बिहार: बदले से बदले से सरकार नजर आते हैं, एका की राह में दरार नजर आते हैं...

सियासी जानकार चाहे जो कह ले, “इंडिया” नामक विपक्षी महागठबंधन की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है, जिस बात की तस्दीक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पटना बैठक के दौरान कही थी. खरगे ने यही कहा था कि अगर हम बिहार जीत गए तो समझ लीजिये कि इंडिया जीत जाएंगे. और यहाँ पर बिहार जीतने का अर्थ सिर्फ इतना भर नहीं है कि कि बिहार की 40 सीटों में से विपक्ष कितनी सीटें जीत पाता है बल्कि यहाँ इस जीत के मायने यह है कि कांग्रेस बिहार के धुरंधरों को कैसे और किस हद तक मैनेज कर पाती है क्योंकि बिहार के ये धुरंधर अनप्रेडिक्टेबल तो है ही, बहुत हद तक अनमैनेजेबल भी हैं.
खफा-खफा से हैं नीतीश!
बेंगलुरू बैठक के बाद से ही कहा जाने लगा था कि नीतीश कुमार थोड़े खफा-खफा नजर आ रहे हैं. लेकिन नीतीश कुमार के बारे में कोइ भविष्यवाणी करना किसी भी राजनीतिक पंडित के लिए आसान नहीं होता. राजगीर बैठक में उन्होंने साफ़ किया कि ऐसी कोई बात नहीं है. वैसे, राजनीतिक अनुमान अक्सरहा राजनीतिक घटनाक्रमों से ही प्रेरित होते हैं. और ऐसी कई घटनाएं पिछले दिनों घटित हुई है, जो नीतीश कुमार के मन-मिजाज के अनुकूल नहीं मानी जा सकती. हम एक-एक कर इन मसलों को समझाने की कोशिश करते हैं. नीतीश कुमार इस वक्त अपने स्टेट और सेंटर की राजनीति, दोनों मोर्चे पर अपनी स्थिति मजबूत बनाने को ले कर जूझते हुए दिख रहे हैं. “इंडिया” में उनका पोजीशन क्या होगा, यह उनके सेन्ट्रल पॉलिटिक्स के लिए जहां अहम हैं, वहीं बिहार में भी अपने से मजबूत राजद जैसे सहयोगी को यह एहसास दिलाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं कि वह अभी कमजोर नहीं है.
अंतरात्मा की आवाज!
नीतीश कुमार इन दिनों बिहार में राजद कोटे के विभागों में जबरदस्त तरीके से हस्तक्षेप करते नजर आ रहे हैं. पहले स्वास्थ्य विभाग के तबादले को रद्द किया, अभी राजस्व विभाग के तबादले को रद्द किया और केके पाठक को शिक्षा विभाग का अपर मुख्य सचिव बना कर भेजे जाने के बाद शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर तो मानो अब निष्क्रिय से हो गए दिखते हैं जबकि ऐसा लग रहा है कि बिहार के असल शिक्षा ,मंत्री केके पाठक ही है. आए दिन पाठक की तरफ से दर्जनों आदेश जारी किए जा रहे है, कलेक्टरों को पत्र लिखे जा रहे है. सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि मंत्री स्तर से एक भी तबादला नहीं हो पा रहा है. स्वास्थ्य विभाग के विशेष कार्य पदाधिकारी का आदेश इसी विभाग के अपर मुख्य सचिव के ओएसडी निरस्त कर देते हैं जबकि इस विभाग के मुखिया उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हैं. हाल ही में राजगीर मेले के उद्घाटन के मौके पर तेजस्वी यादव भी मौजूद नहीं थे. जो सबसे अधिक् खींचातानी देखने को मिल रही है, वह है शिक्षा विभाग में. इन उदाहरणों को देख कर आप बहुत ही आसानी से कुछ परिणाम निकाल सकते हैं.
मसलन, नीतीश कुमार इस मूड में कतई नहीं है कि खुद को राजद जैसी बड़ी पार्टी के समक्ष छोटा महसूस करें, उलटे राजद को यह एहसास कराए कि आप समर्थन दें न दें, हम सरकार ऐसे ही चलाएंगे. इसका सन्देश यह भी है कि आप हमें टेकेन फॉर ग्रांटेड न ले या हमें बारगेन करने की कोशिश न करे अन्यथा हमारी अंतरात्मा कभी भी जाग सकती हैं. आप शायद याद कर पाएं तो हाल ही में पटना में भाजपाईयों पर हुए लाठीचार्ज के बाद भाजपा ने सबसे अधिक निशाना तेजस्वी यादव पर साधा और कहा कि इन्होने भाजपा वालों से बदला लिया है जबकि स्टेट के मुखिया होने के बाद भी नीतीश कुमार भाजपाइयों के निशाने पर थोड़े कम ही आए. मतलब, इस बात को कोई संकेत न भी माना जाए तब भी इतना तो कहा जा सकता है कि भाजपा वाले भी जानते है कि नीतीश कुमार कभी भी कुछ भी कर सकते हैं, इसलिए दुश्मनी उतनी ही की जाए ताकि बाद में दोस्ती होने पर शर्मिन्दगी न उठानी पड़े.
नीतीश का “इंडिया”
“इंडिया” की जीत का रास्ता और “इंडिया” के भविष्य का सबसे बड़ा पेंच बिहार में ही फंसा हुआ है. हालांकि, सैद्धांतिक तौर पर यह बात सही भी लग सकती है कि जिस विपक्षी एकता के सूत्रधार नीतीश कुमार बने थे, साल भर से अधिक समय तक देश भर में धूम-घूम कर विपक्ष के नेताओं से मिल रहे थे, पटना बैठक तक उनके कन्वेनर बनाए जाने को ले कर आम सहमति बनाती दिख रही थी, वह अचानक बंगलुरू बैठक के बाद गायब होती दिखी. हालांकि, यह सवाल हमलोग शुरू से उठा रहे थे कि आखिर विपक्ष नया नाम लाएगा या यूपीए नाम ही रखेगा और अगर नया नाम लाएगा तब उसके मुखिया कौन होंगे. क्योंकि यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी थी और यह स्वाभाविक था कि नए नाम से बनने वाले गठबंधन में सिर्फ एक कन्वेनर होगा या वहाँ ही यूपीए की तरह कोई चेयरमैन होगा. इस मुद्दे को ले कर “इंडिया” में अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है, शायद अगली बैठक में कुछ फैसला हो. लेकिन, ऐसा लगता है कि इस पॉइंट ऑफ़ टाइम पर आ कर कांग्रेस अब नीतीश कुमार को साइड कर सकती है और “इंडिया” के सूत्रधार/अध्यक्ष जैसे पद को अपने हिस्से में रखने की कोशिश करेगा. बाकायदा, इसके लिए सोनिया गांधी से ले कर राहुल गांधी और सीनियरिटी के नाम पर मल्लिकार्जुन खरगे तक का नाम सामने आ रहा है. और तो और एक टीएमसी सांसद ने ममता बनर्जी का भी नाम उछाल दिया है, जो नि:संदेह नीतीश कुमार के लिए किसी भी तरह से पचने वाली बात नहीं है.
बहरहाल, इसीलिए “24 और बिहार” जैसे विषय पर अभी भी कुछ साफ़-साफ़ प्रेडिक्ट कर पाने की स्थिति नहीं है क्योंकि “इंडिया” में जब तक नीतीश कुमार की पोजीशन क्लियर नहीं होती है, तब तक नीतीश कुमार का रास्ता किधर जाएगा, कोई भरोसे से नहीं बता सकता. वैसे भी हमलोगों ने पहले से यह कहा है कि नीतीश कुमार के लिए अपने 16 सेटिंग सांसदों की कुर्बानी देना इतना आसान नहीं होगा, वह भी “इंडिया” में अपनी पोजीशन क्लियर किए बिना तो कतई नहीं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
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