बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं पर बड़े ही विवादित बयान दिया है. लेकिन, अपने बयान के दूसरे ही दिन जिस तरह से नीतीश कुमार ने माफी मांगी है, उससे इस बात की पुष्टि हो जाती है कि बिहार सीएम का ये बयान सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण पर ही नहीं था. जनसंख्या नियंत्रण पर दिए बयान पर देश उसका स्वागत करता है. उस पर शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं होती है. लेकिन, नीतीश कुमार ने शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं. उन्होंने अपना बयान वापस लिया है और अपनी निंदा करने वालों का अभिनंदन किया है.


आमतौर पर राजनेताओं की तरफ से ऐसा आचरण नहीं दिखता है. किसी ने ये बात नहीं कही कि विधानसभा का अंदर नीतीश कुमार का बयान स्वागत योग्य है. मगर इस बयान से क्या डैमेज कंट्रोल होगा? उनकी जिस तरह की समाज के अंदर छवि बनी हुई थी, नीतीश कुमार के इस एक मात्र बयान से उस परसेप्शन को क्षति पहुंची है.


नीतीश कुमार को लेकर जिस तरह की छवि, देश में और बिहार के अंदर जनता में और महिलाओं में अब तक रहा है, उसको ऐसी चोट पहुंचा दी गई जिसकी क्षतिपूर्ति वैसे बयानों से नहीं होगी.


नीतीश को लेकर बने परसेप्शन को चोट पहुंची 


 नीतीश कुमार अपने बयानों पर शर्मिंदा हैं तो होना चाहिए. अगर वे अपने शब्द वापस ले रहे हैं तो लेना चाहिए. अगर वे निंदा करने वालों का अभिनंदन कर रहे हैं तो ये उनकी तारीफ करने लायक बात है. अब इसमें एक-दो महत्वपूर्ण बात और भी है, जिसकी तरफ लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है, वो ये कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए क्या सिर्फ महिलाएं की जिम्मेदार हैं?



ये सोच ही कि पूरी तरह से महिलाओं के ऊपर ही जनसंख्या नियंत्रण की जिम्मेदारी सौंप देना, ये पुरुषवादी सोच है. इस पुरुषवादी सोच पर तो किसी का ध्यान भी नहीं गया. कोई इस ओर ध्यान दिला भी नहीं रहा है. खुद नीतीश कुमार इस पर शर्मिंदगी या लज्जित महसूस भी नहीं कर रहे हैं.


जनसंख्या नियंत्रण की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की क्यों?


सच तो ये है कि जब हम ये कहते हैं कि अशिक्षा के कारण जनसंख्या बढ़ रही है तो इसमें स्त्री और पुरुष दोनों की अशिक्षा शामिल होती है. लेकिन, नीतीश ने एक नई थ्योरी दे दी कि जनसंख्या बढ़ने के लिए महिलाएं जिम्मेदार है. ये पाठ्यक्रम, जागरुकता और सिलेबस के हिसाब से कहीं से भी उनका भाषण किसी स्तर का नहीं था.  


जिस तरह से जेडीयू और आरजेडी की तरफ से नीतीश कुमार को पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा था, इन सबके बीच नीतीश ने खुद इसे समझ लिया है. यही वजह है कि 24 घंटे भी नहीं लगे और बिहार सीएम माफी मांगने और शर्मिंदा होने के लिए सामने आ गए.



अगर वे ऐसा नहीं करते तो निश्चित तौर पर हमेशा के लिए सवाल खड़ा हो जाता कि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी महिलाओं को लेकर ये सोच है, वे देश का नेतृत्व कैसे कर सकता है. लेकिन, अब चूंकि एकतरफ माफी मांग ली है, शर्मिंदा हुए हैं, ऐसे में हिन्दुस्तान की जनता हर माफी मांगने वालों को हमेशा माफ करती आयी है, इस हिसाब से हम कह सकते हैं कि उम्मीद जिंदा है. लेकिन, पीएम मैटेरियल पर तो प्रश्नचन्ह उन्होंने स्वयं लगा दिया है.


कितना बड़ा राजनीतिक नुकसान?


जहां तक राजनीतिक तौर पर नुकसान की बात है तो सबसे पहले अपना राजनीतिक कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है.  वे अपने नेताओं को बचाव नहीं कर पाते हैं. ऑफिशियली कुछ और बोलते हैं और अंदरखाने निंदा करने वालों का साथ देने लगते हैं. इस तरह से एक अस्वीकार करने की भावना सिर्फ विरोधियों ही नहीं बल्कि अपने लोगों में पैदा हो जाती है.


जब अपने  लोग अस्वीकार करने लगे तो समाज में एक नेता के लिए उसकी स्वीकार्यता को जो नुकसान होता है, उसका वो कभी आकलन नहीं कर पाता है. एक बात और गौर करने वाली ये है कि सिर्फ नीतीश कुमार ही नहीं, उनसे पहले संसद में भी लगातार असंसदीय बातें हो रही हैं, उसके लिए कभी हमने ऐसा नहीं देखा कि भी कोई नेता इस तरह से सामने आकर अपनी गलती स्वीकार करे, जैसा नीतीश कुमार ने किया है.


अभी हाल में बीजेपी सांसद विधूड़ी ने जिस तरह बीएसपी सांसद दानिश अली के ऊपर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया, वह भी उतना ही अमर्यादित, बेतूका और असंसदीय है. लेकिन, बीजेपी उसका बचाव करते हुए दिखी है. ये घटना बताती है कि ये मसला सिर्फ एक नेता और एक पार्टी का नहीं है, बल्कि ये मसला पूरे देश की पुरुषवादी समाज की सोच में और नफरत सियासत के तौर पर राजनीति का हिस्सा बन चुकी है.


 राजनीति में जो समर्थक होते हैं, वे ऑफिशियली अपने नेताओं के पक्ष में बयान देते हैं. लेकिन, अंदरखाने बयानों की निंदा करते हैं, निंदक के साथ हो जाते हैं. कुछ इसी तरह की स्थिति देखने को मिली. जो तेजस्वी यादव कर तक नीतीश कुमार के बयान पर ये कह रहे थे कि ये जनसंख्या वृद्धि पर उनका दिया गया बयान है, महिलाओं के खिलाफ नहीं है वे आज क्या कहेंगे? जाहिर बात है कि ऐसी स्थिति में जब नीतीश कुमार ने अपनी गलती मान ली है, तो उनकी गलत को सही ठहराने वाला नेता आज गलत हैं.



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