बिहार में एक बार फिर से हत्या और अन्य अपराधों का बाजार गर्म है. अररिया जिला के रानीगंज में शुक्रवार को एक पत्रकार विमल कुमार यादव की हत्या कर दी गयी. अपराधी आए, दरवाजा खटखटाया, विमल कुमार के आने पर गोली मारी और टहलते हुए निकल गए. वैसे, इस मामले में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया है. बिहार में जिस नीतीश कुमार के सख्त प्रशासन की दुहाई दी जाती थी, वहीं आज जंगलराज की आमद के बयान दिए जा रहे हैं. नीतीश हालांकि इन बातों को नकारते हैं, लेकिन कभी नालंदा तो कभी मुजफ्फरपुर, लगातार हो रही गोलीबारी और हत्या से पुलिस-प्रशासन का इकबाल तो कम हुआ ही है. 


पत्रकार की हत्या से उठते हैं सवाल


अररिया में पत्रकार विमल कुमार की हत्या बहुत दुखद है. इस संगीन और गंभीर मामले में जल्द से जल्द जांच कर अपराधी को सज़ा हो, यह किसी भी नागरिक की तमन्ना होगी. जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के तौर पर माने जाने वाले पत्रकारों की हत्या होने लगे, तो इसका मतलब है कि अपराधी अब बेखौफ हैं. इससे पता चलता है कि उस राज्य की कानून-व्यवस्था कैसी है.


हम याद करें कि ऐसेे ही 2016 में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या हुई थी. उनको याद करने की वजह यह है कि पूरी दुनिया में अपराध होंगे, हत्याएं होंगी, इसे न्यूनतम कर सकते हैं, शून्य करना मुमकिन नहीं है. इससे कानून का भय मन में रहता है. कानून का इकबाल बुलंद रहता है. इसीलिए, जब अपराधी यह सोचने लगें कि -कर दो हत्या. एक अदना सा आदमी है, हमारा क्या कर लेगा कोई? तो, इससे समझ में आता है कि कानून को ये अपराधी क्या समझ रहे हैं?


इससे पहले 2019 में इनके छोटे भाई बबन यादव की हत्या कर दी गयी थी. वह अपने गांव के सरपंच थे. उस मामले में पत्रकार महोदय गवाह थे. जो हत्यारोपी हैं, पुलिस का वर्जन तो यही है कि चार्जशीट के बाद उनको लगा कि विमल कुमार की गवाही उन लोगों के खिलाफ पड़ेगी. हालांकि, उनको दी गयी धमकी पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और पत्रकार की दुखद हत्या हो गयी. 



इस अपराध की हो पूरी तरह जांच


अभी तक मीडिया में यह वजह आ नहीं रही है, यह कहानी अभी तक कहीं नहीं दिखी है, लेकिन सूचना यह है कि पत्रकार के परिवार का मुहल्ले में विवाद भी था. जैसा, आमतौर पर बिहार के मुहल्लों में होता है, पड़ोसियों से थोड़ा बहुत कभी बाउंड्री, तो कभी नल और कभी कचरे को लेकर विवाद आम बात है. तो, अभी तक भले ही कोई बता नहीं रही हो, लेकिन एक वर्जन ये भी है कि विवाद के पीछे जमीन का भी मामला हो सकता है.


बिहार में आजकल पिछले चार-पांच साल से जितनी भी हत्याएं हो रही हैं, उनके पीछे अक्सरहां जमीन का ही विवाद होने की कहानियां निकलती हैं. आम जनता के लिए छवि बहुत मायने रखती है. लोकतंत्र में वैसे भी अधिकांश खेल परसेप्शन का ही होता है, तो यह जो छवि बन रही है कि बेखौफ अपराधी दरवाजा खटखटाते हैं और आदमी के बाहर निकलने पर गोली मार कर टहलने निकल जाते हैं. कहने को पुलिस ने कुछ को गिरफ्तार भी कर लिया है, कुछ के नाम एफआईआर भी हो गयी है, लेकिन उनमें से दो अपराधी तो पहले ही जेल में हैं.



इतना सब होने पर भी सूबे के मुखिया यह पूछते हैं कि अपराध कहां हैं? अपराध की आंकड़ेबाजी का अभी समय नहीं है कि बिहार किस नंबर पर है, एनसीआरबी का डाटा क्या कह रहा है या बिहार से आगे फलां राज्य है और पीछे ढिमकाना राज्य है. कौन राज्य किस नंबर पर है, वह अलग मामला है, लेकिन बिहार को लेकर जो एक छवि बन रही है, बन चुकी है, वह यही है कि बिहार में लॉ एंड ऑर्डर पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है, कानून का इकबाल नहीं रहा और भू-माफिया, शराब-माफिया की बन आयी है. जमीन की दलाली से लेकर शराब की तस्करी तक, अपराधियों की हिमाकत इतनी बढ़ गयी है कि उनके लिए यह रूटीन हो गया है, दूसरी तरफ सरकार है कि कानून में बदलाव कर सज़ायाफ्ता अपराधियों को छोड़ रही है. 


शराब और जमीन हैं बड़े कारण


बिहार में शराब और जमीन को लेकर ही फिलहाल कुछ वर्षों से अपराध हो रहे हैं. इसने बिहार में अपराध का चरित्र ही बदल दिया है. अब जैसे बिहार में एनसीआरबी का आंकड़ा हूच-ट्रेजेडी ( शराब हादसा) 25 का है, लेकिन जमीन पर यह आंकड़ा सैकड़ों गुणा अधिक है. बहुतेरे मामले तो रिपोर्ट नहीं होते. आगे क्या होगा, यह किसी को नहीं पता लेकिन बिहार में 'लॉलेसनेस' की हालत हो गयी है.


अभी मुजफ्फरपुर में ही जो हत्याकांड हुआ है, वह भी लोगों को हिला गया है. वहां भी बड़ा जमीनी विवाद ही वजह के तौर पर सामने आ रहा है, जिसमें कई बड़े नाम भी अफवाहों के तौर पर उभरे हैं. अंधाधुंध गोली चलाकर, अपहरण या फिर डकैती इत्यादि में अब यहां हत्या नहीं हो रही है. यहां अधिकतम हत्याओं की वजह जमीन ही सामने आती है. शराब के लिए, हत्या हो रही है. शराब के मुनाफे को बांटने को लेकर हत्या हो रही है. लैंड रिफॉर्म के लिए सरकार ने बहुतेरी कोशिशें की हैं, ऑनलाइन वगैरह करके, लेकिन छवि तो बन ही गयी है. बिहार में ध्वस्त हो चुका है, सुशासन. यही अब छवि है.


विपक्षी गठबंधन इंडिया में राष्ट्रीय स्तर पर बहुतेरी खींचतान है. कई महत्वपूर्ण दल अभी भी इसका हिस्सा नहीं हैं. नीतीश कुमार 2024 तक कहां जाएंगे, यह मुंबई अधिवेशन के बाद ही पता चलेगा. नीतीश कुमार को संयोजक बनाते हैं, या चेयरमैन बनाते हैं, क्या दायित्व मिलता है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. नीतीश कुमार के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता है. वह कभी भी और कहीं भी, कोई भी फैसला पलट सकते हैं. इसलिए, विपक्षी गठबंधन का भविष्य अभी बांचना मुश्किल है. हां, कांग्रेस के हौसले अभी बुलंद हैं और यह गठबंधन के बाकी दलों को तो डराएगा ही. 


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