ये जो भाजपा के खिलाफ इतने विरोधी दल इकट्ठा होकर गठबंधन करने की बात कर रहे हैं, जिसके लिए नीतीश जी अभी दिल्ली दौड़ लगा कर आए हैं, उसका नेतृत्व कौन करेगा? मैं सिर्फ प्रधानमंत्री पद के स्तर पर बात नहीं कर रहा हूं. इस बात को थोड़ा और समझिए. जब 1974 में देश पर इमरजेन्सी श्रीमती इंदिरा गांधी ने थोपी, तो देश के लोगों के पास एक कारण था. लोकतंत्र को रिस्टोर करने के लिए सभी दलों ने अपने झंडे को भूलकर एक दल के झंडे तले आने को तैयार हुए. तभी जनता-दल का निर्माण हुआ जिसका नेतृत्व और नियंत्रण जयप्रकाश जैसे विराट व्यक्तित्व ने किया. आज क्या देश के सामने वैसी परिस्थितियां हैं?  दूसरा बड़ा सवाल यह है कि इन सभी भ्रष्टाचारियों में जेपी कौन है?


सीबीआई और ईडी बिल्कुल स्वायत्त है


ये जो हल्ला मचा रहे हैं कि भाजपा ईडी और सीबीआई का गलत इस्तेमाल कर रही है, वह बेकार और बेबुनियाद बात है. दिल्ली में सबसे अधिक हल्ला मचानेवाली स्वयंभू ईमानदार पार्टी AAP के सतेंदर जैन क्या जेल से बाहर आ गए हैं? उनके बारे में कोर्ट ने जो कहा है, वह पूरे देश ने सुना और देखा है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने और दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी परिस्थिति में इस व्यक्ति को जेल से बाहर नहीं किया जा सकता. या तो ये सबूत मिटा सकते हैं या फिर जिस तरह के गंभीर आरोपों के सबूत हमें मिल रहे हैं, उसमें इनको डिस्चार्ज किया ही नहीं जा सकता. मनीष सिसोदिया को भी जेल गए 1 महीने से अधिक हो गया. वह खुद को भगत सिंह बता रहे थे. जरा दिल्ली हाईकोर्ट की उन पर की गई टिप्पणी पढ़िए. अब माननीय केजरीवाल जी का नंबर आ रहा है.


कोई भी मामला आधारहीन होने पर कोर्ट में कैसे ठहरता, आप खुद ही सोचिए। एक टाइमफ्रेम है इन चीजों को ठीक करने में. लोगों को यह बात समझ में आ रही है कि जिस तरह भ्रष्टाचार की कोख से उपजे इन दलों ने नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए गठबंधन का प्रयास किया है, उसकी असल वजह क्या है? जमीन पर इस गठबंधन का कोई प्रभाव नहीं है.


हर शाख पे उल्लू बैठा है


देश के लोग जानते हैं और पूछते हैं, हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा? एक बड़ा सवाल मैं पूछता हूं. देश में 15-16 राज्य करीबन ऐसे हैं जहां भाजपा का शासन नहीं हैं. यहां सत्तासीन नेताओं में एक नवीन पटनायक को छोड़ दें, तो हरेक विपक्षी नेता खुद को प्रधानमंत्री ही समझ रहा है. दूसरी बात ये है कि क्या ममता बनर्जी बिहार में वोट परसेंटेज पर किसी तरह का फर्क डाल सकती हैं? क्या केसीआर बिहार में आकर कुछ कर सकते हैं, क्या कांग्रेस खुद पश्चिम बंगाल में इस स्थिति में है कि टीएमसी के वोट बढ़ा दे या ममता बनर्जी लेफ्ट का समर्थन लेने की हालत में हैं? उसी प्रकार आप दिल्ली-झारखंड में देख लीजिए. दक्षिण भारत के राज्यों को देख लीजिए. क्या द्रमुक और अन्नाद्रमुक एक-दूसरे के साथ गठबंधन करेंगे.


यूपी में कथित महागठबंधन का हश्र हमने देखा है


उत्तर प्रदेश का उदाहरण हमारे सामने है. जब सपा-बसपा ने गठबंधन बनाया था और अंदरखाने कांग्रेस का भी उनको समर्थन था, तो क्या हुआ? ये हम सबने देखा है. जनता ने जब मन बना लिया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के साथ ही चलना है, तो ये भ्रष्टाचारी कुछ भी बोलें, उनसे फर्क नहीं पड़ता है.


बिहार में भी अगर गठबंधन की बात करें, तो हमने पिछली बार 40 सीटों पर गठबंधन किया, जिसमें हमारे साथ जेडीयू और लोजपा थी. आज अगर कहें तो लोजपा (रामविलास) को छोड़कर बाकी सभी दल इकट्ठा हुए हैं. बावजूद इसके हम आत्मविश्वास से भरे हैं, तो इसका कारण है. हमने जो कहा, सो किया. राम मंदिर बनाने का वादा किया, वह बन रहा है. कश्मीर से हमने अनुच्छेद 370 हटाया. हमने अपनी विचारधारा के अनुरूप काम किया. बिहार की 14 करोड़ की आबादी में 8 करोड़ की आबादी तक हमारी योजनाओं की सीधी पहुंच है. 8 करोड़ लोगों को राशन, सवा करोड़ को उज्ज्वला और करीब 86 लाख किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना का लाभ मिला है. इसके अलावा जितनी केंद्रीय योजनाएं और सब्सिडी हैं, उनका भी लाभ लोगों को मिल रहा है. जनता यह सब देख रही है.


जनता को ये मूर्ख समझते हैं


नीतीश जी कहते थे कि क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से वह समझौता नहीं करेंगे. ये लोग जनता को मूर्ख समझते हैं क्या? लालूजी के साथ जाते ही ये क्राइम और करप्शन की गोद में बैठ गए. अब नीतीश जी हमें कम्युनल कह रहे हैं. मुझे हंसी आती है. हम उनसे ये सवाल तो पूछेंगे न कि भाई 26 वर्षों तक हम कम्युनल नहीं थे, जो अब हुए. जनता भी उनसे पूछेगी न कि पूरी जिंदगी लालू के जंगलराज विरोध पर जिसने अपनी सियासत की, जिस बीजेपी ने उनको नेता बनाया, किस तरह जाकर उनके खिलाफ हो गए?


हम नीतीश के साथ पर सवाल को टालते नहीं


हमारा और जेडीयू का गठजोड़ आवश्यक था. हमने जो नीतीशजी के साथ गठबंधन किया, वह बिहार में 1990 से 2005 तक जारी आरजेडी के शासन के आलोक में ही था. 2005 से 2010 तक हमने बिहार को 100 कदम आगे ले जाने की कोशिश की. जब नीतीश जी को  हमारे गठबंधन में 113 सीटें मिलीं, तो इन्हें पीएम के सपने आने लगे. उसके बाद इन्होंने मोदीजी का विरोध करना शुरू किया. फिर, ये भाजपा से अलग हुए और 2015 में इन्होंने महागठबंधन का प्रयोग किया. इनलोगों ने उस बार भ्रम फैलाया कि भाजपा आरक्षण को खत्म करेगी और बस तभी ये प्रयोग सफल रहा था. न उसके पहले, न उसके बाद. मैं पूछता हूं कि अगर लालूजी और नीतीशजी की इतनी ही राजनीतिक हैसियत थी तो जब इनकी जनता पार्टी की शिकार बनी थी, तो बीजेपी का समर्थन क्यों लेना पड़ा था?


नीतीशजी पर सबसे बड़ा आरोप ये है कि महादलित और पिछड़ा वर्ग जो लालू के राज से डरकर उनके साथ जुड़ा था, उसके साथ उन्होंने धोखा किया है. वह तो भाई लालूजी का डर दिखाकर ही वोट लेते रहे थे. आज वह जिनके साथ बैठे हैं, वही तो जंगलराज के प्रणेता थे. आज महादलित और पिछड़ा वर्ग बेहद आतंकित है और ठगा हुआ भी. बिहार में पिछले 10 महीनों का क्राइम चार्ट देख लीजिए, आपको स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. 


भाजपा के पास चेहरों की कमी नहीं है


हम चूंकि कार्यकर्ता आधारित पार्टी हैं, कोई जाति आधारित नहीं तो अक्सर यह भ्रम होता है कि हमारे पास चेहरा नहीं है. ऐसा बिल्कुल नहीं है. बिहार में आप देखिए, सुशील मोदी हमारे बेदाग, साख वाले नेता रहे और 1990 से जब तक वह केंद्र की राजनीति में नहीं गए, बिहार के निर्विवाद नेता रहे. अभी सम्राट चौधरी हैं हमारे पास, नित्यानंद राय हैं, तारकिशोर जी ने भी डेढ़-दो वर्षों तक बढ़िया काम किया है. चेहरे की नहीं, सुशासन की बात है. हम समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाली पार्टी है. माकूल समय पर बिहार की जनता के सामने हम एक चेहरा लाकर जाएंगे, या चुनाव के बाद ही चुन लेंगे. इसको लेकर कोई दिक्कत नहीं है.