नीतीश कुमार को आखिर क्यों आता है इतना जबरदस्त गुस्सा?
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गिनती देश के संजीदा नेताओं में होती है और उन्हें एक अच्छे वक्ता के अलावा कुशल प्रशासक भी माना जाता है. लेकिन पिछले कुछ अरसे से ये देखने को मिल रहा है कि विपक्ष की आलोचना का जवाब वे जिस अंदाज में देते हैं, वह उनके स्वभाव से मेल नहीं खाता है. मीडिया के तीखे सवालों पर भी वे कैमरों के सामने अपना आपा खोते हुए दिखाई दिये हैं. ताजी मिसाल बुधवार को विधानसभा में भी देखने को मिली, जब जहरीली शराब के मुद्दे पर हंगामा कर रहे बीजेपी विधायकों को नीतीश ने ये तक कह डाला कि "तुम लोग शराबी हो गये हो."
सवाल उठता है कि राज्य से लेकर देश की राजनीति में घाट-घाट के पानी वाली सत्ता का स्वाद चख चुके नीतीश कुमार को आखिर इतना गुस्सा क्यों आने लगा है? क्या इसकी वजह उनकी गिरती हुई साख है और वे मान चुके हैं कि उनकी सियासी पारी का सूरज अब डूबने लगा है या फिर आगामी लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष की तरफ से पीएम पद की उम्मीदवारी की दौड़ में पिछड़ने के बाद ये उनकी कुंठा निकल रही है?
अपने मूल स्वभाव में आये इस अभूतपूर्व बदलाव की असली वजह तो नीतीश ही बेहतर जानते होंगे लेकिन बिहार विधानसभा में विपक्षी विधायकों के लिये जिस अमर्यादित और मानहानि करने वाली शब्दावली का उन्होंने प्रयोग किया है, उसे संसदीय आचरण में जायज नहीं ठहराया जा सकता. विपक्ष के तीखे शाब्दिक हमलों के बावजूद एक मुख्यमंत्री उसी भाषा में अपना जवाब देने से बचता है. पर, नीतीश कुमार ने सदन में अपना आपा खोकर जो टिपण्णी की है, उससे बीजेपी को सरकार के खिलाफ हमलावर होने का सुनहरा मौका मिल गया है.
दरअसल, बिहार के सारण जिले के छपरा इलाके में बीते दो दिनों में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत हो गई है. चूंकि बिहार में पिछले पौने सात साल से शराबबंदी है, लिहाजा विपक्ष को पूरा हक है कि वो इस मसले पर सरकार को कटघरे में खड़ा करे कि इतना सख्त कानून होने के बावजूद राज्य में अवैध शराब का कारोबार आखिर कैसे हो रहा है और इस लॉबी लो किसका प्रश्रय मिला हुआ है.
इसी मामले को बीजेपी विधायकों ने विधानसभा में उठाते हुए मौजूदा सरकार पर हमला बोला. विपक्ष के सवालों या उनके आरोपों का जवाब देने की बजाय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगभग अपना आपा खोते हुए गली-मोहल्ले के छुटभैये नेताओं की भाषा का इस्तेमाल करते हुए कह दिया कि "तुम लोग शराबी हो गए हो. "
जाहिर है कि नीतीश की इस टिप्पणी पर बीजेपी को तो हमलावर होना ही था. पार्टी सांसद और बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार के दिन चले गए हैं और इसलिए वो आपा खो रहे हैं. एक समाचार एजेंसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि "नीतीश कुमार का कार्यकाल खत्म हो गया है. उन्होंने अपनी याददाश्त भी खो दी है. वो प्रशांत किशोर और बीजेपी विधायकों को ‘तू’और ‘तुम’कहकर बुला रहे हैं. ये पहले भी हुआ था. अब ऐसा बहुत बार हुआ है जब उन्होंने अपना आपा खो दिया लेकिन उनका स्वभाव पहले ऐसा नहीं था. "
वहीं विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी ने छपरा की इस घटना पर कहा कि नीतीश कुमार और बिहार सरकार जहरीली शराब बिहार में बेचवा रही है. छपरा में जितने लोग मरे हैं उनके परिजनों से कहना चाहता हूं कि नीतीश के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएं. नीतीश सदन में जवाब दें कि शराबबंदी वाले बिहार में जहरीली शराब कहां से मंगाकर बेचवा रहे हैं?
बता दें कि बिहार में 2016 से ही शराबबंदी लागू है लेकिन उसके बाद से ही वहां अवैध शराब माफिया इतना ताकतवर हो गया है कि उस पर नकेल कसने की हिम्मत नीतीश सरकार भी नहीं जुटा पाई है.
बिहार सरकार में मद्य निषेध विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शराबबंदी लागू होने यानी 1 अप्रैल 2016 से अब तक इस शराबबंदी कानून के तहत साढ़े छह लाख से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. लेकिन ये सब कमजोर व पिछड़े तबके के वे गरीब लोग हैं, जिन्हें देशी शराब पीते हुए पुलिस ने इसलिये पकड़ लिया क्योंकि उनके पास ख़ाकी वर्दी की हथेली गरम करने लायक पैसे जेब में नहीं थे. इस लिस्ट में किसी शराब माफिया का नाम चिराग लेकर तलाशने से भी नहीं मिलेगा.
वैसे भी शराबबंदी लागू होने के बाद से बिहार में आम लोगों के पास ही नहीं बल्कि विधानसभा परिसर और मंदिरों तक में शराब की बोतलें पाई गई है. यही नहीं, कई बार तो ऐसी भी खबरें आई हैं कि बिहार में हजारों लीटर जब्त शराब को चूहों ने गटक लिया. हालांकि राज्य में अब तक शराबबंदी कानून तोड़ने के मामले में कुल पांच लाख से ज़्यादा केस दर्ज हो चुके हैं और बीते छह साल में करीब ढाई करोड़ लीटर अवैध शराब जब्त की गई है.
सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक अकेले इस साल ही राज्य में करीब 40 लाख लीटर अवैध शराब जब्त की गई है. इसमें आधी से ज़्यादा देशी शराब है. अवैध शराब के मामलों में इस साल एक लाख 38 हज़ार से ज़्यादा केस दर्ज हुए हैं. अवैध शराब माफिया के गोरखधंधे का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि केवल नवंबर महीने में ही सरकारी एजेंसियों ने तीन लाख लीटर से ज़्यादा शराब जब्त की है. बावजूद इसके शराब बनाने-बेचने का खेल बदस्तूर जारी है.
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