बिहार की राजनीतिक कश्ती एक बार फिर से अनिश्चितता के भंवर में फंसती सी दिख रही है. कयास लगाए जा रहे हैं कि जेडीयू-आरजेडी के कई विधायक चुनाव से पहले बीजेपी की तरफ रुख कर सकते हैं और भगदड़ सी मच सकती है. साथ ही, जेडीयू और आरजेडी के बीच जो राजनीतिक खींचतान चल रही है, उससे महागठबंधन पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. इस बीच बिहार में यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों में पाला बदलनेवाले नेताओं की संख्या भी बढ़ेगी. 


आरजेडी-जेडीयू में दरार


हाल-फिलहाल दो बड़ी घटनाएं बिहार में हुई हैं. एक थी जी20 और दूसरी पी20. जी20 तो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन था प्रधानमंत्री के नेतृत्व में और वह बहुत ढंग से निभ गया. दूसरा जो पी20 हुआ, पॉलिटिकल पार्टीज का मीट, वह पिट गया. उसके बाद से बिहार में भूचाल ही है. नीतीश कुमार खुद बीजेपी का साथ छोड़कर गए कि देश उन्हें स्वीकार कर लेगा. जैसे ही उन्होंने आरजेडी का साथ लिया, वह कलंकित हो गया. कलंकित होने का परिणाम ही था कि जो समन्वय दोनों पार्टियों में होना चाहिए था, वह नहीं है. इसके उलट आज दोनों पार्टियों के विधायकों में जितनी तनातनी है, वह तो दिख ही रहा है. तेजस्वी कभी कुछ बोलते नहीं हैं, लेकिन नीतीश जी के खिलाफ विधायक बोलते रहते हैं.


कल ही एक वरिष्ठ नेता जो आरजेडी के हैं, उनके ऊपर खुद सीएम ने बोला. तो, विरोधाभास है, कंट्राडिक्शन है, जो दिख भी रहा है. यह बौखलाहट जो है वो तो ये है कि लोकसभा का चुनाव है और राजद-जदयू की हालत खराब है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जो योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनका गहरा असर है. तो, वह बौखलाहट तो दिख रही है. इनके जो सांसद बचे हैं, वे इस जुगाड़ में हैं कि उनकी सीट कैसे बचे? दूसरी ओर, जो विधानसभा चुनाव है, वह भी दिख रहा है कि आरजेडी-जेडीयू में घबराहट उस संभावित नतीजे को लेकर ही है. 



बिहार में नीति पिछड़ा बनाने की


एक चीज याद रखने की है. 2025 में बिहार में पूरा परिवर्तन आने वाला है. वह भूचाल है. 1990-91 में जब सुधारों का दौर शुरू हुआ, तो पूरा देश जहां 45 डिग्री के ट्रांजैक्ट्री से ग्रोथ कर रहा था, ऊपर जा रहा था, वहीं बिहार नीचे गया. आज बिहार में 52 फीसदी लोग गरीबी-रेखा के नीचे हैं. फिर, उस पर जाति-जनगणना. हमने तो राजनीति में जाना और अर्थशास्त्र में पढ़ा कि देश को आगे ले जाने के लिए नीतियां बनती हैं. बिहार में यह पीछे ले जाने को बनती हैं. पिछड़ा को अति-पिछड़ा, दलित को महादलित, तो यहां की नीति ही अलग है और यही विरोधाभास बिहार में दिख रहा है. खासकर, नीतीश कुमार के सपने के बाद कि वह पीएम बन सकते हैं, बिहार की स्थिति और हास्यास्पद हो गयी है.



जहां तक नीतीश कुमार की बात है, भाजपा ने तो उनको कभी छोड़ा नहीं था. अब वही जानें उनके मन में क्या है? उनको खुद ही लगा था कि वह पीएम बन सकते हैं और वह खुद ही गए. हालांकि, बीजेपी भी अब बहुत इच्छुक नहीं हैं. हमें उनके जाने से ही फायदा है. उनकी जो इनकम्बेन्सी है, वह बहुत अधिक है. राजद को वही ले डूबे, अब भाजपा भला क्यों बैठना चाहेगी? यह भी जान लीजिए कि नीतीश कुमार जीते-जी अपनी कुर्सी किसी को नहीं देंगे, यह जान लीजिए. वह जीतनराम मांझी के तौर पर एक बार गलती कर चुके हैं. आगे वह कभी नहीं दुहराएंगे. वह मृगतृष्णा है और तेजस्वी को कभी भी सीएम की कुर्सी नहीं मिलेगी, नीतीश जी से. 


बिहार के माथे पर पिछड़ेपन का कलंक


तेजस्वी के मलमास मेले के पोस्टरों से गायब होने की बात तो मीडिया ही बता रही है. हम तो सुन रहे हैं. लोग कह ही रहे हैं. जो प्रत्यक्ष रूप से दिख रहा है, वही बात है. यह सरकार कमजोर हो चुकी है, पूरी तरह से. अपनी आंतरिक कमजोरी से अगर यह सरकार अभी गिर जाए, तो हमें काहे का दोष? अभी बारिश में शहर और गांव डूब चुके हैं, कोई हवाई अड्डा ढंग का नहीं है, कोई ढंग का होटल नहीं है, 4 करोड़ लोग बिहार को छोड़कर चले गए. बिहार तो आजकल देश में सबसे पिछड़ा, सबसे अविकसित है. हमारी तो परिभाषा ही बन गयी है यह. अगर बिहार पिछड़ा है तो हम कैसे फॉरवर्ड हो सकते हैं? लोग चाहते हैं परिवर्तन. बिहार में 2025 में पूरी तरह परिवर्तन होगा. 100 लोग अगर बिहार छोड़ गए हैं, तो उनमें से 80 वही हैं, जिनके नाम पर ये पार्टियां कसमें खाती रही हैं.


वही बिहार से बाहर जाकर प्रगति कर लेता है, फिर बिहार में ऐसा क्या है कि वह ऐसा हो गया है. बिहार में तो सभी जातियों के साथ धोखा हुआ है. फॉरवर्ड हो या बैकवर्ड हो, सभी का पलायन हुआ है. टाटा पावर का सीईओ आज बिहारी है, आइएएस टॉपर दोनों महिलाएं बिहार की हैं, जहां भी देखिए, वहीं बिहारी जिंदाबाद है, लेकिन बिहार तो अपमान का प्रतीक बन गया है. पंजाब में उसे भैया कहते हैं-कमजोर, गरीब, ठेला-रिक्शावााला, झाड़ू-पोंछा करनेवाला. यही तो इमेज बनाई है बिहार की हमारे दो बड़े नेताओं ने. 


मैंडेट तो जनता ने बीजेपी-जेडीयू अलायंस को दिया था, तो इनको तो झेलना तो पड़ेगा. नीतीश जी की क्रेडिबिलिटी पूरी तरह खत्म हो गयी है. बिहार की जनता इसका जवाब देगी और एक बड़ा परिवर्तन होकर रहेगा. 


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]