह राजनीतिक और नैतिक तौर पर सही नहीं हैं, इसमें सभी को कुर्बानी देनी होगी. उदारता दिखानी होगी, तभी इंडिया गठबंधन कुछ असर दिखा सकता है, अन्यथा जिन दलों को ये छोटा समझ कर अनदेखी कर रहे हैं, वे भी काफी नुकसान पहुँचा सकते हैं. तो, कांग्रेस हो, राजद हो या जेडीयू हो, सबको बड़ा दिल दिखाना होगा. 

करना होगा जल्द फैसला

अधिकतम एक से डेढ़ महीने का समय चुनाव का है. इंडिया गठबंधन को अपने झमेले अब सुलझाने ही होंगे. इस गठबंधन में जो समन्वय का काम है, वह थोड़ा मुश्किल है. चाहे ममता हों, केजरीवाल हों, नीतीश हों या मायावती हों, सबको अपना घर भी दुरुस्त रखना है. इसमें कहीं न कहीं कांग्रेस की गलती है. अगर वह बड़ा दल है, तो उसे दिल भी बड़ा रखना होगा और वन टू वन फाइट के लिए तो सीट-शेयरिंग पर फैसला लेना ही होगा. अब, दिल्ली में जैसे अरविंद केजरीवाल तीन सीट छोड़ने पर तैयार हैं. बदले में गुजरात, हरियाणा और गोआ में कुछ चाहेंगे. वही बात यूपी औऱ बिहार के लिए लागू होती है. अगर वो नरेंद्र मोदी नीत एनडीए को टक्कर देना चाहते हैं  तो इससे ऊपर उठना पड़ेगा. नीतीश कुमार को लेकर जो ऊहापोह चल रही थी, वह अब लगभग खत्म है. वह इंडिया गठबंधन छोड़कर तो नहीं जाएंगे, लेकिन संयोजक पद छोड़ने के बाद उनके मन में क्या है, यह तो वही बता सकते हैं. उनमें माद्दा था कि वह जॉर्ज फर्नांडीस की तरह एक जोड़नेवाले नेता के तौर पर उभरते, लेकिन गठबंधन ने उनको पीएम पद का प्रत्याशी घोषित किया नहीं, वह संयोजक बने नहीं, बल्कि लालू का नाम आगे बढ़ा दिया, तो अब अगले कदम के तौर पर वह क्या करेंगे, यह तो कयासबाजी होगी, लेकिन उनके इंडिया गठबंधन में ही रहने के चांस अधिक हैं. 

कांग्रेस दिखाए फराखदिली

कांग्रेस को उन राज्यों में दावा छोड़ना होगा जहां उसका संगठन कमजोर है. आप बिहार और यूपी को ही ले लीजिए. प्रियंका गांधी की मुलाकात भी मायावती से हुई थी और वह एक आदर्श स्थिति होगी, अगर सभी दल एकसाथ चुनाव लड़ें. यूपी में सपा सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन कांग्रेस को उसका वाजिब हक देना ही पड़ेगा. कांग्रेस को इन जगहों पर थोड़ा अधिक त्याग करना होगा. बाकी जगहों पर वह अपना अधिक शेयर लें. अब जैसे बिहार में कांग्रेस अगर 10 सीटें चाहें तो ये थोड़ा अधिक हो जाएगा. विधानसभा में उनको 70 सीटें मिलीं और वे जीतकर 19 सीेटें लाए. फिर, आपको किस नाते 10 सीटें चाहिए...तो, सीट-शेयरिंग में समस्याएँ तो रहेंगी, लेकिन यह समस्या और गंभीर हो गयी है, क्योंकि अगर नीतीश कुमार जो इसकी धुरी हैं, वह संयोजक बनते तो कोई न कोई रास्ता निकाल लेते, लेकिन अब इंडिया अलायंस की राह औऱ मुश्किल दिख रही है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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