बिहार! वह धरती जहां से संपूर्ण क्रांति का नारा गूंजा, जहां से सत्ता-विरोधी आंदोलन का धुआं उठा तो वह सत्ता को लील गया और जहां उसी आंदोलन ने नेताओं की वह पीढ़ी पैदा की, जो पिछले तीन दशकों से बिहार की राजनीति को चला रहे हैं. नीतीश हों, लालू हों, स्वर्गीय रामविलास पासवान हों या स्वर्गीय सुशील मोदी, सभी इसी आंदोलन की उपज थे या हैं. आज फिर से एक बार बिहार में छात्रों में उबाल है, वे सड़कों पर हैं और अगर आंकड़ों की बात करें तो लाखों विद्यार्थी गांधी मैदान में और उसके आसपास हैं.
नीतीश कुमार! जो कभी सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते थे, जिन्होंने कभी बिहार के लोगों, नौनिहालों की आंखों में सपने बोए थे. जिनके कुशल प्रशासन और नो-नॉनसेंस अप्रोच की वजह से उनको जनता ने लगातार जी भर कर, झोली भरकर अपना प्यार वोटों के रूप में दिया. भले ही उन्होंने कई बार गठबंधन के सहयोगी बदले, लेकिन जनता ने उनको स्वीकार किया. न केवल स्वीकार किया, बल्कि जमकर सीटें भी दीं. हाल का लोकसभा चुनाव भी इसका उदाहरण है. हालांकि, अभी जो बीपीएसी परीक्षा को लेकर छात्र आंदोलनरत हैं और उनके साथ जिस तरह का व्यवहार राज्य की पुलिस और प्रशासन कर रही है, उससे कहीं ये नीतीश कुमार का 'वाटरलू' न साबित हो जाए.
छात्रों पर लाठीचार्ज नहीं है ठीक
बिहार में बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) की प्रारंभिक परीक्षा को लेकर विद्यार्थियों ने कई तरह के घालमेल का आरोप लगाया. पिछले कई दिनों से वे पटना के गर्दनीबाग में विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं. इस प्रदर्शन से बिहार के नए नेता सह पूर्व चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर के जुड़ने के बाद छात्रों ने मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच किया. इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया. विद्यार्थी 70वीं बीपीएससी प्रारंभिक परीक्षा के पुनः आयोजन की मांग कर रहे थे.
उनका आरोप था कि परीक्षा में अनियमितताएं और धांधली हुई हैं. जब विद्यार्थियों ने पटना में विरोध प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच किया तो पुलिस ने उन्हें हटाने के लिए पहले स्थान खाली करने के लिए कहा. जब विद्यार्थियों ने नहीं सुनी तो पुलिस ने लाठीचार्ज और वाटर कैनन का सहारा लिया. इस घटना में कई विद्यार्थी घायल हो गए.
लाठीचार्ज और छात्रों के घायल होने के बाद आंदोलन की आग और भड़क गई. बात अब पटना से निकलकर आरा और दरभंगा जैसे शहरों में भी पहुंच गयी है. रेल का चक्का जाम और बिहार बंद की भी बात होने लगी है. आप जब ये आलेख पढ़ रहे होंगे, तब तक दरभंगा और आरा जैसे जिलों में 30 दिसंबर की दोपहर तक ही छात्र संगठनों ने ट्रेनों को रोक कर और सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन को तेज कर दिया है.
बिहार लोकसेवा आयोग के चेयरमैन पर विवाद
बीते कुछ समय से बीपीएससी की परीक्षाएं विवादों में घिरती रही हैं. हाल में हुई हजारों शिक्षक भर्ती के समय भी कुछ आरोप लगे, हालांकि वे साबित नहीं हो पाए. इस बार का आरोप था कि बीपीएससी परीक्षा में अनियमितताएं और धांधली हुई हैं, जिसके कारण वे पुनः परीक्षा की मांग कर रहे थे. बीपीएससी के चेयरमैन रवि मनुभाई परमार ने हालांकि ऐसे किसी भी कयास को गलत बता दिया और कहा कि बीपीएससी की 70 वीं परीक्षा कतई रद्द नहीं होगी. विद्यार्थियों का आरोप है कि बापू भवन, पटना में कई विद्यार्थियों को प्रश्नपत्र ही नहीं मिले, कई और जिलों पर पेपर लीक होने के भी आरोप लग रहे हैं, हालांकि आयोग बार-बार ऐसी किसी भी बात से इनकार कर रहा है.
गौरतलब है कि बीपीएससी के चेयरमैन रवि मनुभाई परमार पहले से ही विवादों में रहे हैं. ये 1992 बैच के आइएएस अधिकारी रहे हैं. इससे पहले ये बिहार महादलित विकास निगम में थे, तब इन पर आर्थिक गबन का मुकदमा भी चला था. वह मुकदमा 23 अक्टूबर 2017 को बिहार विजिलेंस इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो द्वारा दर्ज हुआ था, जिसमें उनके साथ तीन और आइएएस अधिकारी भी थे. इसमें आइपीसी की धारा 406, 409 और 420 भी लगायी गयी थी. यह मुकदमा करोड़ों के गबन का था. फिलहाल इस मुकदमे का क्या सूरते-हाल है, यह शायद ही किसी को पता हो. इस बीच इनको बीपीएससी का चेयरमैन भी बना दिया गया और अब ये मामला उभर आया है.
राजनीति आगे, छात्रहित पीछे
इस मामले में राजनीति भी परवान चढ़ गयी है. बीपीएससी अभ्यर्थियों को सबसे पहले पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने समर्थन दिया, फिर छात्रों के इस आंदोलन में प्रशांत किशोर से लेकर पप्पू यादव भी कूद पड़े. हालांकि, प्रशांत किशोर की इन छात्रों से तीखी नोंकझोंक भी हुई, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल है. इस बहस में प्रशांत किशोर कुछ छात्रों को गरमी न दिखाने और शांत रहने की सलाह दे रहे हैं, जबकि छात्र उनको राजनीति करने से बाज आने को कह रहे हैं.
बहरहाल, तेजस्वी हों या पप्पू या फिर पीके, सभी नेताओं ने छात्रों पर हुए लाठीचार्ज का जमकर विरोध किया और आंदोलन को जारी रखने और हर तरह से समर्थन देने का ऐलान भी कर दिया है. तस्वीर के हवाले से दिल्ली की आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी बिहार सरकार पर निशाना साधा है. इतना ही नहीं, कोचिंग संस्थाओं से जुड़े खान सर और गुरु रहमान जैसे लोग भी 13 दिसंबर (जब बीपीएससी-प्राथमिक परीक्षा हुई) के पहले से लेकर अब तक छात्रों के बीच आते रहे हैं. छात्रों का एक प्रतिनिधिमंडल इस आलेख के लिखे जाने तक मुख्य सचिव से मुलाकात कर चुका है और राज्यपाल से भी मिलने वाला है.
नीतीश दिखाएंगे बाजीगरी या करेंगे हाराकीरी
अब सवाल ये उठता है कि एक छोटी सी बात इतनी बड़ी क्यों हो रही है? कारण है बिहार में अगले साल 2025 में विधानसभा चुनाव! इस बार के विधानसभा चुनाव में रोजगार, नौकरी और युवाओं का मुद्दा काफी अहम होने जा रहा है. हर सियासी दल और नेता चाह रहे हैं कि युवाओं के बीच वह नायक बन जाएं, ताकि आगामी चुनाव में उन्हें जेन ज़ी यानी युवाओं का पुरजोर समर्थन मिल सके.
नीतीश कुमार फिलहाल दिल्ली की यात्रा पर हैं और जब वह दिल्ली से लौटेंगे तो युवाओं से बात कर इस समस्या का समाधान करेंगे या फिर राजनीतिक हाराकीरी, यह तो फिलहाल इंतजार करने पर ही पता चलेगा. हालांकि, नीतीश कुमार की राजनीति जिस तरह की रही है, वे अचानक ही विपक्षी दलों की धार को कुंद कर देने के मास्टर रहे हैं.
इस बीच जद-यू के साथ सत्तासुख भोग रही भाजपा की चुप्पी भी मानीखेज है. संघ की विचारधारा से जुड़ा छात्र संगठन विद्यार्थी परिषद भी कहीं नहीं दिखाई पड़ रहा है, जबकि वामपंथी छात्र संगठन आइसा और अन्य सड़कों पर उतर कर सरकार के खिलाफ यलगार कर चुके हैं. भाजपा के लिए अगला चुनाव और भी उलझन भरा है क्योंकि एक तरफ उसे नीतीश को भी साधे रखना है और दूसरी तरफ अपनी सीटें भी बचानी-बढ़ानी हैं. ऐसे में बीपीएससी के मुद्दे पर सड़कों पर उतरे छात्र उसको बेहद करीब से देख रहे हैं, यह भाजपा को भी याद रखना चाहिए.
विरोधी दल तो इस ठंड में बीपीएससी के मुद्दे की आंच से अपने वोटों की रोटी सेंकना चाहेंगे ही!
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