जैसा कि पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार लगातार अपने फैसलों से पूरे देश को चौंका रहे हैं, एक बार फिर बिहार से एक चौंकाने वाली न्यूज है. खबर है कि अदानी ग्रुप यहाँ 8 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगा. लेकिन क्या यह महज एक निवेश से जुडी खबर है? क्या इसके कुछ निहितार्थ भी हैं, जो देखे जाने चाहिए? यह देखने की जरूरत है कि आखिर इंडिया गठबंधन के शासन में अदानी ने 8 हजार करोड़ रूपये के निवेश का फैसला क्यों किया? नीतीश कुमार या तो बाजीगर हैं या फिर वह इंडिया गठबंधन के मुख्य साझीदार कांग्रेस की तनिक भी परवाह नहीं करते, जिसके मुख्य नेता राहुल गांधी समेत तमाम क्षत्रप अदानी पर पूरी तरह हमलावर हैं.
अदानी देख रहे “चेंज”!
कहते हैं व्यापारी एक रूपया भी यूं ही नहीं खर्च करता. व्यापार का उसूल है मुनाफ़ा. अब यह मुनाफ़ा उसे किसके शासन से मिलता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. यह भी सच है कि व्यापारी और उद्योगपति भी मौसम विज्ञानी होते हैं और आमतौर पर “दुल्हा के भी भाई और कनिया के भी भाई” की रणनीति पर चलते हैं. यह अलग बात है कि पिछले 10 सालों के बीच एक सामान्य धारणा यही बनी है कि अदानी का सत्ता के प्रति एकतरफा लगाव रहा है, जिसका उन्हें बखूबी लाभ भी मिला है. हालांकि, इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता कि तत्कालीन भूपेश बघेल और अशोक गहलोत के कांग्रेस शासन में कोयला खदानों के खनन के लिए अदानी के साथ ही करार किया गया था, लेकिन जिस राज्य के बारे में खुद वहाँ के मुख्यमंत्री (नीतीश कुमार) कह चुके हो कि हमारा राज्य लैंड लॉक्ड स्टेट है, इसलिए यहाँ निवेशक नहीं आते, वैसे राज्य में अदानी का 8 हजार करोड़ का निवेश का फैसला यूं ही नहीं लगता. तो क्या अदानी समूह भी राजनीतिक तापमान को महसूस करते हुए “हम सबके, सब हमारे” नीति पर चलने की शुरुआत कर रहा है.
ऐसा है भी तो इसमें कुछ गलत नहीं है. हालांकि, जिस तरह से इंडिया गठबंधन के बड़े नेता राहुल गांधी जिस तरीके से अदानी पर हमलावर रहे हैं, उसे देखते हुए इस बात को आसानी से पचाना मुश्किल हो जाता है कि सिर्फ बिजनेस प्रॉस्पेक्ट को देखते हुए अदानी ने बिहार में इतने बड़े निवेश की घोषणा की हो. वैसे, अदानी इससे पहले भी कुछ हद तक बिहार के एग्रो सेक्टर में निवेश कर चुके हैं लेकिन इस बार सीमेंट फैक्ट्री आदि में बड़ा निवेश किए जाने की खबर आ रही है. तो यह कहना कि क्या अदानी समूह आने वाले समय में कोइ “राजनीतिक चेंज” देख रहा है, जिसकी वजह से वह संतुलन साधने की प्रक्रिया में इंडिया गठबंधन शाषित राज्यों में निवेश का एलान कर रहा है याकि यह सिर्फ और सिर्फ विशुद्ध बिजनेस, विशुद्ध मुनाफ़ा का खेल है, जहां दल और गठबंधन नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ मुनाफ़ा देखा जाता है.
काली बिल्ली-सफ़ेद बिल्ली!
एक चीनी कहावत है. बिल्ली काली हो या सफ़ेद, यह महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि बिल्ली चूहा पकड़ सकती है या नहीं. यानी, चीन का स्पष्ट मानना है कि पैसा जैसा भी हो, उससे चीन का विकास होता है तो सब ठीक है. इसी तर्ज पर अगर बिहार में अदानी जैसा समूह हजारों करोड़ का निवेश करे और उससे हजारों रोजगार पैदा हो तो भला किसे क्या आपत्ति हो सकती है? क्या राहुल गांधी इस बात पर आपत्ति जता सकते है कि बिहार को अदानी का पैसा नहीं लेना चाहिए क्योंकि हम अदानी की “अनैतिक व्यापार प्रथाओं” का विरोध करते हैं? शायद वे ऐसा न करें. लेकिन किसी भी एक बिंदु पर इंडिया गठबंधन के भीतर अगर ऐसा कोई सवाल उठाता है तब नीतीश कुमार या युवा आकांक्षाओं के प्रतीक तेजस्वी यादव का रूख क्या होगा? यह जानना महत्वपूर्ण है. क्या तेजस्वी यादव ऐसे किसी आरोपों को खारिज करेंगे और अदानी का बचाव करेंगे? क्या नीतीश कुमार भी राहुल गांधी के आरोपों (भले अभी यह संभावित लगे) को नकारेंगे? एक बिहारी होने के नाते मुझे लगता है कि नकारना ही चाहिए. बिहारी अस्मिता के लिए यह आवश्यक है कि यहां उद्योगपति आएं और यहाँ के एग्रो सेक्टर समेत तमाम अन्य सेक्टर्स में भारी-भरकम निवेश करें. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पैसा अदानी का है, अंबानी है या वेदांता का है. रह गयी बात एथिकल और अनएथिकल बिजनेस प्रैक्टिसेज की तो इसे देखना और संभालना केंद्र सरकार, केंद्र सरकार से संबंधित एजेंसियों और न्यायपालिका का काम है न कि यह राजनीतिक सुधार कार्यक्रम का हिस्सा है.
नीतीश की बल्ले-बल्ले!
नीतीश कुमार के दोनों हाथों में सदा की तरह लड्डू हैं. निवेश और रोजगार जैसे मुद्दे पर तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार का साथ नहीं छोड़ सकते. कम से कम नैतिकता का तकाजा तो यही कहता है. लेकिन, राजनीति में नैतिकता की बात करना भी अनैतिक माना जाता है. इसलिए हम सिर्फ इतना कह सकते है कि कोइ भी राजनीतिक-आर्थिक निर्णय अगर अपने में कोई संकेत समेटे हुए है तो मौजूदा निर्णय (अदानी के निवेश) में भी कुछ संकेत छुपे है. वह संकेत यही है कि नीतीश कुमार हमेशा की तरह बंधन मुक्त हैं. वह उस आत्मा की तरह हैं जिसे कोई कैद कर के नहीं रख सकता. वह उस पंछी की तरह है जो जब जहां चाहे विचरण कर सकता है और अगर कोई उन्हें टेकेन फॉर ग्रांटेड लेने की कोशिश करते हुए मोलतोल करने का दु:साहस करेगा तो वह आत्मा, वह पंछी फुर्र हो सकता है. फिर कहने को यह तर्क भी रहेगा कि हमने यह काम बिहार की जनता के आर्थिक हितों को सुरक्षित करने के लिए किया है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]