एक्सप्लोरर

इंडिया गठबंधन छोड़ कर कहीं नहीं जा रहे नीतीश कुमार, जेपी की तरह इतिहास-पुरुष बनने का अंतिम मौका नहीं चाहेंगे गंवाना

हाल ही में बिहार की राजनीति में फिर से भूचाल आने की खबर आयी. अचानक से यह खबर दौड़ने लगी कि नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदल कर एनडीए के साथ जा सकते हैं. इसका ट्रिगर बना नीतीश कुमार द्वारा भाजपा के वैचारिक पितृ-पुरुष दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति पर माल्यार्पण. इससे पहले नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन द्वारा 12 एंकर्स के बहिष्कार पर भी अपनी अलग राय दी थी. पिछले हफ्ते तेजस्वी के साथ की उनकी देहभाषा यानी बॉडी लैंग्वेज भी सहजता की नहीं थी. इधर बिहार में उनकी ही सत्ता-साझीदार पार्टी यानी आरजेडी के एक राज्यसभा सांसद और एक विधायक आपस में भिड़े हुए थे. कयासों का बाजार गर्म हुआ, लेकिन नीतीश कुमार की राजनीति को समझनेवाले जानते हैं कि नीतीश का फैसला केवल वही जानते हैं, बाकी सब कयास ही है. 

कहीं नहीं जा रहे नीतीश कुमार 

बिहार से लेकर दिल्ली तक यही चर्चा थी और अभी भी है कि दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति पर माल्यार्पण करने नीतीश कुमार कैसे पहुंच गए? वह भी तेजस्वी यादव के साथ. वह भी तब जब अगले दिन कैबिनेट की बैठक थी और उसे पूर्व-नियोजित कर नीतीश कुमार माल्यार्पण करने गए. मीडिया को एक मसाला मिलना ही था और उसके बाद हरेक तरफ ये चलने लगा कि नीतीश एक बार फिर एनडीए की ओर जा रहे हैं. इसके संकेत भी स्पष्ट थे. हालांकि, जो लोग नीतीश को एनडीए में शामिल करवाने की जल्दी में थे, वे भूल गए कि नीतीश भले ही सत्ता में साझीदार रहे हों, लेकिन बड़ी खूबी से नीतीश कुमार ने भाजपा की वैचारिकी को खुद से एक हाथ की दूरी पर ही रखा था. दूसरी बात लोग यह भी भूल गए कि नीतीश कुमार का आज जो कद है, जो मेयार है, उसमें वह किसी भी महापुरुष से दूरी नहीं बरत सकते, ना ही खुद को उसका विरोधी दिखा सकते हैं. चाहे वह किसी भी दल, विचारधारा या संगठन के हों. नीतीश कुमार को इससे ऊपर उठकर दिखाना होगा. बिहार की अगर हमलोग बात करें तो मुख्यमंत्री ने बस इसी कारण माल्यार्पण किया और उसका कोई खास निहितार्थ नहीं है. निहितार्थ अगर है, तो बस इतना है कि बिहार में जो बहुमत है, वह हिंदू है. उसको किसी भी विचार के माइक्रो-एनालिसिस के औजार से नहीं आंक सकते हैं. नीतीश कुमार यह कभी नहीं चाहेंगे कि दीनदयाल उपाध्याय का खुद को विरोधी दिखाएं और अपने ही वोटर्स के एक वर्ग को नाराज कर लें. उन्होंने इसके जरिए खुद को सॉफ्ट हिंदुत्व का पैरोकार भी दिखा दिया है. नीतीश के इस कदम से यह भी उन्होंने साफ संदेश दिया है कि वह मतदाताओं के बड़े वर्ग से अलग नहीं हैं, तुष्टीकरण नहीं करते और वह भी हिंदू ही हैं. किसी मजबूरी में नहीं हैं हिंदू, बल्कि अपनी पसंद से हैं.

नीतीश राजद के साथ नहीं हैं असहज

इंडिया गठबंधन में एक को-ऑर्डिनेशन कमिटी है, जिसने एंकर्स के बहिष्कार का फैसला लिया. नीतीश कुमार का जो कद है, उस आधार पर उन्होंने अपनी राय दी और एक डेमोक्रेटिक राय दी. इस बात पर ये तो मानना चाहिए कि इंडिया गठबंधन में ऐसी डेमोक्रेसी है, जो व्यक्तिगत तौर पर नीतीश ने अलग राय दी. नीतीश कुमार ने वही बात दोहराई और ठीक किया. दूसरी बात जहां तक आरजेडी के साथ असहज होने की है, क्योंकि नीतीश की अधिकांश राजनीति लालू प्रसाद के विरोध पर टिकी रही है, तो लोग भले उन्हें जो भी कहें, लेकिन नीतीश कुमार तभी पलटे हैं, जब उनके सहयोगियों ने उनको घलुए में समझने की भूल की है. टेकेन फॉर ग्रान्टेड लिया है. आप जैसे 2020 का चुनाव देख लीजिए. उनको सबसे अधिक डेंट तो भाजपा और चिराग पासवान की पार्टी ने ही पहुंचाया है. नीतीश कुमार ने हमेशा एक बात साफ रखी है, चाहे वह भाजपा के साथ हों या आरजेडी के साथ, कि नेता वही रहेंगे, मुख्यमंत्री वही रहेंगे और अगर ज्यादा उछल-कूद किसी ने की, तो नीतीश की ये प्रतिबद्धता नहीं है कि वह लगातार उनके साथ बने रहें. अब सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार बाहर निकलेंगे? इसका जवाब है कि वह अब नहीं निकलेंगे राजद का साथ छोड़कर और इसकी वजहें भी हैं. 2024-25 का चुनाव अभी उनके सामने है. वह पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनका यह आखिरी चुनाव है. फिलहाल, तो यही देखना है कि उनकी पार्टी जेडीयू का क्या होगा, क्योंकि मुख्यमंत्री के सामने ललन सिंह और अशोक चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता लड़ते हैं और नीतीश कुमार चुपचाप निकल जाते हैं. इससे पता चलता है कि जब पैट्रियार्क की भूमिका में नीतीश कुमार नहीं रहेंगे, तो उनकी पार्टी का हाल क्या होगा?

इतिहास ने नीतीश कुमार को अंत में आखिरी मौका दिया है. वह मौका है कि जेपी की राह पर चलकर अपने लिए सम्मान और प्रतिष्ठा हासिल कर लें. इसकी पूरी भूमिका भी है. विपक्षी गठबंधन को एक करने की शुरुआत नीतीश ने ही की थी. भले ही आज उनको वह सम्मान नहीं मिल रहा है, और वह इंडिया गठबंधन की रणनीतिक भूल है, लेकिन नीतीश के पास यह सुनहरा मौका है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है.

कांग्रेस का कब्जा नहीं गठबंधन पर

नीतीश कुमार को कन्वेनर बनाया जाता, तो अच्छा होता. कांग्रेस की जो स्थिति है, वह तो नेचुरल है. वह सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है. इसलिए, कब्जा करने की बात नहीं है, लेकिन हां नीतीश कुमार को ससम्मान इंडिया गठबंधन रखे, तो अच्छा रहेगा. वैसे, अभी कन्वेनर का पद खाली ही है, तो थोड़ा इंतजार भी करना चाहिए. नीतीश की बड़ी चिंता तो फिलहाल ये है कि उनके 16 सिटिंग सांसद हैं, तो जो सीट-शेयरिंग फॉर्मूला तय होगा, उसमें उनको क्या मिलता है? कुर्बानी कौन देता है, ये मायने रखता है. नीतीश जी भी यह मानकर ही चलेंगे कि बिहार की 40 सीटो में लड़कर वह अधिकतम कितनी सीटें ला सकते हैं, इसलिए वह अपनी अंतिम पारी में वह सम्मान, वह दर्जा जरूर चाहेंगे जो जयप्रकाश नारायण को मिला था, जब उन्होंने इंदिरा की तानाशाही को उखाड़ फेंका था. नीतीश भी चाहेंगे कि उनको इंडिया गठबंधन वही सम्मान दे अगर दस वर्षों की नरेंद्रमोदी नीत भाजपा सरकार को वे उखाड़ फेंकने में कामयाब होते हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

दिल्ली में बने हिमाचल भवन को HC ने कुर्क करने के दिए आदेश, इस वजह से लिया फैसला 
दिल्ली में बने हिमाचल भवन को HC ने कुर्क करने के दिए आदेश, इस वजह से लिया फैसला 
Manipur Violence: सीएपीएफ की 50 और टुकड़ियां, कई जिलों में कर्फ्यू, इंटरनेट बंद..., जानिए मणिपुर हिंसा से जुड़ा हर लेटेस्ट अपडेट
CAPF की 50 और टुकड़ियां, कई जिलों में कर्फ्यू, इंटरनेट बंद..., जानिए मणिपुर से जुड़ा हर अपडेट
The Sabarmati Report Box Office Collection Day 4: मंडे को बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई विक्रांत मैसी की फिल्म, चंद करोड़ कमाने में छूटे पसीने
मंडे को बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई ‘द साबरमती रिपोर्ट’, चंद करोड़ कमाने में छूटे पसीने
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में बेहद कमजोर है भारत का बॉलिंग अटैक! ऑस्ट्रेलिया गेंदबाज हैं बहुत आगे 
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में बेहद कमजोर है भारत का बॉलिंग अटैक! ऑस्ट्रेलिया है बहुत आगे 
ABP Premium

वीडियोज

Breaking News : Karnataka के उडुपी जिले में नक्सल कमांडर हुआ ढेर | NAFDelhi-NCR Pollution Update: सिंघु बॉर्डर पर प्रदूषण का चौंकाने वाला मंजर, देखकर रह जाएंगे दंगDelhi-NCR Pollution : दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण से हाल बेहाल, स्कूल-कॉलेज बंदBreaking News : यूपी उपचुनाव से पहले Samajwadi Party की EC को चौंकाने वाली चिट्ठी!

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
दिल्ली में बने हिमाचल भवन को HC ने कुर्क करने के दिए आदेश, इस वजह से लिया फैसला 
दिल्ली में बने हिमाचल भवन को HC ने कुर्क करने के दिए आदेश, इस वजह से लिया फैसला 
Manipur Violence: सीएपीएफ की 50 और टुकड़ियां, कई जिलों में कर्फ्यू, इंटरनेट बंद..., जानिए मणिपुर हिंसा से जुड़ा हर लेटेस्ट अपडेट
CAPF की 50 और टुकड़ियां, कई जिलों में कर्फ्यू, इंटरनेट बंद..., जानिए मणिपुर से जुड़ा हर अपडेट
The Sabarmati Report Box Office Collection Day 4: मंडे को बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई विक्रांत मैसी की फिल्म, चंद करोड़ कमाने में छूटे पसीने
मंडे को बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई ‘द साबरमती रिपोर्ट’, चंद करोड़ कमाने में छूटे पसीने
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में बेहद कमजोर है भारत का बॉलिंग अटैक! ऑस्ट्रेलिया गेंदबाज हैं बहुत आगे 
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में बेहद कमजोर है भारत का बॉलिंग अटैक! ऑस्ट्रेलिया है बहुत आगे 
मसालेदार खाना खाने के सिर्फ नुकसान ही नहीं बल्कि दिल रहता है खुश, जानें हेल्थ एक्सपर्ट की राय
मसालेदार खाना खाने के सिर्फ नुकसान ही नहीं बल्कि दिल रहता है खुश, जानें हेल्थ एक्सपर्ट की राय
इन देशों में कभी नहीं बढ़ता है पॉल्यूशन, जान लीजिए नाम
इन देशों में कभी नहीं बढ़ता है पॉल्यूशन, जान लीजिए नाम
जहरीले प्रदूषण से बचेगा आपका परिवार, साफ हवा वाली इन जगहों पर घूमने जा सकते हैं आप
प्रदूषण से बचेगा आपका परिवार, साफ हवा वाली इन जगहों पर घूमने जा सकते हैं आप
सीने में जलन, सांसों में तूफ़ान और शहर परेशान, दिल्ली का कुछ ऐसा हो चुका हाल
सीने में जलन, सांसों में तूफ़ान और शहर परेशान, दिल्ली का कुछ ऐसा हो चुका हाल
Embed widget