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अविश्वास प्रस्ताव है बहाना, एकजुटता का परसेप्शन बनाने की चुनौती से जूझता विपक्ष, 2024 से पहले छवि की है लड़ाई

मणिपुर हिंसा के मामले में अपने मुताबिक संसद में चर्चा नहीं होने के बाद विपक्षी दलों के नए-नए बने गठबंधन I.N.D.I.A ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार कर लिया है. हालांकि अभी इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए स्पीकर की ओर से फिलहाल तारीख तय नहीं की गई है. ये अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से पेश किया गया है. कांग्रेस की ओर से सांसद गौरव गोगोई ने इसे पेश किया है.

अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की रणनीति का हिस्सा

आम तौर पर अविश्वास प्रस्ताव को तब लाया जाता है, जब विपक्ष को ऐसा महसूस हो कि सरकार के पास सदन में बहुमत नहीं है. लेकिन फिलहाल ऐसी कोई स्थिति नहीं है. नरेन्द्र मोदी सरकार के पास सदन में बहुमत को लेकर कोई संकट नहीं है, उसके बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाया जाना विपक्ष की रणनीति का हिस्सा है.

मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव 

पिछले 9 साल में ये दूसरा मौका है जब नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है. मौजूदा कार्यकाल में ये पहला मौका है. इससे पहले नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जुलाई 2018 में कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था. हालांकि उस वक्त इस अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ 325 सांसदों ने वोट दिया था और प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ़ 126 वोट ही पड़े थे. यानी अविश्वास प्रस्ताव सदन से खारिज हो गया था.

विपक्ष की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा

ये संयोग नहीं है कि ठीक 5 साल बाद विपक्ष की ओर से अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है. दरअसल ये विपक्ष की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. संख्या बल की बात करें तो इस बार भी विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का वैसा ही हाल होने वाला है, इसमें कोई शक या संदेह नहीं है. फिर भी अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष मोदी सरकार को कई मुद्दों पर संसद में घेरने की कोशिश करना चाहता है.

एकजुटता दिखाने का मौका तलाशता विपक्ष

ये सिर्फ़ मणिपुर हिंसा तक ही जुड़ा मामला नहीं है. संसद का मानसून सत्र शुरू होने से दो दिन पहले बेंगलुरु में कांग्रेस समेत 26 दलों ने विपक्ष के गठबंधन के नाम का ऐलान किया. इसे इंडिया (I.N.D.I.A) दिया. हालांकि इसका पूरा नाम इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस है. विपक्ष ने तो 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन का नामकरण तो कर लिया, लेकिन अभी भी इन विपक्षी दलों के सामने एकजुटता दिखाने की सबसे बड़ी चुनौती है. चुनाव में अभी 9 महीने से ज्यादा का वक्त बचा है, ऐसे में सीट बंटवारे से लेकर साझा चुनावी घोषणापत्र के जरिए एकजुटता दिखाना अभी संभव नहीं है.

संसद में सरकार को नहीं घेर पा रहा था विपक्ष

संसद के मानसून सत्र को देखते हुए विपक्ष को लगा था कि मणिपुर में करीब 3 महीने से जारी हिंसा को लेकर मोदी सरकार को घेर सकती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोनों सदनों के भीतर जवाब देने को विवश कर सकता है. हालांकि सत्र शुरू होने के 3-4 दिनों के भीतर ही विपक्ष को ये समझ में आ गया कि उसकी ये रणनीति काम नहीं करने वाली है.

मणिपुर हिंसा के मामले में विपक्ष लंबी बहस चाहता है ताकि तमाम विपक्षी दलों को अपनी बातें कहना का पर्याप्त मौका मिल सके. अड़चन लोकसभा में बहस को लेकर नहीं है क्योंकि वहां सरकार नियम 193 के तहत चर्चा को तैयार है. असली राजनीतिक टकराव राज्यसभा में चर्चा को लेकर है. राज्यसभा में विपक्ष नियम 267 के तहत चर्चा चाहता है, जबकि सरकार नियम 176 के तहत चर्चा के लिए ही तैयार हो रही है. अगर नियम 176 के तहत चर्चा हुई तो ये छोटी चर्चा होगी, अल्पकालिक चर्चा होगी और उस हालत में राज्य सभा में विपक्षी दलों को सरकार को घेरने के लिए कम वक्त मिलेगा.

मणिपुर हिंसा को लेकर रणनीति नहीं कर रही थी काम

अगर राज्य सभा में चर्चा नियम 267 के तहत होती है तो चर्चा के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा. सरकार को कटघरे में खड़ा करने के बहाने नए-नए बने विपक्षी गठबंधन को एकजुटता दिखाने का भी मौका मिल जाएगा. हालांकि सरकार इस नियम के तहत चर्चा के लिए तैयार होने के मूड में नहीं दिख रही है. आखिरी बार इस तरह की चर्चा  2016 में नोटबंदी के मुद्दे पर हुई थी. उस वक्त मोहम्मद हामिद अंसारी बतौर उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति थे.

नियम 267 के तहत चर्चा करवाने के पीछे विपक्ष की एक और भी मंशा है. विपक्ष चाहता है कि मणिपुर हिंसा पर जो चर्चा हो, उस चर्चा का जवाब सरकार की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दें. हालांकि सरकार इसे कानून-व्यवस्था से जुड़ा मसला बताकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से जवाब दिलवाने के मूड में है.

राज्य सभा में नियम 267 के तहत चर्चा अगर हो गई तो उसका जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव बढ़ जाएगा. नियम 267 पर चर्चा का मतलब ही है कि सदन में उस मुद्दे पर बहस के लिए सभी कामों का रोक दिया गया है. ऐसे में ये मसला सदन के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है. जब सदन के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है तो सरकार के मुखिया यानी प्रधानमंत्री ही उस चर्चा का जवाब दें, ये राजनीतिक दबाव की तरह काम करता है.

अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सरकार को घेरने की तैयारी

सरकार राज्यसभा में न तो नियम 267 के तहत चर्चा को तैयार हो रही है और न ही लोकसभा में मणिपुर पर किसी भी चर्चा का जवाब प्रधानमंत्री से दिलवाने की मंशा जता रही है. ऐसे में कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष के पास लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार को घेरने से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता था.

ये जानते हुए भी कि संख्या बल को देखते हुए अविश्वास प्रस्ताव का क्या हश्र होगा, विपक्ष ने इसे लाने का फैसला किया. अविश्वास प्रस्ताव लाना कोई बड़ी बात नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 75 (3) में ये प्रावधान किया गया है कि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी. इसके जरिए ही किसी भी सरकार को लोकसभा का विश्वास हासिल करना जरूरी हो जाता है. हालांकि संविधान में कहीं भी अविश्वास प्रस्ताव या विश्वास प्रस्ताव का जिक्र नहीं है, लेकिन इस अनुच्छेद के जरिए सरकार के लिए सदन का भरोसा होना जरूरी है.

लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियम में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र है. इसमें अध्याय 17 के नियम 198 में अविश्वास प्रस्ताव और उससे जुड़ी प्रक्रिया का विवरण है. अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में पेश करने के लिए  50 सांसदों का समर्थन जरूरी है. अगर स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव से जुड़ा नोटिस स्वीकार कर लिया है तो उस पर सदन में 10 दिनों के भीतर बहस कराना अनिवार्य है. बहस के बाद इसमें प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में मतदान की भी व्यवस्था है. इस नियम के तहत नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर अगले हफ्ते चर्चा होने की संभावना है.

मोदी सरकार की नाकामियों को गिनाना मकसद

अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए स्पीकर एक दिन या दो दिन भी तय कर सकते हैं. ऐसा होने पर विपक्ष के पास पर्याप्त मौका होगा कि वो मणिपुर हिंसा के अलावा उन मुद्दों पर भी सरकार की आलोचना कर सकता है, जिसे विपक्षी दल सरकार की नाकामी बताना चाहते हैं. इसके साथ ही अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद सरकार की ओर से प्रधानमंत्री अपनी बात रखेंगे. ये एक तरह से विपक्षी गठबंधन के मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री से जवाब की मांग के पूरी होने के समान होगा. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान तमाम विपक्षी दलों के नेताओं को राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार पर मणिपुर में हिंसा रोकने में नाकाम रहने का आरोप  लगाने का मौका मिल जाएगा. उसके बाद जब सरकार की ओर से आखिर में प्रधानमंत्री बोलेंगे तो उनके लिए इस मसले पर बोलना ही होगा. वे सदन में मणिपुर हिंसा पर बोले बिना आगे नहीं बढ़ सकते हैं, ये विपक्ष को भली भांति पता है.

अविश्वास प्रस्ताव का वास्तविक मकसद तो ये दिखाना ही होता है कि अब लोकसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं रह गया है, लेकिन फिलहाल जैसी स्थिति है, उसमें ऐसा संभव नहीं है.  ऐसे में विपक्ष के इस अविश्वास प्रस्ताव का मकसद सिर्फ और सिर्फ मणिपुर हिंसा समेत देश के सामने मौजूद समस्याओं और चुनौतियों को लेकर लोकसभा के भीतर सरकार की निंदा करना ही है. उसके साथ ही लोकसभा में चर्चा के बहाने विपक्ष अपने ताजा बने गठबंधन में एकजुटता के परसेप्शन को देश के नागरिकों के सामने मजबूत करना चाहता है.

एकजुटता का माहौल बनाना चाहता है विपक्ष

विपक्ष को पता है कि भारत में परसेप्शन के जरिए ही लोकसभा चुनाव में बढ़त बनाया जा सकता है. I.N.D.I.A गठबंधन के तहत वैसे दलों का जमावड़ा हुआ है, जिनमें से कई दलों की अलग-अलग राज्यों में प्रतिद्वंदिता रही है. जैसे केरल का ही उदाहरण लें, तो यहां दशकों से कांग्रेस और सीपीएम के बीच मुकाबला रहा है. उसी तरह से पंजाब में आम आदमी पार्टी  ने पिछले साल की शुरूआत में कांग्रेस को करारी मात देकर  उससे सत्ता छीनने में कामयाब रही थी. उसी तर्ज पर पश्चिम बंगाल में पहले कांग्रेस और लेफ्ट के बीच ही राजनीतिक रस्साकशी का इतिहास रहा है. वहीं पिछले कुछ सालों से पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी और लेफ्ट-कांग्रेस के बीच राजनीतिक लड़ाई कही है.  इसी तरह से लोकसभा संख्या के लिहाज से सबसे प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के हितों में टकराव का इतिहास रहा है और ये पार्टी हित अभी भी मौजूद है.

एकजुटता को लेकर परसेप्शन बनाने पर फोकस

कहने का मतलब ये है कि विपक्ष के गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती एकजुटता को बनाए रखने के साथ ही लोगों में विपक्षी एकजुटता को लेकर बेहतर परसेप्शन बनाने की भी है. इसके लिए लोकसभा चुनाव आने तक विपक्ष को मौके की तलाश रहेगी. विपक्ष के लिए गठबंधन का नाम तय होने के बाद इतनी जल्दी ऐसा मौका मिलना आसान नहीं था, वो भी संसद के भीतर. अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A को यही मौका मिला है.

एक और बात है जो अविश्वास प्रस्ताव की रणनीति को समझने के लिए जरूरी है. बीजेपी के लिए सबसे बड़ा एडवांटेज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी छवि है. अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष की कोशिश सीधे-सीधे बीजेपी के इस एडवांटेज को कमतर दिखाने की है क्योंकि विपक्ष के पास मुद्दे गिनाकर उन मुद्दों पर नरेंद्र मोदी सरकार की विफलता का आरोप लगाने का मौका उसी सदन में मिल जाएगा, जहां सरकार की सबसे ज्यादा जवाबदेही है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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